सोमवार, 11 मई 2015

क्या हो गया दिलवालों की दिल्ली को ?

आखिर क्या हो गया है दिलवालों के शहर दिल्ली को? मामूली बात पर एक युवक ने बस ड्राइवर (42 वर्ष) को पीट-पीटकर मार डाला। इस पूरे कृत्य में उसका साथ दिया उसकी अपनी मां ने, जो बाइक पर बेटे के साथ बैठी थीं। मदर्स डे पर एक मां अपने बेटे का हौसला बढ़ा रही थी कि बेटा और मार, शायद वो भूल गईं कि जो पिट रहा है वो भी किसी का बेटा, किसी का बाप और किसी का भाई है। ड्राइवर का गुनाह सिर्फ इतना था कि युवक की बाइक में बस की हल्की सी टक्कर लग गई थी, जिसमें युवक और उसकी गाड़ी को जरा भी खरोच नहीं आई।

इन सबसे अलग एक बात और परेशान करने वाली है कि कंडक्टर समेत बस में सवारियां ठसाठस भरी हुई थीं, लेकिन किसी ने ड्राइवर को बचाने की जरूरत नहीं समझी। गुस्साए युवक ने बस पर चढ़कर हेलमट से ड्राइवर पर दनादन प्रहार किए। इतना ही संवेदनहीन और स्वार्थी भीड़ के सामने ही अकेला युवक ड्राइवर को नीचे खींच लाया और बस में आग बुझाने के लिए लगे गैस सिलेंडर से उस पर तब तक प्रहार करता रहा, जब तक कि वह अचेत नहीं हो गया और भीड़ तमाशबीन बनी देखती रही। आखिरकार उस ड्राइवर ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।

आधा-अधूरा नहीं पूरी तरह हो बंद
सुबह अखबार में पढ़ा था कि मांग पूरी न होने तक घटना से गुस्साए लोगों ने सोमवार से दिल्ली में डीटीसी की बसें बंद करने का एलान किया है। घटना से मैं भी दुखी था, साथ ही चिंता थी कि ऑफिस कैसे पहुंचूंगा। पर जैसे ही सड़क पर निकला प्राइवेट बसों और टैक्सियों की भरमार दिखी, लगा कि आज वे इस सुनहरे मौके का जमकर फायदा उठा लेना चाहते हैं।  

बंद इसलिए भी जरूरी था कि उन संवदेनहीन और स्वार्थी लोगों को इस बात का एहसास भी कराना है, जो किसी को पिटता देखकर भी चुपचाप बैठे रहते हैं, या खुद मुंह छिपा लेते हैं। घटना के विरोध में दिली तौर पर मैं बंद के समर्थन में हूं, इसीलिए मैं चाहता हूं कि बंद हो तो पूरी तरह से चक्का जाम हो। कोई भी टैक्सी वाहन सड़क पर न दिखे। इस घटना के विरोध में सभी प्राइवेट बसों और टैक्सियों को भी बंद किया जाना चाहिए था, ताकि लोगों को हकीकत में एहसास हो सके। ऐसा भी नहीं है कि आज किसी ने डीटीसी चालक की पीट-पीटकर हत्या कर दी, कल वो या दूसरे लोग प्राइवेट बसों या टैक्सी ड्राइवरों को बख्श देंगे।

मृतक ड्राइवर की बीवी का पिछले 14 साल से इलाज चल रहा है, जिसे वर्ष 2001 में लकवा मार गया था। मृतक के बेटे अजय ने बताया, पापा रोज सुबह साढ़े चार बजे काम के लिए (बस चलाने) निकल जाते थे, मुझे याद नहीं कि मेरी उनसे आखिरी मुलाकात कब हुई थी। मुझे मां के अस्पताल में रुकना पड़ता है। घर में छोटी बहन और दादी हैं। बेटे ने रोते हुए आगे बताया कि पापा ने पिछले कई महीनों से छुट्टी नहीं ली थी। घर का खर्च चलाने के लिए वह रोज काम पर जाते थे।

मृतक चालक के परिजनों से मिलने पहुंचे परिवहन मंत्री गोपाल राय को भी लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। उनका घेराव किया गया। मंत्री महोदय ने मृतक के परिजनों को पांच लाख रुपए देने का एलान किया। लेकिन घटना से आक्रोशित लोगों ने एक करोड़ के मुआवजे और परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी की मांग की।

यह कोई ऐसी पहली घटना नहीं है, जिसे दिलवाले शहर के बाशिंदों पर सवाल उठे हों। पिछले दस दिनों में इस तरह (रोडरेज) की ये तीसरी घटना है। हालांकि, इस मामले में पुलिस ने मुंडका निवासी आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया है।


शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

दिल्ली में जैविक खेती के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा

नई दिल्‍ली। यूपीए की सरकार में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की तरह एक और बड़ा घोटाला सामने आ रहा है, जिसमें दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि लगभग 1.5 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में फैली पौने 2 करोड़ की आबादी वाली राजधानी दिल्‍ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती हो तो रही है, लेकिन सिर्फ कागजों पर। जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार से 100 करोड़ की प्रोत्‍साहन राशि लेने के बावजूद दिल्‍ली में जैविक खेती का उत्‍पादन एक प्रतिशत से भी कम हुआ।  

यूपीए सरकार ने बिना जांच-पड़ताल किए दिल्ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती के लिए भारी-भरकम प्रोत्साहन राशि दे दी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदेश में जैविक खेती में उत्पादन तो ना के बराबर हुआ, लेकिन करोड़ों की राशि का क्या हुआ? शायद किसी को भनक तक नहीं।

इस मामले में क्रॉप केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया नामक एक स्‍वयंसेवी संस्‍था ने केंद्र सरकार से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी। सवाल था कि दिल्‍ली में जैविक खेती की पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्‍या स्‍थिति रही है और उसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली को कितना अनुदान दिया है।

अनुमान है कि कॉमनवेल्थ गेम घोटाले की तरह यह भी एक बड़ा घोटाला है, जो यूपीए सरकार के समय किया गया है। यह घोटाला यूपीए सरकार और दिल्‍ली में शीला सरकार के समय में 2012 में हुआ था, मगर इस मामले को लेकर अब ना तो कोई कांग्रेसी कुछ बोलने को तैयार है और ना ही मौजूदा दिल्‍ली सरकार।

वहीं, भाजपा ने पूरा मामला सामने आने के बाद जरूर कड़े तेवर दिखाए हैं और दिल्‍ली व केंद्र सरकार से इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की है।


आरटीआई के तहत मिली जानकारी
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी का जो जवाब मिला वो वाकई चौंकाने वाला था। केंद्र सरकार की ओर ऑन फार्मिंग (एनपीओएफ से नेशनल प्रोजेक्‍ट) विभाग ने बताया कि जैविक खेती को प्रोत्‍साहन देने के लिए केंद्र सरकार, राज्‍य सरकार को किसानों में बांटने के लिए प्रति हेक्‍टेयर पर 10 हजार रुपये की प्रोत्‍साहन राशि देती है। 2011 में दिल्‍ली में 266 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई और उससे 2 हजार 172 टन उत्‍पादन हुआ। 2012 में दिल्‍ली में कुल 100239 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई थी।
 

दिल्‍ली के कुल क्षेत्रफल 1.48 लाख हेक्‍टेयर का 70 फीसदी है, जो संभव ही नहीं इतनी अधिक मात्रा में खेती के बावजूद उत्‍पादन केवल एक फीसदी से भी कम 0.01 टन हुआ। इसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली सरकार को 100 करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान भी दिया। वहीं, 2013 में जैविक खेती 1 लाख हेक्‍टेयर से घटकर 58 हेक्‍टेयर तक सीमित हो गई, जिससे उत्‍पादन न के बराबर हुआ।

आंकड़े साफ दिखाते हैं कि कहीं न कहीं एक बड़ा घपला जैविक खेती के नाम पर हुआ है। एक साल जहां एक लाख हेक्‍टेयर पर खेती हो, उसका उत्‍पादन इतना कम नहीं हो सकता और अगले साल एक लाख से घटकर मात्र 58 हेक्‍टेयर तक खेती सिमट जाना भी संभव नहीं है। जाहिर है कि यह सब केंद्र सरकार से 100 करोड़ की राशि लेने के लिए किया गया था।

आंकड़ों के अनुसार राजधानी के कुल क्षेत्रफल में से 30 हजार 922 हेक्‍टेयर भूमि पर कृषि होती है। यहां जैविक खेती न के बराबर है। मामले में अधिकारी या तो कन्‍नी काट रहे हैं या एक दूसरे विभागों की गलती निकाल रहे हैं।

आरटीआई के तहत मिला डाटा

वर्ष     भूमि(हेक्‍टेयर)      उत्‍पादन(टन)

2010      12735           4766

2011        266            2172

2012       100239           0.01

2013         58             ----

सिर्फ होर्डिंग में ही दिख रहा क्लीन इंडिया मिशन


उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हत्याहरण गांव का लोहिया समग्र योजना के तहत विकास हुआ है। (बाद की तस्वीर)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को शुरू हुए आज छह माह स अधिक हो गया है। लेकिन अभी भी गांवों और शहरों से स्वच्छता गधे के सींग की तरह से गायब है। या फिर हम कह सकते हैं कि स्वच्छता अभियान अब सिर्फ पोस्टरों, बैनर्स और होर्डिंग्स में ही रह गया है। 


नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को जब इस महत्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की थी तो उन्होंने ना सिर्फ लोगों को स्वच्छता की शपथ दिलाई, बल्कि खुद भी झाड़ू थामे दिखे। फिर चाहे वह दिल्ली का मंदिर मार्ग हो या फिर उनका संसदीय क्षेत्र बनारस।

