बुधवार, 1 जून 2011

Creativity Every Time















नौटंकी का कोहिनूर

अगर हम नौटंकी के विकास या इतिहास की बात करें ,कक्कू जी का नाम न लें ऐसा हो नहीं सकता |
कक्कू जी को नौटंकी को लोकप्रिय बनाने  तथा विकास करने  के लिए भारत सरकार द्वारा कई पुरस्कार दिए गए हैं | कक्कू जी ने केवल भारत के विभिन्न स्थानों पर ही नहीं बल्कि विदेशों ( लाहौर,करांची,नेपाल ) में भी नौटंकी की है |
कक्कू जी के समय लोगों के मनोरंजन का एकमात्र साधन नौटंकी ही था |उनके समय में नौटंकी अपने चरम पर थी,दर्शक टिकट के लिए मारपीट तक कर देते थे | एक शो के लिए २०,००० तक दर्शक आ जाते थे ,टिकटों के लिए पहले से बुकिंग हो जाती थी |
कक्कू जी शानदार कलाकार होने के साथ-साथ  एक सह्रदय व्यक्ति थे |वह नौटंकी के विकास के लिए और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए सदैव प्रयासरत रहते थे | 
उन्होंने १९२० में लखनऊ के यहियागंज में नौटंकी के सामान की एक दुकान खोली  ताकि जो लोग सामान खरीद न सकें उन्हें आसानी से किराये पर मिल सके | उनकी दुकान लगभग पिछले १०० वर्षों से भी अधिक समय से चल रही है |वहां पर नौटंकी से जुडी हर वस्तु ड्रेस,वाद्ययंत्र या कोई भी नौटंकी में प्रयोग होने वाला हथियार या मुखोटा आसानी से किराये पर या बिक्री के लिए उपलब्ध है |
गाँव हो या शहर नौटंकी का हर कलाकार या उससे जुड़ा व्यक्ति कक्कू जी और उनकी दुकान को जानता  व  पहचानता था |
आज मनोरंजन के तमाम साधन उपलब्ध हैं,कलाकारों की भी नौटंकी के प्रति रूचि समाप्त होती जा रही है | नौटंकी अब दर्शकों  को नहीं ला पा रही है और अपनी ख्याति खोती जा रही है | ऐसे में कक्कू जी की दुकान गुमनामी के अँधेरे में खोती जा रही है |
 कक्कू जी का स्वर्गवास ९० के दशक में हुआ था ऐसा लगता है जैसे कक्कू जी के साथ-साथ  नौटंकी का अस्तित्व भी समाप्त होना चाहता है | नौटंकी से जुड़े कुछ  कलाकार जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन नौटंकी के लिए समर्पित कर दिया और कर रहे हैं के प्रयासों के कारण नौटंकी अभी जीवित है | नौटंकी से जुड़े हर कलाकार के दिल में कक्कू जी के लिए अपार श्रद्धा है | कक्कू जी के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र बालकिशन जी दुकान चलाते हैं |
 बालकिशन जी बताते हैं- पिताजी के समय पर ग्राहकों की लाइन लगी रहती थी अब तो कभी-कभी ही कोई ग्राहक आ जाता है | दुकान लगभग बंद होने की कगार पर है | एस दुकान से रोज़ी रोटी न चल पाने के कारण उन्होंने उसी में दूसरी बर्तन दुकान खोल ली है और नौटंकी के सामान को उठाकर घर में रख दिया है | जब कभी कोई ग्राहक आता है तो उसे घर ले जाकर सामान दे देते हैं |
 बालकिशन जी बताते हैं अब ज्यादातर स्कूलों में वार्षिकोत्सव या  रामलीला के दौरान ही लोग सामान लेने आते हैं |
आज कक्कू जी और उनकी दुकान को जो कभी सारे लोगों के बीच में प्रसिद्ध थे आज धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरों में खोते जा रहे हैं | अब सरकार और न ही लोगों का ध्यान उधर जाता है, कक्कू जी और उनकी दुकान केवल इतिहास बनकर रह गए हैं |
 इसी अनदेखी लापरवाही के कारण नौटंकी उत्तरप्रदेश का लोक्न्रत्य होने के बावजूद अंतिम साँसें गिनने को मजबूर है .....
कक्कू जी और उनके दुकान की कुछ तस्वीरें हैं जो आप देख सकते हैं....
पीतल का बना रावन का मुखौटा 





