बुधवार, 24 जून 2015

IND vs BAN : सब खेले खूब खेले


 
तीन मैचों की वनडे सीरीज में 2-0 से गंवाने के बाद तीसरे मैच में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। सभी बल्लेबाजों ने संभलकर छूते हुए दहाई के आंकड़े को छुआ। टीम ने निर्धारित 50 ओवरों में 6 विकेट के नुकसान पर 317 रन बनाए। भारत की तरफ से शिखर धवन ने सबसे अधिक 75 रन बनाए। उनके अलावा कप्तान धोनी ने 69, अंबाती रायुडु ने 44, सुरेश रैना ने तेजतर्रार 38,  रोहित शर्मा ने 29, विराट कोहली ने 25 रन बनाए, जबकि स्टुअर्ट बिन्नी 17 रन और अक्षर पटेल 10 रन बनाकर नाबाद रहे।

बांग्लादेश की तरफ से मशर्फे मुर्तजा ने 3, पिछले दो मैचों के हीरो मुस्तफिजुर ने 2 और शाकिब-उल-हसन ने 1 भारतीय खिलाड़ी को पवेलियन की राह दिखाई।
तीसरे मैच का दबाव भारतीय बल्लेबाजों पर इतना था कि सभी ने संभलकर खेलते हुए दहाई का आंकड़ा छुआ।
 
रैना ने खेली आतिशी पारी
अंबाती रायुडु के आउट होते ही सुरेश रैना ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए 21 गेंदों पर 3 चौकों और 2 छक्कों की मदद से शानदार 38 रन बनाए। वो 49वें ओवर में रनगति बढ़ाने के प्रयास में सीरीज में तीसरी बार मुस्तफिजुर के शिकार बने।
मौके के हिसाब से खेल नहीं सके बिन्नी
भारतीय टीम में आलराउंडर के तौर पर शामिल स्टुअर्ट बिन्नी अंत तक नाबाद तो रहे लेकिन जरूरत के हिसाब से खेल नहीं सके। उन्होंने 11 गेंदों पर 2 चौकों की मदद से 17 बनाए। हालांकि ये दोनों चौके उन्होंने जानबूझकर नहीं मारे थे। आखिर ओवर में जहां अक्षर पटेल ने छक्का जड़ा, वहीं बिन्नी अंतिम गेंद पर असहाय नजर आए और कोई भी रन नहीं बना सके।
 
गलत फैसले का शिकार हुए रायुडु
44 रनों के निजी स्कोर पर लय में खेल रहे भारतीय बल्लेबाज अंबाती रायुडु उस समय अंपायर के गलत फैसले का शिकार हो गए, जब वह कीपर के ऊपर से शॉट खेलना चाह रहे थे। गेंद उनके पैड पर लगी, लेकिन अंपायर ने उन्हें तुरंत ही आउट दे दिया, जबकि साफ दिख रहा था कि गेंद ने उनके बल्ले को कहीं छुआ तक नहीं। अंपायर की उंगली उठते ही रायुडु और कप्तान धोनी को विश्वास ही नहीं हुआ कि उन्हें आउट करार दिया गया है।

खैर सीरीज में जो भी हो लेकिन तीसरे मैच में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए बांग्लादेश को 317 रनों का चुनौतीपूर्ण स्कोर दिया। अब सब कुछ भारतीय गेंदबाजों पर निर्भर है कि वो बांग्लादेश को कितने रनों पर ऑलआउट कर पाते हैं और उनके 3-0 से सीरीज जीतने के मंसूबे को कब रोक पाते हैं।




 

 

मंगलवार, 23 जून 2015

IND v/s BAN : कुछ तो गड़बड़ है

भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के लिए इस सच्चाई को गले उतारना इतना आसान नहीं होगा कि भारतीय क्रिकेट टीम बांग्लादेश जैसी नवोदित टीम से भी वन-डे सीरीज हार गई। तीन मैचों की सीरीज में बांग्लादेश 2-0 से आगे है। टीम के घटिया प्रदर्शन को देखते हुए ये कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मेजबान टीम मेहमानों पर क्लीन स्वीप करने के लिए बेताब है। पहले मैच में भारतीय टीम स्कोर का पीछा करते हुए 79 रनों से हार गई, जबकि दूसरे मैच में तो टीम पूरे ओवर भी नहीं खेल सकी और छह विकेट से परास्त हो गई। पूरी भारतीय टीम एक ऐसे गेंदबाज से हार गई, जिसने अभी तक जुम्मा-जुम्मा दो ही मैच खेले हैं। 19 वर्षीय तेज गेंदबाज मुस्तफिजुर ने पहले मैच में पांच, जबकि दूसरे मैच में छह भारतीय शूरमाओं को अपना शिकार बनाया। किसी गेंदबाज के लिए इससे बेहतर डेब्यू और क्या हो सकता था।