प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करके पूरे देश के लोगों को एक नई सोच देने की कोशिश की है, परन्तु इसका असर ना तो नौकरशाही और ना ही राजनेताओं पर दिखता  है। साथ ही लोग भी सफाई अभियान को सिर्फ एक प्रोपेगंडा की ही तरह ले रहे हैं। हम बात कर रहे हैं नवाबों की नगरी लखनऊ और उससे सटे इलाकों की।

उत्तर प्रदेश की सरकार सफाई व्यवस्था का अगर जायजा लेना है तो आप लखनऊ में तसरीफ लाइए। हाल ही में मुझे नई दिल्ली से घर (चौक, लखनऊ) जाना था। हरदोई पर पर कोनेश्वर चौराहे काली जी मंदिर जाने वाले मार्ग पर ही मेरा घर है। हम जैसे ही ऑटो से मेन रोड पर उतरे सड़क के किनारे ही काफी मात्रा में कूड़े का ढेर लगा हुआ था,  जो सड़ने की वजह से अनायास ही लोगों को नाक बंद करने पर विवश कर देता था। शुरुआत में तो मेरा ध्यान कूड़े की तरफ नहीं गया पर सड़न की तेज दुर्गंध ने मुझे विचलित कर दिया, लगा उल्टी हो जाएगी। मैं जैसे-तैसे सांस रोककर सीधे घर भागा।

बालागंज के पास नारायण गार्डेन मोहल्ले में तो इससे भी बुरा हाल है। वहां आप जैसे ही मेन रोड से आप उतरेंगे नाला बन चुकी सड़क से आपको दो-चार होना पड़ेगा। सड़क का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां गंदा पानी न भरा हो और 500 मीटर एरिया में सड़क का नामोनिशान न हो। हालत तो तब खराब होती है, जब सुबह बच्चे स्कूल जाते हैं या महिलाओं को बाहर जाना होता है। कभी-कभी बच्चे और महिलाएं नालेनुमा सड़क पर गिर भी जाते हैं, जिससे उन्हें चोट भी लगती है और स्कूल जाना भी रुक जाता है। मोहल्ले के निवासियों ने बताया कि हमने कई बार नगर निगम में जाकर शिकायत की, उनके ऑनलाइन एप्लीकेशन पर शिकायत भी दर्ज कराई पर मिला सिर्फ कोरा आश्वासन।

जब शहरों खासकर राजधानी का यह आलम है तो गांवों के बारे में आप सोच ही सकते हैं। अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के लोहिया गांव की।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में लोहिया गांवों का चयन किया था। उनका मिशन था कि चयनित गांवों में बिजली, सड़क और आवास जैसी सुविधाएं सभी को उपलब्ध कराई जाएंगी और गांवों को साफ-सुथरा बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

हरदोई जिले के हत्याहरण गांव में घुसने के लिए आपको नाले को पार करना पड़ेगा। भैनगांव ग्राम पंचाया के इस गांव को लोहिया समग्र ग्राम के लिए चयनित किया गया था। अगर इस गांव में आप को जाना हे तो आपके पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है कि आपको नाला पार करना पड़ेगा। फिर चाहे आप गिर जाएं या फिर आपके हाथ-पैर टूट जाएं।

गांव के निवासी राजू गोस्वामी (45 वर्ष) ने बताया, जब इस मौसम में तो यह आलम है और बारिश में आप कल्पना भी नहीं  कर सकते कि अपने घर जाना कितना मुश्किल होता है।


गांव के ही बुजुर्ग बरातीलाल सक्सेसना (58 वर्ष) बताते हैं, एक दिन शाम को मैं शौच के लिए बाहर जा रहा था, टॉर्च थी नहीं पैर फिसल गया गिर पड़ा। कड़ाके की ठंड में सारे कपड़े तो गंदे पानी से भीग ही गए पैर में फ्रैक्चर भी आ गया। 

बात करें बुंदेलखंड की तो यहां के गांवों की हालत काफी खस्ता है। ग्रामीण टूटी सड़क को बनवाने के लिए सड़क का अंतिम संस्कार कर तेरहवीं कर रहे हैं और मुख्यमंत्री सहित जिले के आलाधिकारियों को त्रयोदशी भोज के लिए आमंत्रित कर रहे हैं पर अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। शर्म तक नहीं आती।
उत्तर प्रदेश में जालौन जिले के गड़ेरना निवासियों ने टूटी सड़का अंतिम संस्कार कर उसका त्रयोदशी भोज किया।

मतलब साफ है कि किसी को भी सफाई अभियान और अन्य दूसरी योजनाओं की कतई चिंता नहीं हैं, उन्हें चिंता है तो बस इस बात की कैसे पब्लिक को बेवकूफ बनाकर अपना वोट बैंक बनाया जाए। चाहे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या फिर दिल्ली के अरविंद केजरीवाल।