अब तक मेरे जीवन में न जाने कितनी शाम आयीं और चली गयीं पर जे ऍम आई ( जहांगीराबाद मीडिया इंस्टिट्यूट) की शाम का अपना अंदाज ही निराला है | जिसका स्मरण होते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है और रोम-रोम रोमांचित हो उठता है |जैसे ही सूरज बादलों की गोद में जाता और कलरव धुन के साथ पंक्षी अपने घर की और जाते हमें एक सुखद शाम का एहसास करा जाते | शाम के समय कक्षा में गुरूजी हम सबको पढ़ा रहे होते तो हम सबके मन में एक अजीब सी बेचैनी होती और सोचते गुरूजी जल्दी से हम लोग छोड़े और हम सब साथ में चाय पीने जाएँ | हम कक्षा में बैठे ही मन में चाय की चुस्कियां लेते ,तभी हम में से कोई कहता गुरूजी चाय का समय हो गया है | वो हम सबके साथ चाय पीने जाते उस समय उनका व्यवहार बिल्कुल ही दोस्ताना होता और हम रस्ते भर खूब मस्ती करते जाते | कैंटीन में चाय का समय ५ बजे से ५.३० तक है पर कभी कभार ही हम वहां चाय पीने जाते हमारे पैर अनायास ही उस होटल की मुड़ जाते जो हमारे कैम्पस से मुश्किल से २०० मीटर दूर मुख्य सड़क पर था | वहां यादव काका बड़े प्यार से हम लोगों के लिए चाय बनाते जब तक चाय तैयार होती हम लोग नमकीन , समोसे तथा रसगुल्ले जो भी मन होता सभी खाते और आपस में खूब मजाक करते | शायद काका को हमारा ही इंतजार रहता , वह एक छोटे से होटल के मालिक थे जिसके सामने की तरफ १०-२० लोगों के बैठने व्यवस्था थी पर हम सब होटल के पीछे एक कुआं और एक चबूतरे पर शिवलिंग था हम सब वहीँ बैठकर चाय पीते खूब बातें करते जिससे दिन भर की थकान चुस्कियों के साथ उड़ जाती थी | कभी गुरूजी कभी हम में से कोई पेमेंट कर देता और हम मस्ती में बातें करते वापस आ जाते , वापस आकर गुरूजी इन्द्रपाल से ( जो कि सिक्योरिटी गार्ड ) से लकड़ियों के लिए कहते वह लकड़ियाँ लाकर अलाव जला देता | हम गुरूजी लोगों के साथ अलाव के चारों और कुर्सियां डालकर बैठ जाते | हम में से ही भागकर कोई कैमरा ले आता बारी - बारी से हम फोटो खीचते और फिर सब मिलकर विचार-विमर्श करते , वहीँ पर गुरूजी हम लोग से प्रश्न पूछते ,कई अन्य विषयों ( ऐतिहासिक ,सामाजिक , राजनीतिक) पर प्रकाश डालते और आमने विचार भी प्रकट करते |
जे ऍम आई क़ी शाम का अंदाज ही निराला है वह दुनिया भर क़ी तमाम शामों से एकदम भिन्न है यहाँ प्रक्रति अपनी अनुपम छटा बिखेरती है यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य किसी के भी मन को बस में करने क़ी क्षमता रखता है | मैं अपने को किस्मत का धनी मानता हूँ जिसे यहाँ पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है | मैं विश्वास के साथ कहता हूँ क़ी संपूर्ण भारत वर्ष में शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जहां क़ी शाम जे ऍम आई क़ी शाम के समकक्ष भी हो | बड़े किस्मत वालों को ऐसी शाम नसीब होती है यहाँ एक बार जो आता है वह बार - बार यहाँ आना चाहता है | जे ऍम आई क़ी शाम को बयाँ कर पाना मेरे बस क़ी बात नहीं है , ये शाम अपने आप में ही एक अनूठी है ...
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