गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

फसल नुकसान पर मुआवज़े का ‘झुनझुना’

उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान हो या फिर अन्य कोई राज्य फसल नुकसान के सदमे ने सैकड़ों किसानों को मौत के मुंह में धकेल दिया। हर साल सैकड़ों किसान आत्महत्या की मूक गवाही देने वाले देश में किसान आत्महत्या का मीटर तेजी से बढ़ने के लिए इतनी तबाही काफी थी

हालांकि मोदी सरकार के मंत्री दावा कर रहे हैं कि वह बर्बाद हुए किसान के साथ खड़े हैं। इतना ही नहीं, खुद केन्द्र और राज्य ने नियमों से परे जाकर किसानों को मदद की बात कही थी, पर सच यह है कि अब तक किसानों को कोई मदद नहीं मिली है। बारिश-ओलावृष्टि से से आहत हुए किसानों का अब सरकारी लीपापोती से भरोसा उठने लगा है। सब्र जवाब दे रहा है। क्योंकि राहत का झुनझुना अभी भी किसानों से कोसों दूर है। यह हाल तो तब है जब सरकार खुद किसानों का दर्द जानने खेतों तक पहुंची थी। सैकडों विधायकों को विधानसभा से छुट्टी देकर उनके क्षेत्रों में भेजा गया। लेकिन रिजल्ट वही ढाक के तीन पात


मुआवज़ा कितना और कब मिलेगा? और क्या फसल बीमा की तमाम योजनाएं वाकई किसान के काम आएंगी?  सवाल का जवाब देते हुए लगातार विरोध प्रदर्शन में जुटे भारतीय किसान यूनियन के बुंदेलखंड अध्यक्ष बताते हैं, ''अभी तो किसानों को पिछले साल रबी सीजन में हुए नुकसान के चेक ही आ रहे हैं.'' ऐसे में अब हफ्ते-दस दिन में राहत राशि मिलने की उम्मीद जताना बेइमानी होगा। यही हाल देश के तमाम राज्यों का है।

मुआवज़ा देने की एक तय प्रक्रिया है। थोड़े बहुत अंतर के साथ सभी राज्यों में यही दास्तान है। बीमा या फसलों की बर्बादी का मुआवजा तभी मिलता है जब एक ब्लॉक के 70 प्रतिशत भूमि पर नुकसान हुआ हो। झांसी के ही किसान रामनरेश बताते हैं कि हर खेत में पचास प्रतिशत नुकसान का होना ज़रूरी है तभी मुआवज़े की राशि तय होगी। पटवारी मानता ही नहीं है कि सत्तर प्रतिशत खेतों में नुकसान हुआ है। अगर वो मान भी लिया तो हर खेत के नुकसान को 50 प्रतिशत से कम बता देता है जिससे मुआवज़े पर दावेदारी कम हो जाती है। मुआवज़ा मिल भी गया तो 20 या पचास रुपये से ज्यादा नहीं मिलता है।

सरकारों ने एकड़ के हिसाब से जो मुआवज़ा तय कर रखा है वो साढ़े तीन हज़ार के आस पास ही है। जबकि एक एकड़ ज़मीन में गेहूं बोने पर आठ से दस हज़ार की लागत आती है। आलू का खर्चा पंद्रह हज़ार के करीब बैठता है। फसल अच्छी हो कमाई तीस से पचास हज़ार के बीच होने की उम्मीद रहती है। यानी राहत या बीमा की राशि इनती कम हो कि लागत भी न निकले।

देश में मुआवजा बांटने की प्रक्रिया ही इतनी पुरानी और सुस्त है कि किसान कितना भी धरना-प्रदर्शन कर लें, मुआवजा मिलने में महीनों और पूरा मुआवजा मिलने में सालों लग जाएंगे। क्योंकि मुआवजे का सर्वे लेखपाल ही करते हैं और उनकी कार्यप्रक्रिया किसी से भी छिपी नहीं है। चलिए माना कि वो जांच में थोड़ी पारदर्शिता दिखाते भी हैं तो कितने दिनों में वे ऐसा कर पाएंगे।

