शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

वो सुहाने दिन..

दीपावली का त्यौहार आने वाला है,हर किसी के मन में रहता है कि पर्व को परिवार और अपने लोगों के साथ मनाए।जो जिस संस्थान में काम कर रहा है,चाहता है किसी प्रकार उसे छुट्टी मिल जाए और वो अपने गांव अपने शहर जाकर अपनी बचपन की यादों को ताजा कर सके।मैं भी ऐसी चाह रखने वालों में से एक हूं, लेकिन अफसोस पिछले दो साल से मुझे दीपावली घर से बाहर ही मनानी पड़ रही है।अंतिम दीपावली 2010  में मैने अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर दीपावली मनाई थी। पता नहीं क्यूं मुझे ऐसा लगता है जैसे अब धीरे-धीरे दीपावली की रौनक फीकी पड़ती जा रही है।त्यौहारों को लेकर लोगों की सोच में परिवर्तन होता जा रहा है, गांव हो या शहर किसी के पास किसी के लिए थोड़ा भी समय नहीं बचा है। मुझे याद है जब हम सब बचपन में महीनों पहले दीपावली का इंतजार किया करते थे,जेबखर्च के लिए मिले पैसों को कंजूसी करके दीपावली को पटाखे छुटाने के लिए बचा लिया करते थे।क्योंकि पापा या भाई घर में जो पटाखे लाते वो दीवाली के दिन ही लाते थे और कहते थे पटाखे कोई नहीं छुटाएगा। हम लोग को केवल सांप वाली टिक्की और छुरछुरिया ही दी जाती छुटाने के लिए। लेकिन हम भी कम ना थे,बचत के उन्ही पैसों से दो दिन पहले ही पटाखे ले आते और उन्हे खूब दगाते और दोस्तों से होड़ लगाते मेरे पटाखे में तेज आवाज है वो कहता मेरे में।मुझे याद है किस तरह से डर-डरकर हम पटाखे छुटाते, एक छोटा सा बम होता था जिसे हम सुतली बम कहते थे,जो सामान्य पटाखों की अपेक्षा थोड़ा महंगा मिलता था लेकिन आवाज बहुत करता था इसलिए हमारी पहली पसंद हुआ करता था। लेकिन उसे छुटाने में उतना ही डर लगता। कई बार तो उस पटाखे को एक पत्थर पर रखकर दियासलाई से आग लगाना चाहते पर जैसे ही जलती हुई तीली पास ले जाते लगता पलीते ने आग पकड़ लिया है और हम भाग खड़े होते लेकिन बाद में पता चलता कि मैं डरकर पहले ही भाग आया हूं।फिर उसको कागज के टुकड़े पर रखकर आग लगा देते।अगर कोई राहगीर निकल रहा हो तो धोखे से पटाखे छुटाकर उसको चौंकाने में बड़ा मजा आता। लखनऊ की अपेक्षा मुझे अपने गांव में दीपावली  मनाना बहुत ही पसंद आता है,गांव में वो धमाचौकड़ी,दोस्तों के साथ खेलना,साथ में सभी का इकट्ठे होकर खूब मस्ती करना अपने आप में सुखद अहसास था।
दीपावली से पहले से ही हम सब भाई मिलकर घर की पूरी तरह से सफाई,रंगाई और पुताई करते।दीपावली वाले दिन पूरे घर मे घी के दीये जलाए जाते,एक-एक दीवार में कई डिजाईनदार आले होते हर आले में दीपक रखे जाते।यहां तक छत के छज्जों पर भी दीपक जलाए जाते। हालांकि अब उन दीयों का स्थान मोमबत्ती ने ले लिया है। शाम को गणेश लक्ष्मी का पूजन किया जाता है और एक रश्म के तहत मक्का,अरहह और पुआल से लाठीनुमा मोटे- मोटे बंडल बनाये जाते हैं जिन्हे पूजन वाले दीपक से जलाकर घर के हर कोने से निकालकर इस मान्यता के साथ ले जाते हैं कि घर की सारी बुराईयां दूर हो जाएंगी,घर से निकालकर हम गांव वालों के साथ उन जलते बंडलों को गांव से दूर ले जाते और वहीं पर जलाते और पटाखे भी छोड़ते।और वहां पर सभी लोग इकट्ठे होकर धू-धू कर जलते आग के उस ढेर में ही पटाखे डालते और भगवान के जयकारे लगाते हुए घर वापस लौट आते।लेकिन अब तो महज खानापूर्ति ही बची है किसी के पास इतना समय ही नहीं है को वहां ज्यादा देर रुके,लोगों में एक-दूसरे के प्रति प्यार की भावना समाप्त होती जा रही है।
जब तक हम वापस आते माताजी पूजा कर चुकी होतीं, हम सब प्रसाद खाकर पटाखे लेकर बड़े से आंगन में इकट्ठे हो जाते। पापा मम्मी,भइया,भाभी हम सभी लोग इकट्ठे होकर पटाखे,राकेट,चक्कर छुटाते।रात में देर तक पटाखे छुटाते रहते हालांकि माताजी बार-बार खाने के लिए बुलातीं पर हम उन मिठाईयों को खाकर ही पटाखे छुटाने के मजे लेते रहते जो दीपावली पर विशेष तौर से बनाई जाती थी।
देर रात सोने के बावजूद भी सुबह जल्दी उठकर सिर्फ एक ही काम रहता, पूरे गावं में दौड-दौड़कर दिये इकट्ठे करना।हममें दीये इकट्ठे करने की होड़  लगी रहती कौन कितने दीये इकट्ठे करता है।साथ ही रात में छुटाए गये पटाखों को खोजते कि कौन सा पटाखा रात में नहीं चला उसे उठाते और फिर छुटाते।
अब घर जाकर त्यौहार मनाने में उतना मजा नहीं आता जितना कि पहले आता था, आजकल ना तो दोस्तों के पास समय है और ना ही पहले वाली वो बात ही रही है। आज जबभी कोई त्यौहार आता है मैं पुराने दिनों को याद करके ही उन पलों में खो जाता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं काश कोई मेरे वो दिन मुझे लौटा दे।

