शनिवार, 21 मई 2011

शुक्रवार, 6 मई 2011

नौटंकी पर संकट

प्राचीन समय से ही नौटंकी एक पावरफुल विधा रही है,इसने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया है |सोचने वाली बात यह है की नौटंकी जब इतनी पावरफुल विधा है तो धीरे-धीरे यह गायब क्यूँ होती जा रही है | जो लोग इसको  आगे बढ़ने का नारा देते हैं और इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं ,वही चुप  होजाते हैं क्यूँ ?
जो सब बुद्धिजीवी मिलकर निष्कर्ष निकलते हैं उस पर वही लोग अमल क्यूँ नहीं करते |हम दूरदर्शन तथा अन्य माध्यमो को इसके लिए दोषी क्यूँ मानते हैं,जबकि अन्य राज्यों की विधाओं पर इतना संकट नहीं आया |नौटंकी में दोहा ,चौबोला ,रेख्ता,कड़ा ,झूलना ,भजन ,आल्हा ,छंद  आदि विभिन्न तत्वों का अद्भुत समिक्श्रण है ,इस महान विधा का किन्ही कारणों से अस्तित्व समाप्त होना बहुत ही दुखद होगा |
फिल्मो के साथ नौटंकी में जो समस्या है वह है इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना | जैसे फिल्म की एक कॉपी को बैग में डालकर आप कही भी ले जा सकते हैं और एक साथ सारे विश्व में देखा जा सकता है जबकि नौटंकी को सारी जगहों पर लोग एक साथ नहीं देख सकते | पर एक बात बताना नही भूलूंगा नौटंकी की अपनी शक्ति भी है, गाँव के बीच जहाँ नक्कारा बजा किलोमीटर दूर से लोग खिंचे चले आते हैं |
आज जो नौटंकी की दुर्दशा हो रही है उसका प्रमुख कारण अच्छी नौटंकी लेखन का अभाव भी है,नौटंकी लेखन का छंद रचना पर अधिकार होना चाहिए |प्राचीन समय से लेकर अभी तक नौटंकी लेखन का आधार पोराणिक,धार्मिक व ऐतिहासिक रहा है |आज निश्चित रूप  से स्थितियाँ बदली हैं हर कोई यथार्थ को देखना चाहता है जो बहुत ही मुश्किल काम है| बहुत सी यथार्थ बातें आप सीधे-सीधे नहीं कह सकते जैसे राजनीति आदि पर | विशेषकर नौटंकी  कलाकारों के लिए स्थिति और भी गंभीर है क्यूंकि ज्यादातर  वो अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर हैं | इसलिए बात को सीधे-सीधे न कहकर समसामयिक प्रश्नों को पोराणिक  कथाओं के माध्यम से कहा जाता है तो जनमानस स्वीकार कर लेता है |
आजकल के लेखक को नौटंकी की आंतरिक स्थिति को समझते हुए एक नाटककार की भूमिका का पालन करते हुए नौटंकी लिखना पड़ेगा  | अब आवश्यकता इस बात की है लेखक आधुनिकता के हिसाब से नौटंकी का भी ज्ञान रखे  तो ही अच्छी नौटंकी लिखी जा सकेगी    |
नौटंकी एक जबरदस्त विधा है कोई अच्छे से इसे करके तो देखे  ! लेकिन लोग करना नहीं चाहते |
इस विधा को बचाने के लिए निश्चित तौर पर जमकर काम करना होगा वरना धीरे-धीरे नौटंकी  की लोप होता जायेगा ,अगर यह विधा उत्तरप्रदेश से किसी तरह समाप्त हो गयी तो हमारे पास अपना कुछ नहीं बचेगा |
अतः हम सबको नौटंकी जैसी प्राचीन और सशक्त विधा को बचाने के लिए हरसम्भव प्रयास करना होगा,हर उस निष्कर्ष पर जिसे सर्व-सम्मति से नौटंकी के विकास के लिए माना गया हो,को अमल में लाना होगा और सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे वरना नौटंकी जैसी हमारी प्राचीन संस्क्रति का लोप हो जायेगा और हम कुछ भी नही कर सकेंगे | 