मिसाल के तौर पर झांसी जिले को ही ले लें। यहां कोई 600 राजस्व गांव हैं, जिनमें करीब 2.5 लाख किसान हैं और उनका सर्वे करने के लिए मात्र लगभग 200 लेखपाल तैनात हैं। यानी एक लेखपाल के पास औसतन 3 राजस्व गांव और डेढ़ से दो हजार खाते हैं। नियम के मुताबिक लेखपाल को एक-एक खेत में जाकर वहां हुए नुकसान का सर्वे करना होता है। ऐसे में हफ्ते भर के अंदर अगर कोई लेखपाल हर खेत में हुए नुकसान का पूरा ब्योरा दर्ज कर लेता है तो दुनिया का आठवां अजूबा ही माना जाएगा।


सोमवार, 5 जनवरी 2015

सिडनी विजय कर कोहली खत्म करेंगे 37 साल का सूखा?


जनवरी 2004 में भारत ने पहली पारी में इसी ग्राउंड पर बनाए थे सात विकेट पर 705 रन।
न्यू साउथ वेल्स (सिडनी)। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में गवां चुकी है। चार मैचों की सीरीज में भारत अभी मेजबानों से 2-0 से पीछे है और अभी टीम को जीत का खाता खोलना बाकी है, जबकि तीसरा टेस्ट ड्रॉ रहा था।


भारत ने इस मैदान पर एकमात्र जीत 1978 में दर्ज की थी। प्रसन्ना, बेदी और चंद्रशेखर की स्पिन तिकड़ी ने ऑस्ट्रेलिया को एक पारी और दो रनों से हार पर मजबूर किया था। उसके बाद से भारतीय टीम इस मैदान पर जीत का स्वाद नहीं चख सकी है।

भारत के सबसे सफलतम टेस्ट कप्तान धोनी के सन्यास लेने के बाद नए साल में नए टेस्ट कप्तान बने विराट कोहली के सामने कई चुनौतियां होंगी। टीम इंडिया अपने नए कप्तान विराट कोहली के नेतृत्व में सिडनी क्रिकेट मैदान पर हार की हैट्रिक से बचना चाहेगी। इस मैदान पर भारत 2008 और 2012 में अपने पिछले दो मुकाबले गंवा चुका है। भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीमें छह जनवरी से एक बार पिर यहां आमने-सामने होंगी। यह दोनों टीमें के बीच 11वां मुकाबला होगा। इनमें से पांच में ऑस्ट्रेलिया को जीत मिली है, जबकि एक में भारत जीता है। चार मुकाबले बराबरी पर छूटे हैं।

सिडनी में मौजूदा भारतीय टीम के चार खिलाड़ी ही खेले हैं। कप्तान विराट कोहली, इशांत शर्मा, उमेश यादव और रविचंद्रन अश्विन 2012 में इस मैदान पर हुए टेस्ट में टीम का हिस्सा थे। इशांत शर्मा को दो मैच खेलने का अनुभव है। वे 2008 में भी टीम का हिस्सा थे।

रिकॉर्डों की बात करें तो सिडनी मैदान पर मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बल्ले ने जमकर रन बरसाए हैं। उनके रिकॉर्ड के आगे ऑस्ट्रेलिया के महान बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन, पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग और माइकल क्लार्क भी फेल हैं।

157 के एवरेज से बनाए हैं रन
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने 1992 और 2012 के बीच पांच मैच खेले। इस दौरान उन्होंने 157 की औसत से 9 पारियों में तीन शतक और दो अर्धशतक की बदौलत 785 रन बनाए हैं। उनका बेस्ट स्कोर नाबाद 241 रन है। यह सचिन के टेस्ट करियर की भी बेस्ट पारी है। सिडनी में ब्रैडमैन का 58.58 (703 रन), रिकी पोंटिंग का 67.27 (1480 रन) और माइकल क्लार्क का एवरेज 47.68 (763 रन) रहा है।

