भारत में कोरोना संक्रमण का पीक टाइम आना अभी शेष है। बहुत संभव है कि हम सभी का कोरोना से साबिका पड़े और हम जीतें भी। लेकिन, इस दौरान हमें अपनी इंसानियत और मानवता को नहीं खोना है। कोरोना को हराकर घर लौटे एक वरिष्ठ पत्रकार संतोष पंत ने बीमारी से लड़ने के अपने अनुभवों को शेयर किया। उनका कहना है कि कोरोना से ज्यादा उन्हें लोगों के बिहैवियर ने परेशान किया। एक टीवी चैनल में मैंने करीब दो वर्ष तक उनके साथ काम किया। इस दौरान वह मेरे रूम पार्टनर भी रहे। इसलिए मैं उन्हें बेहतर जानता हूं। वह बेहद जिंदादिल, सामाजिक और व्यवहार कुशल इंसान हैं। वह हमेशा दूसरों का ख्लाल रखने वालों में शामिल हैं। उनकी विल पॉवर इतनी जबरदस्त है कि हैदराबाद में उन्होंने मैराथन में भाग लेने की ठान ली और मंजिल तक दौड़े भी। आइए आज आपको उनकी पूरी पोस्ट पढ़ाते हैं, ताकि आप भी उनकी नजरों से हकीकत को समझ सकें-
ज़रूर पढ़िए..
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मैं संतोष कुमार पंत। कोरोना को लेकर मेरी अपनी राय और आप लोगों को सलाह है। 24 मई को मेरा टेस्ट हुआ जिसमें एक सैंपल में कोरोना पॉजिटिव आया और एक सैंपल नेगेटिव। लेकिन एक सैंपल पॉजिटिव था तो आपको अपनी केयर करनी लाजिमी थी, जो मैंने की। और आज मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं।
देश और दिल्ली में कोरोना का क्या कहर है ये सभी लोग जानते हैं। अस्पताल, सरकार कहां है और क्या काम कर रही है, किसी को नहीं पता? आप कह सकते हैं कि दिल्ली या कहीं भी आप भगवान भरोसे हैं। आपकी किस्मत, कम्पनी अच्छी है तो आपका टेस्ट पहले हो जाया करता था, जैसे कि मेरा हुआ तो आपको मालूम चल जाएगा कि आपकी रिपोर्ट क्या है। लेकिन अब दिल्ली में ये सब भी बंद है। तो आप लोग ये मान लीजिए कि आप अपनी केयर से बच गए तो ठीक वरना राम-नाम सत्य है।
ये तो सरकार और हॉस्पिटल का हाल है। अब आप आइए अपने आस पास-पड़ोस और फ्लैट सिस्टम रूपी पड़ोस में। जैसे ही आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी, उसके बाद आप कहीं न कहीं से हर दिन कुछ न कुछ सुनते रहेंगे, जैसे इन लोगों ने बताया नहीं। इनके घर मत जाना। पानी वाले को बोल देंगे कि इनके घर पानी दोगे तो हमारे घर मत देना। कूड़े वाला कूड़ा नहीं उठा रहा। आपका समान कोई नहीं ला रहा। आप सोचेंगे कि आप अगले दिन बचेंगे या मर जाएंगे। और सच मानिए ये जो दिल्ली में आधे लोग मर रहे हैं न ये इन्हीं पड़ोसियों की देन है। क्योंकि यहां वैसे ही किसी को मतलब नहीं रहता किसी से। ऊपर से कोरोना आ गया तो रहे सहे पड़ोसियों का भी आपसे मतलब नहीं रहता। आप गांव में होते तो आधा गांव आपसे लिपट कर ही कोरोना पॉजिटिव हो जाता, वहां प्रेम ही इतना है। हमेशा एक दूसरे की मदद के लिए तैयार।
मेरे केस में भी ऐसा ही था। सारे मतलबी पड़ोसी गायब। आप जी रहे हैं या मर रहे हैं, किसी को कोई मतलब नहीं। ये बात आप हमेशा याद रखिए कि आपकी गली, आपके पड़ोसी अच्छे हों तो आप किसी भी बीमारी से ऐसे ही जंग जीत लेंगे। लेकिन उसमें से जो एक दो लोग अच्छे होते हैं, उनके बारे में आपको जरूर तहे दिल से शुक्रिया बोलना चाहिए। ये में सिर्फ अपने फ्लैट के ऊपर वाले फ्लैट में रहने वाले प्रवीण भाई और उनकी वाइफ रितु के लिए लिख रहा हूं। कि आप लोगों को भी ऐसे ही लोग ज़िन्दगी में मिलें। जिस दिन से मैं पॉजिटिव आया हूं, उस दिन से मेरे ठीक होने तक मेरे घर का सारा काम, सामान लाना, मेरे परिवार को पानी देना, मेरी पानी की मोटर चलाना, मेरी दवाई लाना सारा काम दोनों ने किया। मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं होने दी। गली में एक दो लोग और अच्छे हैं, जिन्होंने पूछा। लेकिन ये मान लीजिए कि आपको ज़्यादातर लो, अगर रिपोर्ट नेगेटिव भी आ जाय, फिर भी उनकी सोच नेगेटिव ही रहेगी। आपके वो ज़िन्दगी में कभी काम नहीं आएंगे। इसलिए जितनी दूरी ऐसे लोगों से बना ली जाय उतना अच्छा। हर कोई आने वाले समय में कोरोना की जद में होगा। अपना ख्याल रखिए और अच्छे लोगों के साथ रहिए। अच्छे पड़ोसी, आपको फोन करके आपको मोटिवेट करने वाले लोग, आपकी शारीरिक और मानसिक मजबूती ही कोरोना की वैक्सीन है।
आज मैं स्वस्थ हूं तो उसका सारा श्रेय में अपनी वाइफ, प्रवीण भाई और रितु भाभी को दूंगा। और आपसे अनुरोध है कि ऐसे सभी लोगों और पड़ोसियों का सम्मान करें और इनका मेरे साथ तहे दिल से शुक्रिया कहें।
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संतोष पंत की फेसबुक वॉल से साभार