बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

बापू तुम्हे प्रणाम...


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में पूरा देश आज के दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाता है। दो अक्टूबर का स्मरण आते ही दिमाग में एक ऐसे महापुरुष की छवि घूम जाती है,  जिन्होने सत्य और अहिंसा के बूते पर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया था। बापू के अनोखे व्यक्तित्व पर कवि की ये पंक्तियां प्रकाश डालती हैं।

    धरती पर लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
            दागी ना कहीं तोप ना बंदूक चलाई
    आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल..
            साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल..

    राष्ट्रपिता ने एक ऐसे बुलंद भारत का सपना का देखा था, जिसमें सभी को न्याय और सम्मान मिल सके। सबके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और ईलाज जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा सके। लेकिन आजादी के 66 वर्षों बाद भी लोगों की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आम आदमी आज भी गरीबी की चक्की में पिसकर तड़प-तड़प कर दम तोड़ने को विवश है।  आज अगर गांधी जी जीवित होते तो शायद देश की ऐसी हालत देखकर शर्मसार हो जाते।

    आज गांधी जयंती है पूरे देश में लोग गांधी जी को याद कर रहे हैं। सरकारी ऑॅफिसों, कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है। लेकिन क्या बापू को याद कर लेना ही काफी है ? क्या उनकी याद में फूल मालाएं चढ़ा देना सच्ची श्रद्दांजलि है ?  शायद नहीं..

    बापू की नजरों में ये सात महापाप थे, जिन्हे आज खुलकर समाज का समर्थन प्राप्त है।     आज हर कोई उनके दिखाए मार्ग पर, उनके सिद्धांतों पर चलने के बजाय ऐन-केन प्रकारेण पैसा कमाने की अंधी दौड़ में सरपट भागा जा रहा है। 

गांधी जी की नज़रों में सात महापाप
1- सिद्धांत विहीन राजनीति
2- श्रमहीन संपत्ति
3- विवेकहीन सुख
4-चरित्रहीन ज्ञान
5- नीतिहीन व्यापार
6- दयाहीन विज्ञान
7-त्यागहीन पूजा

    गांधी जी जिन्हे पाप समझते थे आज वहीं धारणाएं समाज में आकंठ धंसी हुई है। बापू ने एक साफ सुथरे समाज का ताना बाना बुना था, उसका सपना देखा था।  लेकिन आज की स्थिति बिल्कुल उसके उलट है। चारों तरफ लूट खसोट मची हुई है। हर कोई भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा हुआ है और शायद बचे लोग डूबने को आतुर दिखाई दे रहे हैं। मानवता शब्द तो गधे के सींग की तरह गायब ही हो गया है।
ं    अगर आज हम बापू के दिखाए सदमार्ग पर हम चल सकें, उनके आदर्शों का पालन कर सकें ,,दम तोड़ती मानवता को जीवित कर सकें , तो शायद हम सही अर्थों में बापू को सच्ची श्रद्दांजलि दे पाएंगे। वरना यह पावन दिन भी महज एक छुट्टी का दिन भर बनकर रह जाएगा।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