माइकल क्लार्क का जवाब नहीं
इस मैदान पर एक पारी में सर्वाधिक स्कोर बनाने का रिकॉर्ड माइकल क्लार्क के नाम है। उन्होंने नाबाद 329 रन बनाए हैं।

इन भारतीयों ने भी बरसाये रन
भारतीय बल्लेबाजों के नाम इस मैदान पर दूसरे और चौथे विकेट की साझेदारी का रिकॉर्ड है। सुनील गावसकर और मोहिंदर अमरनाथ ने 1986 में दूसरे विकेट के लिए 224 रन जोड़े थे। इसके अलावा सचिन तेंडुलकर और वीवीएस लक्ष्मण ने 2004 में चौथे विकेट के लिए 353 रन की साझेदारी की थी।

1986 में 600 रन बनाए
जनवरी, 1986 में गावसकर (172) और अमरनाथ (138) ने 191 रनों के कुल योग पर के. श्रीकांत (116) का विकेट गिरने के बाद भारतीय स्कोर को 415 रनों तक पहुंचाया था। भारत ने उस मैच में चार विकेट पर 600 (घोषित) रन बनाए थे।

सिडनी में भारत का उच्च स्कोर
जनवरी, 2004 को शुरू हुए चौथे टेस्ट में सचिन (241) और लक्ष्मण (178) ने 194 रनों पर तीन विकेट गिरने के बाद भारतीय पारी को 547 रनों तक पहुंचाया था। सचिन ने इस मैच में अपना सर्वोच्च टेस्ट स्कोर खड़ा किया था। भारत ने सात विकेट पर 705 रन बनाकर पारी घोषित कर दी थी।

फोटो- ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर अनुष्का शर्मा संग कई बार नजर आए विराट कोहली। इस बार उनके साथ टीम इंडिया के डायरेक्टर रवि शास्त्री भी नजर आये।

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

न धोनी, न गांगुली, पहले ही मैच में कोहली नंबर वन कप्तान

टेस्ट मैच की दोनों पारियों में शतक जडऩे वाले पहले भारतीय कप्तान बने विराट कोहली

एडिलेड। धोनी की अनुपस्थिति में टीम इंडिया की कमान संभाल रहे विराट कोहली ने एडिलेड टेस्ट की दूसरी पारी में भी सेंचुरी जड़ दी। एक टेस्ट मैच की दोनों पारियों में शतक लगाने वाले वे इंडिया के इकलौते कप्तान हैं। वैसे तो सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी टीम इंडिया के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट कप्तान रहे हैं, लेकिन विराट ने धमाकेदार डेब्यू से इन सभी को पीछे कर दिया है। गांगुली ने बतौर कप्तान डेब्यू पर 84 रन की पारी खेली थी, वहीं धोनी पचासा तक नहीं लगा सके थे।


विराट ने एडिलेड में कप्तान की जिम्मेदारी निभाते हुए पहली पारी में 115 रन बनाए थे। उसके बाद सेकंड इनिंग में भी उन्होंने मोर्चा संभालते हुए शतक जड़ा।

दुनिया के दूसरे कप्तान
विराट कोहली का बतौर कप्तान यह पहला टेस्ट भी है। बतौर कप्तान डेब्यू टेस्ट की दोनों पारियों में शतक लगाने वाले वे दुनिया के महज दूसरे बल्लेबाज हैं। उनसे पहले यह कारनामा ग्रेग चैपल ने किया था। चैपल ने 28 नवंबर 1975 को ब्रिसबेन में हुए टेस्ट मैच में पहली बार कप्तानी संभाली थी। उन्होंने वेस्ट इंडीज के खिलाफ मुकाबले में क्रमश: 123 व 109* रन की पारियां खेली थीं। वह मैच ऑस्ट्रेलिया 8 विकेट से जीता था।

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

कीवी टेस्ट टीम में शामिल लुधियाना का यह बॉलर अब उड़ाएगा धोनी की नींद!