रविवार, 9 सितंबर 2012

मध्यप्रदेश में गलती जिंदगी !

मध्यप्रदेश में हरदा जिले के खरदाना गांव में 90 लोग गर्दन तक पानी में पानी में खड़े हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है,,अपने पुनर्वास की आस लिए पानी में खड़ी बुजुर्ग महिला कृष्णाबाई के हाथ,पैर,और पेट की खाल तक लगने लगी है, लेकिन किसान पुत्र कहे जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है ? जब उनको इसके बारे में जानकारी मिलती है तो वे खुद नहीं बल्कि अपने एक मंत्री को इन लोगों के पास भेजते हैं,और जब बात होती है आम जन के मुख्यमंत्री की तो भाजपा के लोग शिवराज बाबू को आम जन का भगवान साबित करने में जुट जाते हैं, वहीं अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए पहचाने जाने वाले एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ऊर्फ दिग्गी बाबू ठाकरे परिवार की बखिया उधेड़ने में तो जुट जाते हैं, जब राहुल गांधी के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन तैयार करनी होती है तो भूमिअधिग्रहण के नाम पर आंदोलन करने की बात करने लगते हैं, लेकिन उनके अपने ही प्रदेश में पिछले कई दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे लोग जिनका हाड़ मांस अब गलने लगा है,उनकी फिक्र इन्हें कब होगी, इन लोगों से मिलने के लिए इनके पास समय नहीं है, इतना ही नहीं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जो अपने आप को इस कदर पेश करता है मानो देश और समाज की सबसे ज्यादा फिक्र इन्हें ही है, इन न्यूज चैनल वालों के लिए भी ये खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका विजुअल रिच है,उन्हें इस खबर में टीआरपी तो नजर आती है लेकिन इन लोगों की समस्याएं नजर नहीं आ रही है, शायद इसी कारण इस खबर को इस कदर चला रहे हैं मानो जैसे ये कोई मनोरंजन का साधन हो,पानी में खड़े उन नब्बे लोगों की क्या मजबूरियां हैं,उनकी क्या मांगे हैं इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, मुंबई में राज ठाकरे जब हिंदी न्यूज चैनल को मुंबई में बंद कराने की धमकी देते हैं तो ये लोग हाय तौबा मचाने लगते हैं, हर हिंदी न्यूज चैनल पर ये बहस शुरू हो जाती है कि राज ठाकरे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला कर रहे हैं, काश यही बहस वे लोग एमपी के खरदाना में जल सत्याग्रह पर बैठे लोगों की समस्याओं जानने के लिए, उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने के लिए बहस किए होते ।

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

कौन बनायेगा उत्तम प्रदेश...??

राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठेगा कुछ पता नहीं, अपने प्रदेश की जनता को लेकर उसकी क्या रणनीति है।उसके द्वारा किए गये वादों का क्या होगा, विकास के मापदंड़ क्या होंगें कुछ पता। हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश की जहां हमेशा से उसके राजनेता जनता के पैसे का दुरुपयोग करते रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो यूपी की जनता को हमेशा ही भेदभाव की राजनीति से दो-चार होना पड़ता है,कभी जाति के नाम पर तो कभी क्षेत्रवाद के नाम पर। चाहे कितनी बार भी सत्ता परिवर्तन हो लेकिन राजनेताओं की मानसिकता जस की तस ही रही है। ज्यादा पीछे ना जाकर माया सरकार के कार्यकाल शुरुआत करते हैं। मायावती को जनता पूरे बहुमत के सत्ता में इस उम्मीद से लेकर आई थी कि शायद अब कुछ हालात बदलें।लेकिन मायावती जी ने उन्ही के लिए कुछ नहीं किया जिन्होने उन्हे चुनकर भेजा था। माया ने अपना फोकस मूर्तियों और पार्कों पर कायम रखा। ज्यादा अच्छा होता अगर कुछ जनकारी योजनाएं लागू करके उनका क्रियान्वयन किया जाता।लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो सका,लिहाजा जनता ने भी अपना काम किया और चुनाव में बसपा की नकार कर, सत्ता में सपा को इस उम्मीद से पूर्ण बहुमत में लाई कि शायद अखिलेश जी ही कुछ भला करेंगे। लेकिन सपा ने भी अभी तक ऐसा कोई ऐसा काम नहीं किया है जिससे कि उसकी पीठ थपथपाई जा सके। हां केवल इतना जरूर किया है उसने मायावती द्वारा किये गये कामों को बिगाड़ने में ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित किया है।
रोजी,रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा,चिकित्सा और सुरक्षा किसी भी राज्य के नागरिक की मूलभूत आवश्यकताएं हैं।हर नागरिक चाहता है उसके घर में हमेशा बिजली रहे,खेतों में सिंचाई की समस्या ना हो,गरमी से परेशानी ना हो, उसके बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी अंधेरे के कारण ना रुके। इसीलिए चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता को ही उच्च जीवन स्तर या विकास का मानक माना गया है। लेकिन प्रदेश के कुछ चुनिंदा शहरों में ही चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। सत्ता परिवर्तन के बाद इटावा,मैनपुरी,कन्नौज,लखनऊ और रामपुर में पहले से ही बिजली ना काटने के निर्देश दिये गये थे। वहीं अब यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाधी को यूपी में केवल अमेठी और रायबरेली ही नजर आता है, सोनिया गांधी के कहने पर ही अब रायबरेली और अमेठी में भी 24 घटे बिजली रहेगी।फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कब तक मुलायम सोनिया के साथ रहते हैं जबकि ये भी सच है कि यूपी में वोटों के लिए कांग्रेस और सपा की ही सीधी टक्कर होगी।  वहीं माया राज में बादलपुर,अंबेड़करनगर, और उनके द्वारा बनवाये पार्क चौबीस घंटे बिजली से चमचमाते रहे। यहां यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ये शहर ही पूरी तरह से विकसित हैं या विकास के मापदंड़ पर खरे उतरते हैं ऐसा नहीं है बल्कि इन राज्यों में बिजली देना इनके राजनीतिक स्वार्थ निहतार्थ हैं।जबकि प्रदेश की बहुतायत जनता ने पूरे बहुमत के साथ पार्टी को चुनाव में विजयी बनाया था,क्या यही सोचकर कि उसके साथ पक्षपात हो,चन्द चुनिंदा शहरों को छोड़कर बाकी शहरों का गुनाह क्या था।हालत यह है कि बिजली उत्पादन के मामले में उत्तरप्रदेश दूसरे राज्यों से काफी पीछे है वहीं बिजली चोरी मामले में इतिहास अव्वल रहा। अभी हाल ही में देश में आये बिजली संकट ने पूरे देश को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था। और इस मामले में भी राष्ट्रीय ग्रिड से अनुशासन तोड़कर बिजली लेने का आरोप लगा था।
अगर ताजा सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तरप्रदेश में अभी भी तिरसठ प्रतिशत लोग दीपक जलाकर ही पढ़ते हैं। वर्ष 2001 में राज्य के 31.9 फीसदी घरों में बिजली थी और दस साल बाद बिजली मात्र 36.8 फीसदी घरों मे ही पहुंच पाई।
प्रदेश के कर्ता-धर्ता कब तक जनता को ऐसे ही धोखे देते रहेंगे।कब उनकी भी दूसरे विशेष कृपापात्र शहरों की तरह किस्मत चमकेगी। और जिन गांव वालों ने अपने जीवन पर्यंन्त गांव मे लाईट नही देखी क्या कभी राज्य सरकार की नज़रे इनायत उनपर भी पड़ेगी।

