नौटंकी एक ऐसा नाम है जिससे लगभग हर भारतीय परिचित है | नौटंकी प्राचीन काल से ही लोगों का मनोरंजन करती आ रही है, पहले आज जैसे टी वी,रेडियो,थियेटर या अन्य मनोंजन के साधन उपलब्ध नहीं थे , तब नौटंकी ही एकमात्र लोगों का मनोरंजन करती थी |
मुग़ल काल में नौटंकी का जिक्र मिलता है,भक्तिकाल में भी कबीरदास की रचनाओं में नौटंकी का जिक्र मिलता है |
पहले नौटंकी को स्वांग कहा जाता था ,जिसका अर्थ होता है नक़ल करना |प्रचलित प्रसिद्ध पुस्तकों एवं लोक कथाओं के नायको की नक़ल की जाती थी और उनकी कहानियों को कलाकारों के माध्यम से दिखाया जाता रहा है |\
स्याहपोश,सुल्ताना डाकू,इंदल हरण,अमर सिंह राठौर,भक्त पूरनमल एवं हरिश्चंद्र- तारामती आदि नौटंकियाँ पुराने समय से ही दिखाई जाती रही हैं |
स्वतंत्रता काल में महात्मा गाँधी ने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से प्रेरणा लेते हुए सत्य बोलने का प्राण लिया था |
नौटंकी की अपनी शैली एवं उसके अपने वाद्य यन्त्र (जैसे तबला ,हारमोनियम ,नक्कारा आदि) हैं | एक जानकर के अनुसार - आज नौटंकी केवल सरकारी विज्ञापनों पर ही जीवित है,नौटंकी के ही माध्यम से सरकार जनता तक अपना सन्देश एवं जागरूकता फैलाती है |
पूरे भारत में दो तरह की नौटंकी की शैलियाँ हैं ....
१-हाथरस शैली
२-कानपुर शैली
नौटंकी पर उर्दू, फारसी के अलावा क्षेत्रीय भाषा का सदैव दबदबा रहा है और एक वर्ग विशेष पर इसकी पकड़ रही है |कुलीन वर्ग नौटंकी को कमतर समझता है जबकि कुलीनों से हटकर कम शिक्षित , नारी समाज के लिए नौटंकी सदैव कौतूहल की विषय वस्तु रही है | निम्नवर्गीय एवं अशिक्षित समाज इसलिए इस ओर आकर्षित होता है क्यूंकि इसकी प्रस्तुतीकरण ,भाषा एवं शैली सीधी ,सरल एवं मर्मस्पर्शी होती है |इसका मतलब यह नहीं की केवल अशिक्षित एवम वर्ग विशेष में ही नौटंकी लोकप्रिय है |आज भी कुलीन एवं शिक्षित वर्गों में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन नौटंकी के लिए समर्पित कर दिया है |
नौटंकी में महिला कलाकारों का भी विशेष योगदान रहा है, महिलाओं के आने से नौटंकी की दिशा एवं दशा में परिवर्तन हुआ है |ऐसी ही प्रसिद्ध कलाकार हैं गुलाबबाई उन्हने १९३१ में १२ वर्ष की उम्र में प्रथम महिला कलाकार के रूप में कदम रखा ,उससे पहले नौटंकी महिलाओं का रोल पुरुष ही करते थे | गुलाबबाई का सारा जीवन नौटंकी के मंच पर बीता और अंत समय तक वो नौटंकी के विकास में ही लगी रहीं |तब से लेकर अब तक नौटंकी में महिला कलाकारों का विशेष योगदान रहा है और आज भी नौटंकी के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रहीं हैं |
वर्तमान समय में नौटंकी अपना मूलरूप खोती जा रही है,अब नौटंकी में अपभ्रंश एवं द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग अधिक होता हैं जिससे गांवों,कस्बो में एक वर्ग विशेष ही नौटंकी में अपनी रूचि रखता है|
उत्तरप्रदेश का लोक्न्रत्य होने के बावजूद नौटंकी अंतिम सांसें गिन रही है ,इसके विकास के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं | कभी-कभी जो पैसा सरकार की तरफ से नौटंकी के विकास के लिए पास होता है वह बिचोलियों द्वारा हड़प लिया जाता है |
आज भी नौटंकी को आगे बढ़ने के लिए कई बुद्धिजीवी जी जन से जुटे हैं और नौटंकी के विकास के लिए समुचित प्रयास कर रहे हैं, जैसे उर्मिल थाप्रियाल - 'इन्होने नई तरह की नौटंकी' 'नागरी नौटंकी' लिखी और उस पर खोज कर रहे हैं इसके अलावा आदमजीत सिंह,अशोक बैनर्जी मधु अग्रवाल,अलोक रस्तोगी,त्रिमोहन जी,एवं जुगलकिशोर आदि ऐसे प्रमुख नाम हैं जो नौटंकी के विकास के लिए प्रयासरत हैं |
कुछ बुद्धिजीवी नौटंकी की लोकप्रियता समाप्त होने का कारण बताते हैं ----
१-नौटंकी का करेंट अपडेशन न होना
२-नए विषयों या नई कहानियो का न दिखा पाना
३-कलाकारों को उचित पैसा एवं प्रोत्साहन न मिल पाना
४-सरकार द्वारा नौटंकी के विकास के लिए ठोस कदम न उठाना
५-साल में कम से कम नौटंकी का प्रदर्शित हो पाना ........आदि
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