ऑकलैंड। न्यूजीलैंड में कीवी गेंदबाजों के आगे घुटने टेकने वाली धोनी ब्रिगेड को अब टेस्ट सीरीज में एक और मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। इस बार न्यूजीलैंड टीम में पेसर्स के अलावा एक भारतीय स्पिनर भी टीम इंडिया के लिए मुसीबत बनेगा।

न्यूजीलैंड के सेलेक्टर्स ने लोहे से लोहे को काटने वाला तरीका अपनाया है। भारतीय खिलाड़ियों की स्पिन खेलने की क्षमता जग-जाहिर है, ऐसे में टेस्ट टीम के लिए एक ऐसे 'भारतीय खिलाड़ी' का चयन किया गया है। जो गेंद को स्पिन कराने में तो माहिर है साथ ही बल्ले से भी रन बनाने में सक्षम है।

भारतीय मूल के इस खिलाड़ी को न्यूजीलैंड के दिग्गज स्पिनर व पूर्व कप्तान डेनियल विटोरी के स्थान पर टीम में शामिल किया गया है।  6 फरवरी से होने वाली टेस्ट सीरीज में यह खिलाड़ी न्यूजीलैंड का सीक्रेट हथियार साबित हो सकता है।

टेस्ट सीरीज में लुधियाना के 21 वर्षीय इंदरबीर सिंह सोढ़ी को न्यूजीलैंड की टेस्ट टीम में शामिल किया गया है। इंटरनेशनल क्रिकेट में 5 टेस्ट में 11 विकेट लेने वाले सोढ़ी को टीम में रखा गया है और वे टीम के इकलौते स्पिनर होंगे।

सोढ़ी भारतीय लेग स्पिनर अनिल कुंबले को अपना आइडियल मानते हैं। सोढ़ी ने अब तक ब्लैक कैप्स के साथ पांच टेस्ट मैच खेले हैं और पांचों में ही न्यूजीलैंड की जीत हुई है।

सोढ़ी ब्लैक कैप्स के लिए टेस्ट खेलने वाले पहले भारतीय मूल के खिलाड़ी हैं वहीं, कीवीज के लिए खेलने वाले वे दूसरे इंडिया बॉर्न हैं।

सोढ़ी 4 साल के थे जब उनके डॉक्टर पिता न्यूजीलैंड में बस गए थे। ईश की परवरिश ऑकलैंड में हुई है। उनकी पहली पसंद तेज गेंदबाजी थी, लेकिन बाद में पूर्व कीवी स्पिनर दीपक पटेल ने उन्हें स्पिन गेंदबाजी के लिए प्रोत्साहित किया।

सोढ़ी ने 9 अक्टूबर 2013 को बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में टेस्ट डेब्यू किया था। उन्होंने अब तक 5 टेस्ट मैचों की 8 पारियों में 11 विकेट झटके हैं वहीं, बल्लेबाजी में भी हाथ आजमाते हुए इतने ही टेस्ट में 30.40 की एवरेज से कुल 152 रन बनाए हैं। टेस्ट मैचों में उनका उच्चतम स्कोर 58 रन है।

प्रथम श्रेणी क्रिकेट
सोढ़ी ने 23 प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच खेलते हुए कुल 46 विकेट लिए हैं, वहीं बल्लेबाजी करते हुए इतने ही मैचों में 5 अर्धशतकों के साथ कुल 667 रन बनाए हैं।

लिस्ट 'ए' मैच
लिस्ट 'ए' के तीन मैचों में ईश ने कुल 3 विकेट लिए हैं, साथ ही बल्लेबाजी करते हुए 29 रन बनाए हैं।




बुधवार, 18 दिसंबर 2013

यहां अभी भी चलता है जंगलराज …


आज मैं इलाज के सिलसिले में संडीला गया था, जोकि हरदोई जिले में पड़ता है. सौभाग्य से मेरा गाँव भी संडीला तहसील में ही है. लेकिन इस बार जब मैं संडीला गया तो शहर के हालात कुछ बदले-बदले लगे, सड़कें एकदम लकालक साफ़ थीं, हर तरफ ट्रैफिक को कंट्रोल करते पुलिसकर्मी नजर आ रहे थे, कुल मिलाकर ऐसा लग रहा रहा जैसे मैं किसी साउथ इंडिया की सिटी में आ गया हूँ, पर जैसे ही चौराहे पर पंहुंचा, लोंगों से पूंछा , और बड़े-बड़े होर्डिंग्स देखा तो पता चला ऐसा कुछ भी नही है जैसा मैं सोच रहा था दरअसल आज कसबे में यू पी के सीएम अखिलेश यादव जी के आज़म चचा आ रहे हैं. 

   यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री के स्वागत के लिए शानदार व्यवस्था की गई थी,  मेनरोड को नगरीय विकास मंत्री के स्वागत के लिए चमाचम किया गया था, रोड्स को नहलाया गया था इतना ही नहीं हमेशा गन्दी रहने वाली सड़कों के किनारे चूना भी डाला गया था ताकि खूबसूरत भी दिखें। खैर मुझे क्या मतलब मैं तो दवा लेने गया था, सो दिमाग पर जोर न देकर अपने काम से लग गया.
लेकिन जब मैं वापस आ रहा था तभी मैंने एक पटाखा फटने जैसी आवाज सुनी, पीछे मुडा तो देखा लोगों की भीड़ जमा हो रही, दरअसल किसी ने एक पल्सर बाइक सवार को गोलियों से भून दिया था. उस 35-40 साल के युवक को शरीर से सटाकर गोली मारी गई थी. वह भी वहां पर जहां से चंद कदमों की  ही दूरी पर संगीनें लिए आज़म खान के स्वागत के लिए तमाम पुलिस जाप्ता तैनात था.
  
  इस घटना से साफ़ ज़ाहिर होता है कोई कुछ भी कहे उत्तरप्रदेश में जंगलराज क़ायम है! यूपी  में बेख़ौफ़ हो चले अपराधियों को किसी का भी खौफ नही है. क्यूंकि जिस तरह से पुलिस कि मौजूदगी में इस हादसे को अंज़ाम दिया गया है पूरी कहानी साफ़ हो जाती है. वहां मौज़ूद लोगों ने बताया कि पिछले 6 माह के अंदर इस तरह की यह तीसरी वारदात है जब किसी को सरेराह गोली मारी गई हो.

 ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि एक मिनिस्टर की सुरक्षा को लेकर पुलिस कितनी सजग थी, ऐसे में कभी भी किसी हादसे को अंज़ाम दिया जा सकता था.

   ऐसे में साफ़ जाहिर होता है कि यूपी में न तो कोई कानून व्यवस्था है और न ही अपराधियों में उसका खौफ है. अखिलेश को इस बार लोगों ने बड़ी ही उम्मीद के साथ सीएम बनाया था, जिसे पूरा करने में माननीय मुख्यमंत्री जी पूरी तरह से असफल रहे हैं. 

फ़ोटो- फ़ाइल 

   

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

बापू तुम्हे प्रणाम...


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में पूरा देश आज के दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाता है। दो अक्टूबर का स्मरण आते ही दिमाग में एक ऐसे महापुरुष की छवि घूम जाती है,  जिन्होने सत्य और अहिंसा के बूते पर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया था। बापू के अनोखे व्यक्तित्व पर कवि की ये पंक्तियां प्रकाश डालती हैं।

    धरती पर लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
            दागी ना कहीं तोप ना बंदूक चलाई
    आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल..
            साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल..

    राष्ट्रपिता ने एक ऐसे बुलंद भारत का सपना का देखा था, जिसमें सभी को न्याय और सम्मान मिल सके। सबके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और ईलाज जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके। लेकिन आजादी के 66 वर्षों बाद भी लोगों की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आम आदमी आज भी गरीबी की चक्की में पिसकर तड़प-तड़प कर दम तोड़ने को विवश है।  आज अगर गांधी जी जीवित होते तो शायद देश की ऐसी हालत देखकर शर्मसार हो जाते।

    आज गांधी जयंती है पूरे देश में लोग गांधी जी को याद कर रहे हैं। सरकारी ऑॅफिसों, कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है। लेकिन क्या बापू को याद कर लेना ही काफी है ? क्या उनकी याद में फूल मालाएं चढ़ा देना सच्ची श्रद्दांजलि है ?  शायद नहीं..