नौटंकी में प्रयोग होने वाले अस्त्र-शस्त्र


सामान रखने के लिए प्रयोग किये जाने वाले बक्से 







कक्कू जी




नौटंकी का सामान 






पुरस्कार 

कक्कू जी


बालकिशन कक्कू जी और गौतम बुद्ध जी की तस्वीर के साथ

बालकिशन जी अपनी दुकान का सामान दिखाते हुए

                            

सोमवार, 30 मई 2011

Right to Education: the ground reality in indian villages

नौटंकी वालों की नौटंकी

मुझे अपने एक साथी रजनीश के साथ रविवार को सुबह ४ बजे ही रिसर्च के लिए कानपुर जाना था | मैंने गार्ड से बोल दिया था सुबह ३:३० बजे मुझे जगा देना क्यूंकि सुबह ४ बजे ही बस लखनऊ से फैक़ल्टी लेने के लिए जाती है | मैंने रजनीश को बड़ी मुश्किल से जगाया वो बोला थोड़ी देर में चलेंगे मैंने बोला नहीं, कुछ लोग से मिलना है जिन्होंने ११ बजे तक का समय दिया है |हम दोनों जल्दी से समय पर तैयार हो गए पता चला बस ही नही जाएगी, रजनीश को मानो मौका मिल गया बोला सुबह-सुबह जगा दिया कहा था देर से चलो पता नहीं तुम्हे क्या जल्दी रहती है आदि....
 तभी पता चला इको लखनऊ जा रही है २ गेस्ट को छोड़ने, मैंने ड्राईवर चच्चू से कहा हमें भी लिए चलो संयोग से वो भी रेलवे स्टेशन ही जा रहे थे | रेलवे स्टेशन पहुंचकर हमने चाय-नाश्ता किया और ट्रेन का इंतजार करने लगे ट्रेन निर्धारित समय से केवल १० मिनट ही लेट आई थी, अगर गाड़ी समय पर ही आ जाये तो पता कैसे चलेगा  भारतीय रेलवे क़ी विशेषता !
मुझे कानपुर में हरिश्चंद्र जी जोकि मशहूर नक्कारा वादक हैं  उनसे तथा मधु अगरवाल जी  जो क़ी गुलाब बाई जी क़ी बेटी है और एक बड़ी नौटंकी कंपनी को चला रही हैं से मिलने जाना था |
मैंने ट्रेन में बैठते ही हरिश्चंद्र जी को एक मैसज कर दिया था क़ी सर हम लोग कानपुर १० बजे तक पहुँच जायेंगे क्यूंकि उन्होंने कहा था बेटा ११ बजे तक जरुर आ जाना मैंने स्टेशन पहुंचकर तुरंत काल क़ी पर रिसीव नहीं हो सका सोचा बिजी होंगे थोड़ी देर में करूँगा | तब तक बाहर निकलकर कुछ खा-पी लिया जाये, थोड़ी देर बाद मैं उन्हें लगातार कॉल करता रहा किसी ने भी फोन रिसीव नहीं किया | मैं बहुत परेशान  था बात क्यूँ नहीं हो पा रही है फिर सोचा बाहर निकलकर थोडा टाइम पास करके कॉल करूँगा |
मैं बाहर वाले गेट क़ी क़ी तरफ पंहुचा तभी एक टी टी ने मेरे दोस्त से टिकट माँगा, हम दोनों के टिकट उसके ही पास थे उसने दे दिया| मैंने टी टी से टिकट वापस माँगा उसने मना कर दिया बोला इसे जमा ही करना पड़ेगा | मेरे पास भी समय बहुत था और कुछ-कुछ गुस्सा भी आ रहा था , एक तो मेरा फोन रिसीव नहीं हो रहा था जिसके लिए मैं कानपुर तक भागा चला आया था | मैंने कहा अगर टिकट लेना है तो जितने पैसे में