क्या यह महज संयोग है? या धोनी एंड कंपनी ने पड़ोसी देश की टीम को हल्के में लिया? बांग्लादेश एक नवोदित टीम है, जो कम-से-कम वन-डे क्रिकेट में लगातार अपने खेल में सुधार कर रही है। साथ ही धोनी टीम को यह भी नहीं भूलना चाहिये था कि पिछले विश्व कप में बांग्लादेश की टीम ने क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया था। साथ ही टीम को यह भी ध्यान में रखना चाहिये था कि हाल ही में बांग्लादेश की टीम ने घरेलू मैदान पर पाकिस्तान को वन-डे सीरीज में 3-0 से धूल चटाई थी।

शायद इसी कारण इस बार भारत ने अपने मौजूदा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को बांग्लादेश भेजा। लेकिन टीम वहां खेल के हर विभाग में मेजबानों से पिटती नजर आई। अनिल कुंबले के रिटायर होने और ज़हीर खान तथा हरभजन सिंह के लय खोने के बाद अब सीमित ओवरों वाले फॉर्मेट में कसी गेंदबाजी करने में सक्षम गेंदबाज भी गिने-चुने ही हैं। ऐसे में जब कभी बैटिंग फेल हो, वर्तमान टीम मैच जीतने की सोच भी नहीं सकती, बशर्ते दूसरी टीम खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को आमादा न हो।

बांग्लादेश के हाथों इस शर्मनाक हार के बाद धोनी की कप्तानी पर सवाल उठ रहे हैं वहीं, यशपाल शर्मा और चेतन शर्मा जैसे कई पूर्व दिग्गज क्रिकेटर इस बात की आशंका जाहिर कर रहे हैं कि टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का माहौल ठीक नहीं है। टीम के कप्तान धोनी के पूर्व कोच चंचल भट्टाचार्य का कहना है कि धोनी को टीम का सपोर्ट नहीं मिल रहा है।

भारतीय क्रिकेट प्रशासन को इस सवाल पर आत्म-चिंतन अवश्य करना चाहिए कि अपनी वित्तीय शक्ति से विश्व क्रिकेट को चलाने का दंभ भरने वाले भारत में खिलाड़ियों की गुणवत्ता क्यों तेजी से घट रही है? इसके लिए आईपीएल की संस्कृति कितनी जिम्मेदार है- यह भी विचारणीय है। आज की कड़वी हक़ीकत यह है कि क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारतीय टीम अत्यंत साधारण नजर आती है। दूसरी तरफ नौजवानों के उत्साह से भरपूर बांग्लादेश टीम है। ऐसे में जो परिणाम आया, उसे बहुत आश्चर्यजनक नहीं माना जाएगा।

खैर जो भी हो बीसीसीआई को इस हार के कारणों को तलाशना ही होगा। अभी तक भारतीय टीम की ऐसी दुर्गति तो ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे दौरों पर होती थी। तब क्रिकेटप्रेमी और क्रिकेट जानकार ये कहकर संतोष कर लेते थे कि बाउंसी पिचों पर हमेशा ही भारतीय टीम की हालत पतली होती रही है।

सोमवार, 11 मई 2015

क्या हो गया दिलवालों की दिल्ली को ?