बुधवार, 29 अगस्त 2012

खेल दिवस

दुनिया भर में भारत के राष्ट्रीय खेल का परचम लहराने वाले मेजर ध्यानचंद की आज जयंती है। उनके शानदार खेल की वजह से उन्हे हाकी का जादूगर भी कहा जाता है।उनकी याद में आज के दिन यानि 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेल के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करने वाले सभी खिलाड़ियों को खेल पुरस्कारों से नवाजा जाता है। हर साल की तरह इस साल भी राष्ट्रपति भवन में देश के महामहिम सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़यों का सम्मान करेंगे। पिछले एक साल में भारत में खेले जाने वाले सभी खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी सम्मानित करेंगे। साथ ही लंदन ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले खिलाड़ियों को भी राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित किया जाएगा। इस मौके पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले कोचों को भी सम्मानित किया जाएगा।

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

जलेबी की आत्मकथा

मैं जलेबी हूं। पौराणिक काल से लेकर आज तक मेरे चाहने वाले हमेशा से मेरा रसास्वादन करते रहे हैंं। मेरा साम्राज्य दुनिया के तमाम कोनों में फैला हुआ है। मेरे दीवाने भारत में ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान ईरान के साथ तमाम अरब देशों में फैले हुए हैंं। इतना ही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पश्चिमी देश स्पेन तक मेरे चाहने वालों की कोई कमी नहीं है।

मेरा नाम लेने से ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। स्त्री, पुरुष, बूढ़े, बच्चे और जवान सभी के बीच मैं खूब आदर पाती हूं। प्लेटफार्म हो या बस अड्डा या फिर टैक्सी स्टैंड, हर जगह मैं आसानी से मिल जाती हूं।  सर्दी, गर्मी या बरसात हो, चाहे कैसा भी मौसम हो मैं हमेशा दुकानों में सजी रहती हूं। मैं ऊपर से नीचे तक रस से भरी  हूं। मेरा स्वाद दूसरी मिठाइयों से अलग है। मेरी डिश बनाने में ज्यादा खर्च भी नहीं आता। 

हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई मैं सबकी चहेती स्वीट डिश हूं। मैं जात-पात,धर्म और संप्रदाय के बंधनों से हमेशा दूर रहती हूं। चाहे किसी भी जाति का हो किसी धर्म का हो मैंने कभी भी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। कभी गरीब-अमीर के बीच भेदभाव भी नहीं किया। गरीब हो या अमीर हर वर्ग के लोगों के लिए मैं सदैव तैयार रहती हूं। 

मैंने देश की बेरोजगारी दूर करने में भी अहम भूमिका निभाई है। कोई भी गरीब से गरीब व्यक्ति कहीं पर भी चंद रुपयों में जलेबी की दुकान खोल सकता है। मेरी दुकान कहीं पर भी हो मेरे चाहने वाले हमेशा ढूंढ़कर पहुंच ही जाते हैं। मेरी इन्हीं तमाम खूबियों के कारण भारत में मुझे राष्ट्रीय मिठाई का दर्जा प्राप्त है। कोई भी त्यौहार हो, कैसा भी मौका हो, हर सुख दुख में मैं अपने लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती हूं। 