मैंने ख़रीदा है आधे मुझे दे दो और टिकट रख लो ,वह बोला यह रेल सम्पत्ति है इसे बाहर नहीं ले जा सकोगे अगर ले ही जाना है तो इसकी फोटोकॉपी करवा लेते |मैंने कहा ट्रेन में तो फोटोकॉपी होती नहीं है आप टिकट दीजिये मैं करवा के आपको देता हूँ  | उसने कहा नहीं दूंगा काफी विवाद बढ़ गया उसके  एक दो साथी और आ गये थे मैंने भी ठान लिया था मैं लेकर ही जाऊंगा |
उसने कहा इतनी बहस कर रहे हो इसका जुर्माना हमें चाहिए  कौन देगा ? मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा और पूंछा ? आप सुप्रीम कोर्ट हो क्या जो आपसे मैं बहस नहीं कर सकता ? वह चुप हो गया मैंने कहा मैं यहीं पर खड़ा हूँ कोई भी यात्री बिना टिकट दिए निकलना नहीं चाहिए | वह लोगों से टिकट मांगता कोई भीड़ देखकर  निकल जाता, मैं उसकी तरफ देखकर चुपचाप मुस्कराए जा रहा था | मैं ये सोंचे जा रहा था क़ी क्या सच में
इन लोगों को रेलवे की इतनी फिकर है ? ये किस रेल सम्पत्ति की बात कर रहे हैं ? उसने मेरी तरफ देखा मैं पहले की तरह ही मुस्कराए जा रहा था , उसने मेरा टिकट वापस दे दिया बोला ये लो और जाओ |
 मेरा काफी समय पास हो चुका था मैंने फिर से फोन लगाया लेकिन किसी ने भी रिसीव तक नहीं किया मैं बहुत परेशान था | उन्होंने शनिवार को इतना बताया था की किदवई नगर पहुँच कर कॉल कर लेना  हम आ जायेंगे | हम दोनों चिलचिलाती धुप में टैक्सी से इधर-उधर भटकते रहे फोन करते रहे पर कोई जवाब नहीं आया | आखिर मधुजी की कॉल रिसीव हुयी कोई उनका पी. ए. बोल रहा था बोला १ घंटे बाद करना, १ घंटे बाद किया तो पता चला २५ मिनट बाद'२५ मिनट बाद किया रिसीव ही नहीं हुआ | मैंने एक मैसज उनके सेल पर छोड़ दिया और निराश दुखी मन से वापस जाने के लिए बस-अड्डे की तरफ चल पड़ा तभी मधु जी की कॉल आई मेरी तो जान में जान आ गयी |  उन्होंने बताया आज मैं जरुरी काम से अपने हसबैंड के साथ बाहर जा रही  हूँ आज नहीं मिल सकती |
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था लोग ऐसे क्यूँ होते हैं जब मिलना नहीं था बुलाया ही क्यूँ ?  हरिश्चंद्र जी जिन्होंने कहा था बेटा ११ बजे तक आ जरुर जाना ,उन्होंने तो फोन तक नहीं रिसीव  किया | कम से कम बात तो कर लेना चाहिए था |मेरी समझ में आ रहा था  क्यूँ पिछले ४० वर्षों से  नौटंकी के अच्छे कलाकार होने के बावजूद तंगी हालत से गुजर रहे  हैं |जिसे अपने और दूसरे के समय की चिंता न हो वह कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता |
हम रात तक अपने इंस्टिट्यूट वापस आ गये थे और मैंने सोच लिया जरुरत पड़ने पर मैं शूट के लिए लखनऊ,इलाहाबाद तथा मथुरा में चला जाऊंगा पर कभी कानपुर नहीं जाऊंगा
  
         

    

