पिछले कई महीनों से मैं हैदराबाद में जॉब कर रहा हूँ, यहां आये दिन अलग तेलंगाना प्रदेश बनाने की मांग को लेकर हंगामा होता रहता है । लगभग हर माह दस से पन्द्रह दिनों में औसतन एक बार बन्द हो ही जाता है ।
ऐसा पिछले कितने ही वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात । प्रदर्शनकारियों की तेलंगाना को आन्ध्रप्रदेश से अलग राज्य बनाने की मांग से सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती।
आये दिन यहाँ पर आन्दोलन होते रहते हैं, पता चला कभी बस बन्द है तो कभी ऑटो सेवा,कभी कर्मचारियों की हड़ताल तो कभी किसी की हड़ताल ।
कहने का मतलब अगर आप राजनेता हैं,बड़े व्यवसायी हैं या फिर सभी साधनों से संपन्न हैं तो आप पर बन्द का कोई असर नहीं पड़ने वाला । आपको पता भी नहीं चलेगा कि आज बन्द है, हां यह जरुर है कि आपको शायद दौड़ते-भागते किसी बस का इन्तजार करते सामान्य लोग न दिखाई पड़ें ।
जहां तक मेरा मानना है,आप ऐसे कितने ही प्रदर्शन करते रहेंगे पर शायद किसी पर प्रभाव पड़े । हां अगर प्रभाव पड़ेगा भी आम जनमानस पर । बन्द से परेशानी तो आम लोगों को ही होती है,सारे निजी वाहन चलते रहते हैं,केलल पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रभावित होता है ।
ये कैसा बन्द है भाई ,रोज-रोज बन्द करने से अच्छा है एक ही बार में पूरी तरह से बन्द कर दो । क्योकि मेरा मानना है कि बार-बार मरने से एक ही बार में मर जाना अच्छा होता है ।
मैं उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूं,मुझे याद है कि जिस दिन हमारे यहां बन्द होता है उस दिन सड़क,बाजार,हाट सब कुछ बन्द रहता है चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा दिखाई देता है । अगर कहीं कुछ दिखता है तो केवल आंदोलनकारी और पुलिस ही दिखती है । उन आन्दोलनकारियों में एक दृढ निश्यय होता है अन्ना हजारे की तरह, न कि बाबा रामदेव की तरह । मांगे पूरी होने तक पुलिस के डन्डे खाते हैं या फिर जेल जाते हैं,मगर ड़टे रहते हैं
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि एक घटना का मैं खुद प्रत्यक्षदर्शी था ,18 सितम्बर को बन्द के दौरान मैं बस से ऑफिस जा रहा था,रास्ते में एक जगह कुछ तेलंगाना समर्थक प्रदर्शनकारी जाम लगाये हुए थे । तभी वहां सॉयरन बजाती एक पुलिस जिप्सी तेजी से आई और उसमें से ड़ण्डे लेकर दस-बारह जवान बाहर कूदते ही प्रदर्शनकारियों पर झपट पड़े । देखते ही देखते कुछ ही देर में सारे प्रदर्शनकारी पानी की काई की भांति,पता नहीं चला कहां गायब हो गये ।हम सबकी हंसी छूट गयी प्रदर्शनकारियों के हौसले को देखकर ।
मुझे लगता है अगर आप प्रदर्शन किसी भी सामान्य मुद्दे को लेकर तो भी आपको संगठित एवं गृढ निश्चयी होना चाहिए फिर तेलंगाना तो इतना बड़ा मुद्दा है । कुछ ऐसा करो कि इस रोज-रोज के बन्द से लोगों को मुक्ति मिल सके और सामान्य जीवन निर्बाध रूप से चल सके । इससे सरकार पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता अगर कोई प्रभावित होती है तो बस लुटी-पिटी जनता ही,जिसके लिए आप यह सब करना चाहते हैं ।कुछ लोग तो ऐसे हैं जो रोज काम करके ही अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं,बन्द के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हे और देश के भविष्य कहे जाने वाले मासूम बच्चों को ही होती है, उनका स्कूली जीवन प्रभावित होता है ।
यही कारण है पिछले कई दिनों से तेलंगाना की मांग जोर पकड़ तो रही है पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है ।
मेरे गुरूजी कहा करते थे-
अगर डूब के मरना ही है तो समुद्र में ड़ूबों न कि तालाब में, अर्थात पूरे एक बार में पूरे मनोबल के साथ प्रदर्शन करो,नहीं तो छोड़ो यह सब और खुद जियो और जीने दो ।