स्वतंत्रता दिवस हो, गणतंत्र दिवस हो या कोई अन्य पर्व हो हर मौके पर मुझे खूब आदर मिलता है। लोकप्रियता के मामले में मुझे कोई टक्कर नहीं दे सकता। स्कूल-कॉलेजों में झंडा फहराया जाए और मेरी बात न हो संभव नहीं। राष्ट्रीय पर्वों पर राष्ट्रध्वज के बाद मैं ही सबकी पसंद होती हूं। 

इन सबके अलावा फिल्मी दुनिया में भी मेरा जबरदस्त बोलबाला  है। मेरे ही नाम का सहारा लेकर जलेबी बाई बनी मल्लिका शेरावत ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं।

इतनी उपलब्धियों के बाद भी अभी तक मुझे एक बात कचोटती रहती है। मैं इतनी सीधी-साधी और रसीली हूं लेकिन फिर भी लोग मुझे गलत तरीके से परिभाषित करते हैं। मुहावरे के तौर पर किसी दुष्ट व्यक्ति को संबोधित करने के लिए लोग कहते हैं "तुम तो ऐसे सीधे हो जैसे जलेबी"।

आज बढ़ती महंगाई के चलते मुझे महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। जिससे गरीब भाइयों का मेरे पास आना बंद होता जा रहा है। मैं चाहती हूं कि मेरे साथ हर तबके हर वर्ग के लोग हमेशा जुड़े रहें। मैं केवल अमीरों के पास नहीं रहना चाहती।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