    बापू की नजरों में ये सात महापाप थे, जिन्हे आज खुलकर समाज का समर्थन प्राप्त है।     आज हर कोई उनके दिखाए मार्ग पर, उनके सिद्धांतों पर चलने के बजाय ऐन-केन प्रकारेण पैसा कमाने की अंधी दौड़ में सरपट भागा जा रहा है। 

गांधी जी की नज़रों में सात महापाप
1- सिद्धांत विहीन राजनीति
2- श्रमहीन संपत्ति
3- विवेकहीन सुख
4-चरित्रहीन ज्ञान
5- नीतिहीन व्यापार
6- दयाहीन विज्ञान
7-त्यागहीन पूजा

    गांधी जी जिन्हे पाप समझते थे आज वहीं धारणाएं समाज में आकंठ धंसी हुई है। बापू ने एक साफ सुथरे समाज का ताना बाना बुना था, उसका सपना देखा था।  लेकिन आज की स्थिति बिल्कुल उसके उलट है। चारों तरफ लूट खसोट मची हुई है। हर कोई भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा हुआ है और शायद बचे लोग डूबने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। मानवता शब्द तो गधे के सींग की तरह गायब ही हो गया है।
ं    अगर आज हम बापू के दिखाए सदमार्ग पर हम चल सकें, उनके आदर्शों का पालन कर सकें ,,दम तोड़ती मानवता को जीवित कर सकें , तो शायद हम सही अर्थों में बापू को सच्ची श्रद्दांजलि दे पाएंगे। वरना यह पावन दिन भी महज एक छुट्टी का दिन भर बनकर रह जाएगा।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

