दिल्ली में मासूम बच्ची से जिस तरह की दरिंदगी हुई, घिनौने काम को अंजाम दिया गया, इंसानियत शर्मसार हुई। राजधानी समेत पूरे देश में बेटियों के समर्थन में एक साथ हजारों हाथ उठ खड़े हुए। बिल्कुल वैसे ही जैसे 16 दिसंबर को दामिनी के लिए पूरा देश एक जाज़म पर खड़ा नज़र आ रहा था,तब लग रहा था जैसे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाये जाएंगे। कदम उठे भी और सख्त कानून भी बने, लेकिन नतीजा ! फिर वही ढ़ाक के तीन पात। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कानून बनाने भर से बेटियों को बचाया जा सकेगा ? उनकी हिफाजत की जा सकेगी ?। बात केवल दामिनी या गुड़िया की नहीं है, जिनके साथ दरिंदों ने हैवानियत की सारी सीमाएं तोड़ दीं, बल्कि पूरे देश में जिस तरह से आए दिन बहन,बेटियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है, बेहद शर्मनाक है ।
कानून बनाना ही किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, जब तक हर नागरिक के मन में कानून और उसके मूल भावों के प्रति आदर भाव ना हो। जब तक हम सच्चे मन से महिलाओं के विभिन्न स्वरूपों का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, हम चाहे जितने भी कानून बना लें, कुछ नहीं हो सकता।
पिछले कुछ मामलों में जिस तरीके से पुलिस का गैर जिम्मेदाराना रवैया रहा है, चिंता का विषय है। बात चाहे हरियाणा की हो, अलीगढ़ की हो, या फिर कहीं और की , ऐसे मामलों में ना केवल आम नागरिकों को बल्कि पुलिस को भी संवेदना दिखानी होगी।उसे भी अपने रवैये में बदलाव करना ही पड़ेगा, तभी हम एक आदर्श और भयमुक्त समाज के निर्माण की कल्पना कर पाएंगे।
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