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उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हत्याहरण गांव का लोहिया समग्र योजना के तहत विकास हुआ है। (बाद की तस्वीर) |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को शुरू
हुए आज छह माह स अधिक हो गया है। लेकिन अभी भी गांवों और शहरों से स्वच्छता गधे के
सींग की तरह से गायब है। या फिर हम कह सकते हैं कि स्वच्छता अभियान अब सिर्फ
पोस्टरों, बैनर्स और होर्डिंग्स में ही रह गया है।
नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को जब इस महत्वाकांक्षी अभियान
की शुरुआत की थी तो उन्होंने ना सिर्फ लोगों को स्वच्छता की शपथ दिलाई, बल्कि खुद
भी झाड़ू थामे दिखे। फिर चाहे वह दिल्ली का मंदिर मार्ग हो या फिर उनका संसदीय
क्षेत्र बनारस।
प्रधानमंत्री
ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करके पूरे देश के लोगों को एक नई सोच देने की
कोशिश की है, परन्तु इसका असर ना तो नौकरशाही और ना ही राजनेताओं पर दिखता है। साथ ही लोग भी सफाई अभियान को सिर्फ एक
प्रोपेगंडा की ही तरह ले रहे हैं। हम बात कर रहे हैं नवाबों की नगरी लखनऊ और उससे
सटे इलाकों की।
उत्तर
प्रदेश की सरकार सफाई व्यवस्था का अगर जायजा लेना है तो आप लखनऊ में तसरीफ लाइए। हाल
ही में मुझे नई दिल्ली से घर (चौक, लखनऊ) जाना था। हरदोई पर पर कोनेश्वर चौराहे
काली जी मंदिर जाने वाले मार्ग पर ही मेरा घर है। हम जैसे ही ऑटो से मेन रोड पर
उतरे सड़क के किनारे ही काफी मात्रा में कूड़े का ढेर लगा हुआ था, जो सड़ने की वजह से अनायास ही लोगों को नाक बंद
करने पर विवश कर देता था। शुरुआत में तो मेरा ध्यान कूड़े की तरफ नहीं गया पर सड़न
की तेज दुर्गंध ने मुझे विचलित कर दिया, लगा उल्टी हो जाएगी। मैं जैसे-तैसे सांस
रोककर सीधे घर भागा।
बालागंज के
पास नारायण गार्डेन मोहल्ले में तो इससे भी बुरा हाल है। वहां आप जैसे ही मेन रोड
से आप उतरेंगे नाला बन चुकी सड़क से आपको दो-चार होना पड़ेगा। सड़क का कोई भी
हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां गंदा पानी न भरा हो और 500 मीटर एरिया में सड़क का
नामोनिशान न हो। हालत तो तब खराब होती है, जब सुबह बच्चे स्कूल जाते हैं या
महिलाओं को बाहर जाना होता है। कभी-कभी बच्चे और महिलाएं नालेनुमा सड़क पर गिर भी
जाते हैं, जिससे उन्हें चोट भी लगती है और स्कूल जाना भी रुक जाता है। मोहल्ले के
निवासियों ने बताया कि हमने कई बार नगर निगम में जाकर शिकायत की, उनके ऑनलाइन
एप्लीकेशन पर शिकायत भी दर्ज कराई पर मिला सिर्फ कोरा आश्वासन।
जब शहरों
खासकर राजधानी का यह आलम है तो गांवों के बारे में आप सोच ही सकते हैं। अब बात
करते हैं उत्तर प्रदेश के लोहिया गांव की।
मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव ने प्रदेश में लोहिया गांवों का चयन किया था। उनका मिशन था कि चयनित
गांवों में बिजली, सड़क और आवास जैसी सुविधाएं सभी को उपलब्ध कराई जाएंगी और
गांवों को साफ-सुथरा बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
हरदोई जिले
के हत्याहरण गांव में घुसने के लिए आपको नाले को पार करना पड़ेगा। भैनगांव ग्राम
पंचाया के इस गांव को लोहिया समग्र ग्राम के लिए चयनित किया गया था। अगर इस गांव
में आप को जाना हे तो आपके पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है कि आपको नाला पार
करना पड़ेगा। फिर चाहे आप गिर जाएं या फिर आपके हाथ-पैर टूट जाएं।
गांव के
निवासी राजू गोस्वामी (45 वर्ष) ने बताया, जब इस मौसम में तो यह आलम है और बारिश में
आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि अपने घर
जाना कितना मुश्किल होता है।
गांव के ही
बुजुर्ग बरातीलाल सक्सेसना (58 वर्ष) बताते हैं, एक दिन शाम को मैं शौच के लिए
बाहर जा रहा था, टॉर्च थी नहीं पैर फिसल गया गिर पड़ा। कड़ाके की ठंड में सारे
कपड़े तो गंदे पानी से भीग ही गए पैर में फ्रैक्चर भी आ गया।
बात करें
बुंदेलखंड की तो यहां के गांवों की हालत काफी खस्ता है। ग्रामीण टूटी सड़क को
बनवाने के लिए सड़क का अंतिम संस्कार कर तेरहवीं कर रहे हैं और मुख्यमंत्री सहित
जिले के आलाधिकारियों को त्रयोदशी भोज के लिए आमंत्रित कर रहे हैं पर अधिकारियों
के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। शर्म तक नहीं आती।
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उत्तर प्रदेश में जालौन जिले के गड़ेरना निवासियों ने टूटी सड़का अंतिम संस्कार कर उसका त्रयोदशी भोज किया। |
मतलब साफ है
कि किसी को भी सफाई अभियान और अन्य दूसरी योजनाओं की कतई चिंता नहीं हैं, उन्हें
चिंता है तो बस इस बात की कैसे पब्लिक को बेवकूफ बनाकर अपना वोट बैंक बनाया जाए।
चाहे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
हों या फिर दिल्ली के अरविंद केजरीवाल।
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