जै श्री कृष्ण


सभी देशवासियों को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज के दिन भगवान कृष्ण ने पापियों का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लिया था। माखनचोर नंदलाला ने देश में धर्म और मानव जाति की रक्षा के लिए उच्च आदर्शों को स्थापित किया था। कंस जैसे पापी को मारकर कृष्ण कन्हैया ने भारत देश में धर्म और सत्य की पताका लहराई थी।
    जन्माष्टमी के दिन जन्मोत्सव के अलावा कोई और ऐसी ख़ुशी नहीं है जो कलेजे को सुकून और शांति दे। देश में चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है। अपराध और अपराधियों का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। चाहें राजनेता हों या समाज की सेवा के लिए नियुक्त नौकरशाह हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में नैतिक मूल्यों को धुएं में उड़ाता जा रहा है। साधू-संत, मुल्ला-मौलवी से लेकर कथित तौर पर धर्म के ठेकेदार इंसानियत का क़त्ल करने पर उतारू हैं। चारों तरफ नफरत, बेईमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
    जिनके कंधों पर हमारे देश की जिम्मेदारी है देश को एक मुकाम तक ले जाने की, वही लोग देश को खांई में ढकेलने को आतुर दिखते हैं। अधिकांश नेतागण अपने ओहदे और रुतबे का फायदा उठाते हुए हर तरफ लूट-खसोट मचाए हुए हैं।  जन्माष्टमी वाले दिन ही उत्तरप्रदेश के सपा नेता, विधायक जी गोवा में गोपियों से रास लीला मनाते पकड़े गये।
     देश में शायद आर्थिक इमरजेंसी जैसे हालात बने हुए है। ना सिर्फ डॉलर के मुकाबले बल्कि दुनिया की दूसरी मुद्राओं के मुकाबले भी रुपये की स्थिति जर्जर हो चुकी है। रुपया रसातल में पहुंच गया है, बाजार लहुलूहान है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, शेयर बाजार औंधे मुंह गिर कर अठारह हजार से नीचे सत्रह हजार पर चला आया है। ऐसे में उद्योग जगत पूरी तरह से आहत है। उद्योग समूह एसोचैम के महासचिव डी एस रावत का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा कई अहम फैसले लेने में देरी और हाल के वर्षों में टूजी, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल सहित कई घोटाले की खबरों से अंतर्राष्ट्रीय पटल में भारत की छवि खराब हुई है और विदेशी निवेशकों का भरोसा हमपर से उठा है। उनका मानना है कि सरकार को फिलहाल शार्ट टर्म कदम उठाने चाहिए और कुछ ऐसे कारगर कदम जिससे देश में अधिक से अधिक अमेरिकी डॉलर या निर्यात से कमाया हुआ पैसा आये। रुपये के मूल्य में गिरावट का सबसे ज्यादा असर पेट्रोलियम पदार्थो और गैस की की कीमतों में बढ़ोत्तरी के रूप में देखने को मिल सकता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि देश में पहले से पिस रहे आम आदमी की मुश्किलें कम नहीं होंगी बल्कि और रुलाएंगी। पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा दूसरे आयातित वस्तुओं मसलन ए सी, फ्रिज, कार, टीवी भी महंगे हो सकते है। रूपये की गिरावट से विदेशी शिक्षा और कर्ज भी महंगे होंगे। रुपया लुढ़कते हुए अब तक के सबसे निचले स्तर उनहत्तर के करीब पहुंच गया है। जिसका असर सेंसेक्स और निफ्टी में जबरदस्त गिरावट के रूप में देखने को मिल रहा है।
    देश के तीनों जाने-माने बड़े अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, वित्त मंत्री पी.चिदंबरम जी और योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया जी देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में पूर्णतया नाक़ाम रहे हैं। इनके तरकश में भी अब शायद कोई ऐसे तीर नहीं बचे हैं कि अर्थव्यवस्था की गिरती बागडोर को थाम सकें। वि·ा बाजार में दिन पर दिन हमारी साख गिरती जा रही है। हमारे रुपये की ऐसी दुर्दशा अकस्मात ही नहीं हुई है इसके लिए लिए हमारी कमजोर नीतियां भी जिम्मेदार हैं। (रुपये की गिरती हालत पर पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए http://hariomdwivedi.blogspot.in पर क्लिक करें)
    सुरक्षा की दृष्टि से भी देश की हालत खराब है, शायद हम वहां भी नाकाम ही दिखते हैं। आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ हमारी बाहरी सीमाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान हमेशा ही युद्धविराम के समझौते का उल्लंघन करता रहता है। चीनी सैनिक तो हमारी सीमा में हमारी धरती पर घुसकर अपने तम्बू लगा देते हैं और हम बम्बू बने बैठे रहते हैं। इतना ही नहीं बांग्लादेश की सीमा से भी आतंकी घुसपैठ की ख़बरें आती रहती हैं। हद तो तब हो गई हो गई जब जन्मोत्सव के दिन ही अदने से देश म्यांमार के सैनिक भी हमारी सीमा में बेधड़क घुस आये और जिनकी औकात हमारे मुकाबले पिद्दी भर है उन्होने सीमा में घुसकर चेकपोस्ट बनाने की कोशिश की। सीमा सुरक्षा के अलावा देश की आंतरिक सुरक्षा भी राम भरोसे ही है। नक्सली जब चाहते हैं, जहां चाहते हैं और जैसे चाहते हैं निर्दोष लोगों पर घात लगाकर हमला कर जाते हैं, और  हमारे कर्ता-धर्ता जवानों के साथ आम आदमी की मौत पर चुपचाप मौत का तमाशा देखते रहते हैं।
    क्या हम वास्तव में जन्मोत्सव मनाने की स्थिति में हैं ? ऐसे में यह सोचना उचित होगा कि क्या हमारे देश में भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी मनाने की आदर्श स्थिति है। भारत में आज कौन कृष्ण बनकर इस बेईमान, भ्रष्टाचारी रूपी कंस से मुक्ति दिलाएगा।
    जन्माष्टमी पर इस बार मैं भी कुछ ख़ास इन्जॉय नहीं कर सका सिवाय मन मसोस के रहने के अलावा। मेरे यहां हर बार जन्माष्टमी के पावन पर्व पर सभी लोग मिलकर......... uncomplete

जै श्री कृष्ण.... जै श्री कृष्ण...   जै श्री कृष्ण