ऐसा पिछले कितने ही वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात । प्रदर्शनकारियों की तेलंगाना को आन्ध्रप्रदेश से अलग राज्य बनाने की मांग से सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती।
आये दिन यहाँ पर आन्दोलन होते रहते हैं, पता चला कभी बस बन्द है तो कभी ऑटो सेवा,कभी कर्मचारियों की हड़ताल तो कभी किसी की हड़ताल ।
कहने का मतलब अगर आप राजनेता हैं,बड़े व्यवसायी हैं या फिर सभी साधनों से संपन्न हैं तो आप पर बन्द का कोई असर नहीं पड़ने वाला । आपको पता भी नहीं चलेगा कि आज बन्द है, हां यह जरुर है कि आपको शायद दौड़ते-भागते किसी बस का इन्तजार करते सामान्य लोग न दिखाई पड़ें ।
जहां तक मेरा मानना है,आप ऐसे कितने ही प्रदर्शन करते रहेंगे पर शायद किसी पर प्रभाव पड़े । हां अगर प्रभाव पड़ेगा भी आम जनमानस पर । बन्द से परेशानी तो आम लोगों को ही होती है,सारे निजी वाहन चलते रहते हैं,केलल पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रभावित होता है ।
ये कैसा बन्द है भाई ,रोज-रोज बन्द करने से अच्छा है एक ही बार में पूरी तरह से बन्द कर दो । क्योकि मेरा मानना है कि बार-बार मरने से एक ही बार में मर जाना अच्छा होता है ।
मैं उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूं,मुझे याद है कि जिस दिन हमारे यहां बन्द होता है उस दिन सड़क,बाजार,हाट सब कुछ बन्द रहता है चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा दिखाई देता है । अगर कहीं कुछ दिखता है तो केवल आंदोलनकारी और पुलिस ही दिखती है । उन आन्दोलनकारियों में एक दृढ निश्यय होता है अन्ना हजारे की तरह, न कि बाबा रामदेव की तरह । मांगे पूरी होने तक पुलिस के डन्डे खाते हैं या फिर जेल जाते हैं,मगर ड़टे रहते हैं
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि एक घटना का मैं खुद प्रत्यक्षदर्शी था ,18 सितम्बर को बन्द के दौरान मैं बस से ऑफिस जा रहा था,रास्ते में एक जगह कुछ तेलंगाना समर्थक प्रदर्शनकारी जाम लगाये हुए थे । तभी वहां सॉयरन बजाती एक पुलिस जिप्सी तेजी से आई और उसमें से ड़ण्डे लेकर दस-बारह जवान बाहर कूदते ही प्रदर्शनकारियों पर झपट पड़े । देखते ही देखते कुछ ही देर में सारे प्रदर्शनकारी पानी की काई की भांति,पता नहीं चला कहां गायब हो गये ।हम सबकी हंसी छूट गयी प्रदर्शनकारियों के हौसले को देखकर ।
मुझे लगता है अगर आप प्रदर्शन किसी भी सामान्य मुद्दे को लेकर तो भी आपको संगठित एवं गृढ निश्चयी होना चाहिए फिर तेलंगाना तो इतना बड़ा मुद्दा है । कुछ ऐसा करो कि इस रोज-रोज के बन्द से लोगों को मुक्ति मिल सके और सामान्य जीवन निर्बाध रूप से चल सके । इससे सरकार पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता अगर कोई प्रभावित होती है तो बस लुटी-पिटी जनता ही,जिसके लिए आप यह सब करना चाहते हैं ।कुछ लोग तो ऐसे हैं जो रोज काम करके ही अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं,बन्द के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हे और देश के भविष्य कहे जाने वाले मासूम बच्चों को ही होती है, उनका स्कूली जीवन प्रभावित होता है ।
यही कारण है पिछले कई दिनों से तेलंगाना की मांग जोर पकड़ तो रही है पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है ।
मेरे गुरूजी कहा करते थे-
अगर डूब के मरना ही है तो समुद्र में ड़ूबों न कि तालाब में, अर्थात पूरे एक बार में पूरे मनोबल के साथ प्रदर्शन करो,नहीं तो छोड़ो यह सब और खुद जियो और जीने दो ।
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