जै श्री कृष्ण


सभी देशवासियों को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज के दिन भगवान कृष्ण ने पापियों का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लिया था। माखनचोर नंदलाला ने देश में धर्म और मानव जाति की रक्षा के लिए उच्च आदर्शों को स्थापित किया था। कंस जैसे पापी को मारकर कृष्ण कन्हैया ने भारत देश में धर्म और सत्य की पताका लहराई थी।
    जन्माष्टमी के दिन जन्मोत्सव के अलावा कोई और ऐसी ख़ुशी नहीं है जो कलेजे को सुकून और शांति दे। देश में चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है। अपराध और अपराधियों का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। चाहें राजनेता हों या समाज की सेवा के लिए नियुक्त नौकरशाह हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में नैतिक मूल्यों को धुएं में उड़ाता जा रहा है। साधू-संत, मुल्ला-मौलवी से लेकर कथित तौर पर धर्म के ठेकेदार इंसानियत का क़त्ल करने पर उतारू हैं। चारों तरफ नफरत, बेईमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
    जिनके कंधों पर हमारे देश की जिम्मेदारी है देश को एक मुकाम तक ले जाने की, वही लोग देश को खांई में ढकेलने को आतुर दिखते हैं। अधिकांश नेतागण अपने ओहदे और रुतबे का फायदा उठाते हुए हर तरफ लूट-खसोट मचाए हुए हैं।  जन्माष्टमी वाले दिन ही उत्तरप्रदेश के सपा नेता, विधायक जी गोवा में गोपियों से रास लीला मनाते पकड़े गये।
     देश में शायद आर्थिक इमरजेंसी जैसे हालात बने हुए है। ना सिर्फ डॉलर के मुकाबले बल्कि दुनिया की दूसरी मुद्राओं के मुकाबले भी रुपये की स्थिति जर्जर हो चुकी है। रुपया रसातल में पहुंच गया है, बाजार लहुलूहान है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है, शेयर बाजार औंधे मुंह गिर कर अठारह हजार से नीचे सत्रह हजार पर चला आया है। ऐसे में उद्योग जगत पूरी तरह से आहत है। उद्योग समूह एसोचैम के महासचिव डी एस रावत का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा कई अहम फैसले लेने में देरी और हाल के वर्षों में टूजी, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल सहित कई घोटाले की खबरों से अंतर्राष्ट्रीय पटल में भारत की छवि खराब हुई है और विदेशी निवेशकों का भरोसा हमपर से उठा है। उनका मानना है कि सरकार को फिलहाल शार्ट टर्म कदम उठाने चाहिए और कुछ ऐसे कारगर कदम जिससे देश में अधिक से अधिक अमेरिकी डॉलर या निर्यात से कमाया हुआ पैसा आये। रुपये के मूल्य में गिरावट का सबसे ज्यादा असर पेट्रोलियम पदार्थो और गैस की की कीमतों में बढ़ोत्तरी के रूप में देखने को मिल सकता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि देश में पहले से पिस रहे आम आदमी की मुश्किलें कम नहीं होंगी बल्कि और रुलाएंगी। पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा दूसरे आयातित वस्तुओं मसलन ए सी, फ्रिज, कार, टीवी भी महंगे हो सकते है। रूपये की गिरावट से विदेशी शिक्षा और कर्ज भी महंगे होंगे। रुपया लुढ़कते हुए अब तक के सबसे निचले स्तर उनहत्तर के करीब पहुंच गया है। जिसका असर सेंसेक्स और निफ्टी में जबरदस्त गिरावट के रूप में देखने को मिल रहा है।
    देश के तीनों जाने-माने बड़े अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, वित्त मंत्री पी.चिदंबरम जी और योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया जी देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में पूर्णतया नाक़ाम रहे हैं। इनके तरकश में भी अब शायद कोई ऐसे तीर नहीं बचे हैं कि अर्थव्यवस्था की गिरती बागडोर को थाम सकें। वि·ा बाजार में दिन पर दिन हमारी साख गिरती जा रही है। हमारे रुपये की ऐसी दुर्दशा अकस्मात ही नहीं हुई है इसके लिए लिए हमारी कमजोर नीतियां भी जिम्मेदार हैं। (रुपये की गिरती हालत पर पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए http://hariomdwivedi.blogspot.in पर क्लिक करें)
    सुरक्षा की दृष्टि से भी देश की हालत खराब है, शायद हम वहां भी नाकाम ही दिखते हैं। आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ हमारी बाहरी सीमाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान हमेशा ही युद्धविराम के समझौते का उल्लंघन करता रहता है। चीनी सैनिक तो हमारी सीमा में हमारी धरती पर घुसकर अपने तम्बू लगा देते हैं और हम बम्बू बने बैठे रहते हैं। इतना ही नहीं बांग्लादेश की सीमा से भी आतंकी घुसपैठ की ख़बरें आती रहती हैं। हद तो तब हो गई हो गई जब जन्मोत्सव के दिन ही अदने से देश म्यांमार के सैनिक भी हमारी सीमा में बेधड़क घुस आये और जिनकी औकात हमारे मुकाबले पिद्दी भर है उन्होने सीमा में घुसकर चेकपोस्ट बनाने की कोशिश की। सीमा सुरक्षा के अलावा देश की आंतरिक सुरक्षा भी राम भरोसे ही है। नक्सली जब चाहते हैं, जहां चाहते हैं और जैसे चाहते हैं निर्दोष लोगों पर घात लगाकर हमला कर जाते हैं, और  हमारे कर्ता-धर्ता जवानों के साथ आम आदमी की मौत पर चुपचाप मौत का तमाशा देखते रहते हैं।
    क्या हम वास्तव में जन्मोत्सव मनाने की स्थिति में हैं ? ऐसे में यह सोचना उचित होगा कि क्या हमारे देश में भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी मनाने की आदर्श स्थिति है। भारत में आज कौन कृष्ण बनकर इस बेईमान, भ्रष्टाचारी रूपी कंस से मुक्ति दिलाएगा।
    जन्माष्टमी पर इस बार मैं भी कुछ ख़ास इन्जॉय नहीं कर सका सिवाय मन मसोस के रहने के अलावा। मेरे यहां हर बार जन्माष्टमी के पावन पर्व पर सभी लोग मिलकर......... uncomplete

