गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...

आज देश 67वां स्वाधीनता दिवस मना रहा है। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हर देशप्रेमी के दिल में मां भारती के लिए अथाह प्रेम का सागर उमड़ता है। सरकारी कर्मचारी, राजनेता और मजबूरियों से घिरा आम आदमी भी शहीदों को याद कर उन्हे श्रद्दांजलि देता है और उनके जयकारे लगाता है। आजादी के 66 सालों बाद भी ये सवाल उठता है कि इस आजादी के मायने क्या हैं, सवाल उठना लाज़िमी भी है कि क्या हम सही मायने में स्वतंत्र हैं,इसका जवाब आम आदमी अक्सर अपने आप से, समाज से, देश के नेताओं से पूछता है।
    14-15 अगस्त की 1947 की मध्य रात्रि को दो शताब्दियों के बाद अंग्रेजी हुकुमत से भारत मुक्त हुआ था। आजादी के इतने सालों बाद भी आज गरीब गरीबी का दंश को झेलने पर मजबूर क्यों है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्यगत सुविधाओं के अभाव में आम आदमी जिसे राजनीतिक भाषा में वोटर कहते हैं,  घुट-घुटकर क्यों जी रहा है ?  पहली बार दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने परतंत्रता से मुक्ति की घोषणा की थी।  प्रधानमंत्री की हैसियत से नेहरू जी ने देश से जो कुछ वादा किया था , उसका क्या हुआ ? तबसे आज तक देश की स्थिति में कितना सुधार हुआ है ? देश का कितना विकास हुआ है आदि ऐसे तमाम प्रश्न हैं शायद जिनके उत्तर शायद ही मिल पायें। तब से अब तक आम आदमी की हालत लगातार खराब क्यों होती जा रही है।
     आज भी गरीबों का दैनिक खर्च सरकारी मशीनरी द्वारा हास्यास्पद तरीके से तय किया जाता है। आंकड़े गरीबी और गरीबों का मजाक उड़ाते नज़र आते हैं। उनके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में 29 और शहरी क्षेत्रों में 33 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं माना जाएगा। मजे की बात यह है कि आंकड़ा भी उन लोगों द्वारा दिया जा रहा है जो प्रतिदिन शायद हजार रुपये में भी अपना पेट नहीं भर सकते। लोगो को आशा थी की आजादी के बाद उनके  हालात बदल जाएंगें, स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। लोगों के हालात बद से बदतर होते चले गए, आर्थिक हालत खस्ता होती गई, महंगाई की मार से आम जनमानस की कमर झुकती चली गई। स्वतंत्रता के 66 सालों बाद सरकार को आज देश में गरीबों के लिए आखिर फूड सिक्योरिटी की जरूरत क्यों महसूस हो रही है।
    सुरक्षा की दृष्टि से कहीं नहीं लगता कि भारतीय लोकतंत्र 66 वर्षों पुराना है। आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की हालत दयनीय क्यों हो रही है? आंतरिक और बाहरी आततायियों से भारत की हालत खस्ता क्यों है ?  देश में जगह-जगह समुदाय विशेष के बीच खूनी संघर्ष हो रहा है, जिसमें निर्दोषों की जान जा रही है। ताजा उदाहरण जम्मू के किश्तवाड़ और बिहार में नवादा की साम्प्रदायिक हिंसा है। दंगों को रोकने में शायद सरकार असहाय साबित हो रही है, और तो और राज्य सरकारों पर हिंसा को बढ़ावा देने के संगीन आरोप भी लगते हैं। वहीं नक्सल समस्या देश के सामने सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है। ऐसा लगता है जिसका न तो राज्य सरकारों और न ही केंद्र के पास कोई समुचित विकल्प है और शायद न ही इस समस्या से निपटने के लिए कोई सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं।
     देश की आंतरिक सुरक्षा जैसी है वैसी है लेकिन विशाल गणतंत्र की बाहरी सीमाएं भी शायद रामभरोसे हैं। चीन जब-तब आंख दिखाता रहता है, लद्दाख क्षेत्र में हमारी जमीन पर घुस आता है, और उसी समय हमारे विदेश मंत्री चीन जाकर क्यों उसका गुणगान करते हैं ? बांग्लादेश से सटी देश की सीमाएं भी सुरक्षित क्यों नहीं हैं ? पाकिस्तान लगातार सीज़फायर का उल्लंघन करता जा रहा है और हमारे कर्ता-धर्ता हाथ पर हाथ धरे मुस्करा रहे हैं। पाकिस्तान की सेना हमारे घर में घुसकर जवानों के सिर काटकर ले जाती है और हमारे माननीय रक्षामंत्री