त्रिवेदी पर हाय तौबा

दिनेश त्रिवेदी के रेल बजट पेश करते ही चारों तरफ हाय तौबा मच गई,, हर पार्टी दिनेश त्रिवेदी की आलोचना करने में अपनी शान समझने लगी,, यहां तक की उन्ही की पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पीएम को पत्र लिखकर उनके इस्तीफे तक की मांग कर डाली,, जबकि इससे पहले ममता की सिफारिश पर ही दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया था,, इन सब बातों पर चर्चा करते हुए कई सवाल जहन में उठते हैं ,,,क्या ममता की जानकारी के बगैर रेल बजट पेश किया गया या कोई राजनीतिक हथकंडा है,, क्या रेल मंत्रालय सरकार के राजनीतिक हितों को साधने के लिए है या समाज में बेहरत सेवा मुहैया कराने के लिए,, आज रेलवे में कई मूलभूत आवश्यकताएं मुंह बाये खड़ीं है,, उन्हे बिना किराया बढ़ाये कैसे पूरा किया जाये,, एक जो सबसे अहम सवाल है कि, क्या रेल का किराया बढ़ाना अनुचित है ,,पिछले कई सालों से किराये में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई,, जबकि हकीकत सभी जानते हैं,, एक और सवाल उठता है कि, बढ़ा हुआ किराया क्या इतना बोझ ड़ालेगा कि हमारा जेब खर्च चलाना मुश्किल हो जायेगा,,जबकि हम अभी भी रेल किराये की अपेक्षा कई गुना किराया उससे चौथाई से भी कम दूरी तक जाने में खपा देते हैं,, वहीं बुद्दिजीवी वर्ग का एक बड़ा खेमा किराये के बढ़ाये जाने को उचित ठहराता है,,साथ ही वो त्रिवेदी द्वारा उल्लेखित समस्याओं के हल पर भी जोर देने की बात करते हैं,, जब दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री के रूप में शपथ दिलायी गई,,बहुत से लोग आश्रचर्य चकित रह गये थे, दिनेश त्रिवेदी का नाम सुनकर,, ज्यादातर लोग त्रिवेदी पर ममता की कृपा बता रहे थे ,,अभी तक जो लोग दिनेश त्रिवेदी को नौसिखया मान रहे थे, अचानक ही वे सभी त्रिवेदी के साथ खड़े नजर आते हैं,, त्रिवेदी की प्रशंसा का सबसे बड़ा कारण है कि अगर पूर्व रेलमंत्री ने स्वेच्छा से,बिना किसी दखल के रेल बजट पेश किया है तो निसंदेह ही प्रशंसा के पात्र हैं,, क्योंकि त्रिवेदी से पहले रेल मंत्री ममता समेत कई रेल मंत्री थे जो लगभग पिछले एक दशक से रेल किराया बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा सके ,,वो काम बिना अपनी परवाह किये हुए दिनेश त्रिवेदी ने किया,,उन्होने बजट पेश करने से पहले यह भी नहीं सोचा कि आलाकमान की मनमर्जी के खिलाफ रेल बजट पेश करने से उनके राजनीतिक कैरियर पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है या फिर खत्म भी हो सकता है,, दिनेश त्रिवेदी ने जिस निर्भीकता से अपने राजनीतिक कैरियर की परवाह किये बिना ही रेल बजट पेश किया है,, वो काबिले तारीफ है,, इससे उनका राजनीतिक कद और बढ़ा है कम नहीं हुआ,, दिनेश त्रिवेदी ने यह जानते हुए भी कि,ममता दीदी बढ़ा हुआ बिल देखकर भड़क उठेंगी,, ममता जिनकी आदत सी हो गई है,कि गठबंधन तोड़ने की धमकी देते हुए हर मामलें में कांग्रेस की टांग खींचती रहती हैं,, ममता की एक सबसे बड़ी कमजोरी है कि वो पक्ष-विपक्ष दोनों की भूमिका में रहना चाहती हैं,, वे सरकार की हर उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि बताने में नहीं चूकतीं,, पर कोई भी ऐसा फैसला जो उनके वोट बैंक पर प्रभाव ड़ालता हो, के मसले पर यूपीए गठबंधन के मुखिया पर आंखे दिखाती नजर आती हैं,,पर इन सबकी परवाह किये बिना ही पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने जिस तरह से हिम्मत दिखाई है,,इसका खामियाजा उन्हे रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देकर भुगतना पड़ा,,
चाहे कुछ भी हो दिनेश त्रिवेदी भले ममता दीदी के दिल में जगह न बना पाये हों भले ही उन्हे अपना पद गंवाना पड़ा है ,,फिर भी दिनेश त्रिवेदी ने जो चाटुकारिता की राजनीति को पीछे छोड़ते हुए पार्टी वाद के खिलाफ अहम और रेल विभाग के लिए जरूरी फैसला लिया है ,,इससे एक वर्ग विशेष के दिल में अपनी जगह बनाने में जरूर सफल हुए हैं,,पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एक ऐसा कदम उठाया है जो रेलवे के बहुत ही जरूरी ही है,,और भारतीय राजनीति के लिए एक खास सबक भी है,,
एक बार फिर साबित हो गया है कि राजनैतिक बिसात पर जीतने के लिए हर दांव-पेंच आजमाया जाता है,,,साथ ही सियासत बचाने के लिए सबसे कमजोर प्यादे की कुर्बानी देना ही सबसे बड़ी चाल है,,,यहां एक सवाल और भी उठता है कि क्या दिनेश त्रिवेदी को राजनैतिक स्वार्थ के लिए केवल इस्तेमाल भर किया गया,,, और क्या उन्हे जानबूझकर बलि का बकरा बनाया गया,,,
आखिरकार ममता बनर्जी के दबाव के चलते दिनेश त्रिवेदी को इस्तीफा देना ही पड़ा,, हालांकि यह बात दूसरी है कि दिनेश त्रिवेदी ने शालीनता से मुस्कराते हुए अपना इस्तीफा सौंपकर, अनुशासन की शानदार मिशाल पेश की,, दिनेश त्रिवेदी जो वेल एज्यूकेटेड़ पर्सनाल्टी है,, जिन्होने एमबीए करने के बाद शिकागो में दो साल तक काम भी किया है,,उनकी जगह पर ममता बनर्जी ने अपने चहेते मकुल रॉय को नया रेल मंत्री बनाया गया है,, जो केवल बारहवीं पास हैं,, सवाल यह उठता है कि क्या रेल मंत्री बदलने से आप सारी समस्या का हल निकाल पायेंगे,,
नतीजा चाहे कुछ भी हो इस सारे प्रकरण से दिनेश त्रिवेदी के राजनैतिक कद में इजाफा ही हुआ है,,इस सारे प्रकरण में उनके समर्पण की भावना,उनकी सोच और उनकी राजनीतिक परिपक्वता सबके सामने आ गयी है,,,