जै श्री कृष्ण.... जै श्री कृष्ण...   जै श्री कृष्ण

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

और कितना गिरेगा रुपया...?

डॉलर के मुकाबले जिस तरह रुपया लगातार गिरता जा रहा है, साफ दिखता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। राजनीति में नैतिकता की तरह रुपये का पतन होता जा रहा है। अभी तक डॉलर के मुकाबले रुपया कभी इतना कमजोर नहीं हुआ था और न ही कभी इससे पहले रुपये की ऐसी दुर्गति हुई थी। अर्थव्यवस्था मेंं मुद्रा स्फीति से कोहराम मचा हुआ है। देशी-विदेशी लोगों का भारतीय अर्थव्यवस्था से वि·ाास उठता जा रहा है, उनमें भय का माहौल बना हुआ है। रुपये की दोहरी मार से भारतीय अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। निवेशक बाजार में लगा अपना पैसा खींच ले रहे हैं। जिसके चलते भारतीय बाजार धड़ाम से गिरा जा रहा है।
    आज जैसे हालात बने हुए हैं हाल फिलहाल नहीं लगता है कि जल्दी ही स्थिति सुधरेगी। भारतीय बाजारों से तेजी से विदेशी मुद्रा का पलायन हो रहा है, जिससे लगातार मुद्रा का अवमूल्यन होता जा रहा है। जिसका प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद यानि की जीडीपी की ग्रोथ पर पड़ा है और जीडीपी में भी काफी में काफी गिरावट आई  है। मुद्रा स्फीति के लिए कई महत्वपूर्ण कारण हैंं जिन पर बिना ध्यान दिये स्थायी तौर पर मुद्रा अवमूल्यन की समस्या से नहीं निबटा जा सकता है। हालांकि सरकार मुद्रा की रोकथाम के लिए आरबीआई के साथ मिलकर कई ठोस कदम उठाने की बात कह रही है जो शायद नाकाफी हैं।
     दो साल पहले रुपये की कीमत लगभग पैंतालिस रुपये थी आज जिसकी कीमत 65 रुपये तक पुहंच गई है। ऐसी हालत केवल भारत की ही नहीं बल्कि और भी कई देशों की है। लेकिन उनकी अर्थव्यवस्था इस कदर औंधे मुंह नहीं गिरी, क्योंकि उनकी विदेशी निर्यात नीति मजबूत है।
    भारतीय अर्थव्यवस्था उधारी मुनाफे पर टिकी हुई है। इसको सीधे शब्दों में समझें तो भारत का राजकोषीय घाटा सीधे-सीधे विदेशी कंपनियों के मुनाफे पर आधारित है। हम जो भी मुनाफा कमा रहे हैं विदेशी कंपनियों के जरिये ही कमा रहे हैं और उसके मुनाफे से ही हमारी जीडीपी में विकास हुआ है। भारत निर्यात के मामले में अन्य देशों से बहुत ही पिछड़ा है। विदेशी खासकर अमेरिकी कंपनियों के भारत से हाथ खींचने के चलते भी मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा है। शायद हम वि·ा के उन देशों तक अपना माल (स्वनिर्मित) पहुंचाने में सफल नहीं हो पा रहे हैंं जहां हमारे सामान की जबरदस्त जरूरत और मांग है।
    जिस देश के प्रधानमंत्री एक जानेमाने अर्थशास्त्री हों वहां की अर्थव्यवस्था की ऐसी दुर्दशा शायद हास्यास्पद ही लगती है। हमारे अर्थशात्री दीर्घकालिक लाभ के लिए शायद कोई ठोस योजना बनाने में सफल नहीं हो सके हैं। जिसके चलते आज रुपया रो रहा है, रुपये की सेहत में सुधार कब होगा कहना मुश्किल है और शायद हमारी निर्यात नीति एकदम फेल हो चुकी है। आजादी के समय रुपया और डॉलर की कीमत लगभग एक बराबर थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के 66 सालों बाद बाद रुपया 77 के आंकड़ों को छूने को लालायित दिखता है।