आखिर क्या हो गया है दिलवालों के शहर दिल्ली को? मामूली बात पर एक युवक ने बस ड्राइवर (42 वर्ष) को पीट-पीटकर मार डाला। इस पूरे कृत्य में उसका साथ दिया उसकी अपनी मां ने, जो बाइक पर बेटे के साथ बैठी थीं। मदर्स डे पर एक मां अपने बेटे का हौसला बढ़ा रही थी कि बेटा और मार, शायद वो भूल गईं कि जो पिट रहा है वो भी किसी का बेटा, किसी का बाप और किसी का भाई है। ड्राइवर का गुनाह सिर्फ इतना था कि युवक की बाइक में बस की हल्की सी टक्कर लग गई थी, जिसमें युवक और उसकी गाड़ी को जरा भी खरोच नहीं आई।

इन सबसे अलग एक बात और परेशान करने वाली है कि कंडक्टर समेत बस में सवारियां ठसाठस भरी हुई थीं, लेकिन किसी ने ड्राइवर को बचाने की जरूरत नहीं समझी। गुस्साए युवक ने बस पर चढ़कर हेलमट से ड्राइवर पर दनादन प्रहार किए। इतना ही संवेदनहीन और स्वार्थी भीड़ के सामने ही अकेला युवक ड्राइवर को नीचे खींच लाया और बस में आग बुझाने के लिए लगे गैस सिलेंडर से उस पर तब तक प्रहार करता रहा, जब तक कि वह अचेत नहीं हो गया और भीड़ तमाशबीन बनी देखती रही। आखिरकार उस ड्राइवर ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।

आधा-अधूरा नहीं पूरी तरह हो बंद
सुबह अखबार में पढ़ा था कि मांग पूरी न होने तक घटना से गुस्साए लोगों ने सोमवार से दिल्ली में डीटीसी की बसें बंद करने का एलान किया है। घटना से मैं भी दुखी था, साथ ही चिंता थी कि ऑफिस कैसे पहुंचूंगा। पर जैसे ही सड़क पर निकला प्राइवेट बसों और टैक्सियों की भरमार दिखी, लगा कि आज वे इस सुनहरे मौके का जमकर फायदा उठा लेना चाहते हैं।  

बंद इसलिए भी जरूरी था कि उन संवदेनहीन और स्वार्थी लोगों को इस बात का एहसास भी कराना है, जो किसी को पिटता देखकर भी चुपचाप बैठे रहते हैं, या खुद मुंह छिपा लेते हैं। घटना के विरोध में दिली तौर पर मैं बंद के समर्थन में हूं, इसीलिए मैं चाहता हूं कि बंद हो तो पूरी तरह से चक्का जाम हो। कोई भी टैक्सी वाहन सड़क पर न दिखे। इस घटना के विरोध में सभी प्राइवेट बसों और टैक्सियों को भी बंद किया जाना चाहिए था, ताकि लोगों को हकीकत में एहसास हो सके। ऐसा भी नहीं है कि आज किसी ने डीटीसी चालक की पीट-पीटकर हत्या कर दी, कल वो या दूसरे लोग प्राइवेट बसों या टैक्सी ड्राइवरों को बख्श देंगे।

मृतक ड्राइवर की बीवी का पिछले 14 साल से इलाज चल रहा है, जिसे वर्ष 2001 में लकवा मार गया था। मृतक के बेटे अजय ने बताया, पापा रोज सुबह साढ़े चार बजे काम के लिए (बस चलाने) निकल जाते थे, मुझे याद नहीं कि मेरी उनसे आखिरी मुलाकात कब हुई थी। मुझे मां के अस्पताल में रुकना पड़ता है। घर में छोटी बहन और दादी हैं। बेटे ने रोते हुए आगे बताया कि पापा ने पिछले कई महीनों से छुट्टी नहीं ली थी। घर का खर्च चलाने के लिए वह रोज काम पर जाते थे।

मृतक चालक के परिजनों से मिलने पहुंचे परिवहन मंत्री गोपाल राय को भी लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। उनका घेराव किया गया। मंत्री महोदय ने मृतक के परिजनों को पांच लाख रुपए देने का एलान किया। लेकिन घटना से आक्रोशित लोगों ने एक करोड़ के मुआवजे और परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी की मांग की।

यह कोई ऐसी पहली घटना नहीं है, जिसे दिलवाले शहर के बाशिंदों पर सवाल उठे हों। पिछले दस दिनों में इस तरह (रोडरेज) की ये तीसरी घटना है। हालांकि, इस मामले में पुलिस ने मुंडका निवासी आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया है।