रविवार, 1 मई 2011

नौटंकी

नौटंकी एक ऐसा नाम है जिससे लगभग हर भारतीय परिचित है | नौटंकी प्राचीन काल से ही लोगों का मनोरंजन करती आ रही है, पहले आज जैसे टी वी,रेडियो,थियेटर या अन्य  मनोंजन के साधन उपलब्ध नहीं थे , तब नौटंकी ही एकमात्र लोगों का मनोरंजन करती थी |
मुग़ल काल में  नौटंकी का जिक्र  मिलता है,भक्तिकाल में भी कबीरदास की रचनाओं में नौटंकी का जिक्र मिलता है |
पहले नौटंकी को स्वांग कहा जाता था ,जिसका अर्थ होता है नक़ल करना |प्रचलित प्रसिद्ध पुस्तकों एवं लोक कथाओं के नायको की नक़ल की जाती थी और उनकी कहानियों को कलाकारों के माध्यम से दिखाया जाता रहा है |\
स्याहपोश,सुल्ताना डाकू,इंदल हरण,अमर सिंह राठौर,भक्त पूरनमल एवं हरिश्चंद्र- तारामती आदि नौटंकियाँ पुराने समय से ही दिखाई जाती रही हैं |
स्वतंत्रता काल में महात्मा गाँधी ने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से प्रेरणा लेते हुए सत्य बोलने का प्राण लिया था |
नौटंकी की अपनी शैली एवं उसके अपने वाद्य यन्त्र  (जैसे तबला ,हारमोनियम ,नक्कारा आदि) हैं |   एक जानकर के अनुसार -  आज नौटंकी  केवल सरकारी विज्ञापनों पर ही जीवित है,नौटंकी के ही माध्यम से सरकार जनता तक अपना सन्देश एवं जागरूकता फैलाती है |
पूरे भारत में दो तरह की नौटंकी की शैलियाँ हैं ....
१-हाथरस शैली 
२-कानपुर शैली 
नौटंकी पर उर्दू, फारसी के अलावा क्षेत्रीय भाषा का सदैव दबदबा रहा है और एक वर्ग विशेष पर इसकी पकड़ रही है |कुलीन वर्ग नौटंकी को कमतर समझता है जबकि कुलीनों से हटकर कम शिक्षित , नारी समाज के लिए  नौटंकी सदैव कौतूहल की विषय वस्तु रही है    | निम्नवर्गीय एवं अशिक्षित समाज इसलिए इस ओर आकर्षित होता है  क्यूंकि इसकी प्रस्तुतीकरण ,भाषा एवं शैली सीधी ,सरल एवं मर्मस्पर्शी होती है |इसका मतलब यह नहीं की केवल अशिक्षित एवम वर्ग विशेष में ही नौटंकी लोकप्रिय है |आज भी कुलीन एवं शिक्षित  वर्गों में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन नौटंकी के लिए समर्पित कर दिया है | 
नौटंकी में महिला कलाकारों का भी विशेष योगदान रहा है, महिलाओं  के आने से नौटंकी की दिशा एवं दशा में परिवर्तन हुआ है |ऐसी ही प्रसिद्ध कलाकार हैं गुलाबबाई उन्हने १९३१ में १२ वर्ष की उम्र में  प्रथम महिला कलाकार के रूप में कदम रखा ,उससे पहले नौटंकी महिलाओं का रोल पुरुष ही करते थे | गुलाबबाई का सारा जीवन नौटंकी के मंच पर  बीता और अंत समय तक वो नौटंकी के विकास में ही लगी रहीं |तब से लेकर अब तक नौटंकी में महिला कलाकारों का विशेष योगदान रहा है और आज भी नौटंकी के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रहीं  हैं |
वर्तमान समय में नौटंकी अपना मूलरूप खोती जा रही है,अब नौटंकी में अपभ्रंश एवं द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग अधिक होता हैं जिससे गांवों,कस्बो में एक वर्ग विशेष ही नौटंकी में अपनी रूचि रखता है|
उत्तरप्रदेश का लोक्न्रत्य होने के बावजूद नौटंकी अंतिम सांसें गिन रही है ,इसके विकास के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं | कभी-कभी जो पैसा सरकार की तरफ से नौटंकी के विकास के लिए पास होता है वह बिचोलियों द्वारा हड़प लिया जाता है |
आज भी नौटंकी को आगे बढ़ने के लिए कई बुद्धिजीवी जी जन से जुटे हैं और नौटंकी के विकास के लिए समुचित प्रयास कर रहे हैं, जैसे उर्मिल थाप्रियाल - 'इन्होने नई तरह की नौटंकी' 'नागरी नौटंकी' लिखी और उस पर खोज कर रहे हैं  इसके अलावा आदमजीत सिंह,अशोक बैनर्जी मधु अग्रवाल,अलोक रस्तोगी,त्रिमोहन जी,एवं जुगलकिशोर आदि ऐसे प्रमुख नाम हैं जो नौटंकी के विकास के लिए प्रयासरत हैं |
कुछ बुद्धिजीवी नौटंकी की लोकप्रियता समाप्त होने का कारण बताते हैं ----
१-नौटंकी का करेंट अपडेशन  न होना
२-नए विषयों या नई कहानियो  का न दिखा पाना
३-कलाकारों को उचित पैसा एवं प्रोत्साहन न मिल पाना
४-सरकार द्वारा नौटंकी के विकास के लिए ठोस कदम न उठाना
५-साल में कम से कम नौटंकी का प्रदर्शित हो पाना ........आदि