जी को प्रथमदृष्टया पाकिस्तान पाक-साफ क्यों दिखता है ? हमारी रगों में बहता खून पानी क्यों हो गया है ? हमारे जज्बात क्यों नहीं उबलते, क्यों जवानों की शहादत पर हमारा खून नहीं खौलता ? हमारे जनप्रितिनिधियों के दिल में देश-प्रेम की भावना हिलोरे क्यों नहीं मारती ? चंद्रशेखर, भगतसिंह, वीर शिवाजी और महाराणा प्रताप की धरती पर जन्में आज वीरों को क्या हो गया है ? क्यों उन्हे लकवा मार गया है ? उनकी वीरता को सांप क्यों सूंघ गया है? पाकिस्तानी सैनिक बार-बार हमारे घर में घुसकर हमारे जवानों पर गोलियां बरसाये जा रहे हैं और हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी लंबे समय तक क्यों मौन धारण किये रहते हैं ?
     कभी अपने संस्कारों और देशभावना के लिए दुनिया में जाना जाने वाला विवेकानंद का भारत भारत आज वि·ाभर में अपने घोटालों के कारण क्यों पहचाना जा रहा है? राम कृष्ण की उस पावन धरती पर जिसमें कभी महात्मा गांधी,लालबहादुर शास्त्री, सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे तमाम महान नेता हुए हैं । आज उसी महादेश के अधिकांश खेवनहार चारों तरफ लूट-खसोट क्यों मचाए हुए हैं ? और देश की आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक अखंडता को अपने स्वार्थ के लिए क्यों चकनाचूर कर रहे हैं ? गरीबों के लिए स्कीमें तो चलाई जाती हैं लेकिन भ्रष्टाचार के दानव ने उसे लील जाता है,  पात्र गरीबों तक उन योजनाओं का फायदा नहीं पहुंच पाता है। इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है ? अगर आज आम आदमी महंगाई में छटपटा रहा है, तड़प रहा है और खून के आंसू रोने के लिए विवश है तो इसका जिम्मेदार कौन है।
     सरकार विकास का दावा करनें में सरकार पीछे नहीं रहती लेकिन सरकार ने कितने लोगों के लिए नए रोजगार का सृजन किया इसके आंकड़े शायद सरकार के पास भी न हों ! रोजगार की गारंटी देने वाली सरकार को शायद ये भी न पता हो कि हमारे देश में बेरोजगारों की संख्या क्या  है ? वोट बैंक बढ़ाने के लिए सरकार बेरोजगारी भत्ता देने की बात यदाकदा अवश्य करती है, लेकिन नए रोजगार पैदा करने की योजनाएं शायद सरकारी फाईलों में ही दम तोड़ती रहती हैं।
     क्या यह वही भारत है जिसका सपना गांधी और नेहरू सहित हमारे देश के तमाम भाग्यविधाताओं ने देखा था। क्या हमारे देश के नियंताओं ने कभी सपने में भी सोचा था कि उनके सपनों का भारतवर्ष, भ्रष्टाचार, बेईमानी, हत्या,बलात्कार और  वैमनस्ता जैसे गंभीर बीमारी से ग्रस्त होगा। राष्ट्र की हालत देख कर स्वतंत्रता की बेदी पर अपने प्राणों की आहूति देने से भी गुरेज न करने वाले राष्ट्र प्रदर्शक शायद आज स्थिति देखकर सदमे से ही मर जाते ? काल के कपाल पर अपना नाम अमिट छोड़ने वोले देश के वीरों ने शायद ही ऐसे भारत की कल्पना की हो। उसके उलट आज देश के बहुसंख्यक महामहिम नेताओं पर शायद ही कोई जघन्य अपराध हो,जिसका आरोप न लगा हो। इन कर्णधारों ने हमें ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है, जिसकी कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने शायद ही की हो।
      आज देश भर में स्वाधीनता दिवस संगीनों के साये में मनाया जा रहा है।  हर तरफ डर और खौफ का माहौल है।     ऐसी हालत में क्या हम आज स्वतंत्रता दिवस को एक उत्सव की तरह मना पाएंगे ? क्या इस स्वतंत्रता दिवस पर हमारे कर्णधार अपना निजी हित छोड़कर देशहित कोई ऐसा प्रण लेंगे जिससे देश विकास की पटरी पर आ सके। अगर हम अपने देश की अस्मिता और अखंडता पर प्रहार करने वालों के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं ले सकते, मातृभूमि पर शहीद होने वाले वीर सपूतों के आदर्शों को अपना न सकें तो फिर हम यह ढोंग क्यों कर रहे हैं? ऐसे में स्वाधीनता दिवस मनाने का क्या अभिप्राय है।


वन्दे मातरम...वन्दे .... वन्दे मातरम.... भारत हमको जान से भी प्यारा है...
   

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