    अधिकांशत: भारतीय अर्थव्यवस्था लघु उद्योगों और कृषि क्षेत्र पर आधारित है और उसी पर निर्भर करती है। हमेशा से ही कृषि और लघु उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की बैकबोन यानि की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। फिर हमने इस हकीक़त से मुंह क्यों मोड लिया है ? हमारे नीति नियंताओं ने इस तरफ से आंखे क्यों मूंद लीं ? इस तथ्य को समझते हुए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। आज हमारे देश में जवानों की हालत किसी से छिपी नहीं है और किसानों की हालत अत्यंत दयनीय और सोचनीय है। कृषि प्रधान देश में कर्ज के बोझ तले दबे हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, या करने को मजबूर हैं। भारत में लघु उद्योग लगभग बंद होने की कगार पर हैं। हमारे नीति नियंता अमेरिकी चकाचौंध में इस बेसिक नीड को ही भुला चुके हैं। शायद यही कारण है कि आज भारतीय बाजार धड़ाम से औंधे मुंह गिरा हुआ है और बाजार में कोहराम छाया हुआ है।
    सरकार की मानें तो लोगों द्वारा सोने की अधिक खरीददारी करने के चलते बाजार की हालत खस्ता हो चली है। जिसको लेकर सोने के आयात पर रोक भी लगा दी गई है। लेकिन क्या इससे रुपये की हालत सुधरी ? सोचने वाली बात यह भी है आज लोग सोने में निवेश क्यों कर रहे है ? आज भी सोना ही निवेश करने के लिए उचित माध्यम क्यों बना हुआ है ? दरअसल बाजार की हकीकत किसी से छिपी नहीं है ऐसे में शेयर बाजार में पैसे लगाना या बैंकों में किसी भी फंड के तहत पैसे जमा करना आज मूर्खतापूर्ण कदम हो सकता है, जबकि सोने में निवेश में किसी भी प्रकार से नुकसान की गुंजाइश नहीं है।
    बढ़ती महंगाई के लिए मुद्रा स्फीति भी काफी हद तक जिम्मेदार रही है। मौजूदा समय में महंगाई इस कदर हावी है कि लोगों को बैंक में पैसे डालना या जमा रखना कितना मुश्किल हो रहा है। भारतीय बाजार में इस कदर महंगाई हावी है कि आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। पिछले कई दशकों से गरीबों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है, गरीब और गरीब होते गये, जबकि पूंजीपतियों की संख्या बढने के कारण पूंजीवाद को बढ़ावा मिला है। इसके अवाला उदारीकरण की नीति भी मुद्रा अवमूल्यन के लिए उत्तरदायी है।
    आज हमारे अर्थशास्त्रियों को रुपये की मजबूती के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है। अमेरिका की तरह आगामी पचास वर्षों के लिए आर्थिक नीति बनाना चाहिए न कि चुनावी फायदे के लिए अल्पकालिक। आर्थिक क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए हर हालत में महंगाई पर काबू पाना होगा, बाजार व्यवस्था पर लोगों का भरोसा कायम कराना होगा, विदेश नीति में सुधार करना होगा और साथ ही भारत को कृषि क्षेत्र में नित नये आयामों को भी छूना होगा। जब तक भारत लघु उद्योगों और कृषि के क्षेत्र में उन्नति नहीं करेगा हमारी उन्नति की कल्पना करना भी बेईमानी है।