शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

दिल्ली में जैविक खेती के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा

नई दिल्‍ली। यूपीए की सरकार में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की तरह एक और बड़ा घोटाला सामने आ रहा है, जिसमें दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि लगभग 1.5 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में फैली पौने 2 करोड़ की आबादी वाली राजधानी दिल्‍ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती हो तो रही है, लेकिन सिर्फ कागजों पर। जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार से 100 करोड़ की प्रोत्‍साहन राशि लेने के बावजूद दिल्‍ली में जैविक खेती का उत्‍पादन एक प्रतिशत से भी कम हुआ।  

यूपीए सरकार ने बिना जांच-पड़ताल किए दिल्ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती के लिए भारी-भरकम प्रोत्साहन राशि दे दी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदेश में जैविक खेती में उत्पादन तो ना के बराबर हुआ, लेकिन करोड़ों की राशि का क्या हुआ? शायद किसी को भनक तक नहीं।

इस मामले में क्रॉप केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया नामक एक स्‍वयंसेवी संस्‍था ने केंद्र सरकार से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी। सवाल था कि दिल्‍ली में जैविक खेती की पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्‍या स्‍थिति रही है और उसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली को कितना अनुदान दिया है।

अनुमान है कि कॉमनवेल्थ गेम घोटाले की तरह यह भी एक बड़ा घोटाला है, जो यूपीए सरकार के समय किया गया है। यह घोटाला यूपीए सरकार और दिल्‍ली में शीला सरकार के समय में 2012 में हुआ था, मगर इस मामले को लेकर अब ना तो कोई कांग्रेसी कुछ बोलने को तैयार है और ना ही मौजूदा दिल्‍ली सरकार।

वहीं, भाजपा ने पूरा मामला सामने आने के बाद जरूर कड़े तेवर दिखाए हैं और दिल्‍ली व केंद्र सरकार से इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की है।


आरटीआई के तहत मिली जानकारी
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी का जो जवाब मिला वो वाकई चौंकाने वाला था। केंद्र सरकार की ओर ऑन फार्मिंग (एनपीओएफ से नेशनल प्रोजेक्‍ट) विभाग ने बताया कि जैविक खेती को प्रोत्‍साहन देने के लिए केंद्र सरकार, राज्‍य सरकार को किसानों में बांटने के लिए प्रति हेक्‍टेयर पर 10 हजार रुपये की प्रोत्‍साहन राशि देती है। 2011 में दिल्‍ली में 266 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई और उससे 2 हजार 172 टन उत्‍पादन हुआ। 2012 में दिल्‍ली में कुल 100239 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई थी।
 

दिल्‍ली के कुल क्षेत्रफल 1.48 लाख हेक्‍टेयर का 70 फीसदी है, जो संभव ही नहीं इतनी अधिक मात्रा में खेती के बावजूद उत्‍पादन केवल एक फीसदी से भी कम 0.01 टन हुआ। इसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली सरकार को 100 करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान भी दिया। वहीं, 2013 में जैविक खेती 1 लाख हेक्‍टेयर से घटकर 58 हेक्‍टेयर तक सीमित हो गई, जिससे उत्‍पादन न के बराबर हुआ।

आंकड़े साफ दिखाते हैं कि कहीं न कहीं एक बड़ा घपला जैविक खेती के नाम पर हुआ है। एक साल जहां एक लाख हेक्‍टेयर पर खेती हो, उसका उत्‍पादन इतना कम नहीं हो सकता और अगले साल एक लाख से घटकर मात्र 58 हेक्‍टेयर तक खेती सिमट जाना भी संभव नहीं है। जाहिर है कि यह सब केंद्र सरकार से 100 करोड़ की राशि लेने के लिए किया गया था।

आंकड़ों के अनुसार राजधानी के कुल क्षेत्रफल में से 30 हजार 922 हेक्‍टेयर भूमि पर कृषि होती है। यहां जैविक खेती न के बराबर है। मामले में अधिकारी या तो कन्‍नी काट रहे हैं या एक दूसरे विभागों की गलती निकाल रहे हैं।

आरटीआई के तहत मिला डाटा

वर्ष     भूमि(हेक्‍टेयर)      उत्‍पादन(टन)

2010      12735           4766

2011        266            2172

2012       100239           0.01

2013         58             ----

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