शनिवार, 21 मई 2011

शुक्रवार, 6 मई 2011

नौटंकी पर संकट

प्राचीन समय से ही नौटंकी एक पावरफुल विधा रही है,इसने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया है |सोचने वाली बात यह है की नौटंकी जब इतनी पावरफुल विधा है तो धीरे-धीरे यह गायब क्यूँ होती जा रही है | जो लोग इसको  आगे बढ़ने का नारा देते हैं और इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं ,वही चुप  होजाते हैं क्यूँ ?
जो सब बुद्धिजीवी मिलकर निष्कर्ष निकलते हैं उस पर वही लोग अमल क्यूँ नहीं करते |हम दूरदर्शन तथा अन्य माध्यमो को इसके लिए दोषी क्यूँ मानते हैं,जबकि अन्य राज्यों की विधाओं पर इतना संकट नहीं आया |नौटंकी में दोहा ,चौबोला ,रेख्ता,कड़ा ,झूलना ,भजन ,आल्हा ,छंद  आदि विभिन्न तत्वों का अद्भुत समिक्श्रण है ,इस महान विधा का किन्ही कारणों से अस्तित्व समाप्त होना बहुत ही दुखद होगा |
फिल्मो के साथ नौटंकी में जो समस्या है वह है इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना | जैसे फिल्म की एक कॉपी को बैग में डालकर आप कही भी ले जा सकते हैं और एक साथ सारे विश्व में देखा जा सकता है जबकि नौटंकी को सारी जगहों पर लोग एक साथ नहीं देख सकते | पर एक बात बताना नही भूलूंगा नौटंकी की अपनी शक्ति भी है, गाँव के बीच जहाँ नक्कारा बजा किलोमीटर दूर से लोग खिंचे चले आते हैं |
आज जो नौटंकी की दुर्दशा हो रही है उसका प्रमुख कारण अच्छी नौटंकी लेखन का अभाव भी है,नौटंकी लेखन का छंद रचना पर अधिकार होना चाहिए |प्राचीन समय से लेकर अभी तक नौटंकी लेखन का आधार पोराणिक,धार्मिक व ऐतिहासिक रहा है |आज निश्चित रूप  से स्थितियाँ बदली हैं हर कोई यथार्थ को देखना चाहता है जो बहुत ही मुश्किल काम है| बहुत सी यथार्थ बातें आप सीधे-सीधे नहीं कह सकते जैसे राजनीति आदि पर | विशेषकर नौटंकी  कलाकारों के लिए स्थिति और भी गंभीर है क्यूंकि ज्यादातर  वो अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर हैं | इसलिए बात को सीधे-सीधे न कहकर समसामयिक प्रश्नों को पोराणिक  कथाओं के माध्यम से कहा जाता है तो जनमानस स्वीकार कर लेता है |
आजकल के लेखक को नौटंकी की आंतरिक स्थिति को समझते हुए एक नाटककार की भूमिका का पालन करते हुए नौटंकी लिखना पड़ेगा  | अब आवश्यकता इस बात की है लेखक आधुनिकता के हिसाब से नौटंकी का भी ज्ञान रखे  तो ही अच्छी नौटंकी लिखी जा सकेगी    |
नौटंकी एक जबरदस्त विधा है कोई अच्छे से इसे करके तो देखे  ! लेकिन लोग करना नहीं चाहते |
इस विधा को बचाने के लिए निश्चित तौर पर जमकर काम करना होगा वरना धीरे-धीरे नौटंकी  की लोप होता जायेगा ,अगर यह विधा उत्तरप्रदेश से किसी तरह समाप्त हो गयी तो हमारे पास अपना कुछ नहीं बचेगा |
अतः हम सबको नौटंकी जैसी प्राचीन और सशक्त विधा को बचाने के लिए हरसम्भव प्रयास करना होगा,हर उस निष्कर्ष पर जिसे सर्व-सम्मति से नौटंकी के विकास के लिए माना गया हो,को अमल में लाना होगा और सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे वरना नौटंकी जैसी हमारी प्राचीन संस्क्रति का लोप हो जायेगा और हम कुछ भी नही कर सकेंगे | 


रविवार, 1 मई 2011

नौटंकी

नौटंकी एक ऐसा नाम है जिससे लगभग हर भारतीय परिचित है | नौटंकी प्राचीन काल से ही लोगों का मनोरंजन करती आ रही है, पहले आज जैसे टी वी,रेडियो,थियेटर या अन्य  मनोंजन के साधन उपलब्ध नहीं थे , तब नौटंकी ही एकमात्र लोगों का मनोरंजन करती थी |
मुग़ल काल में  नौटंकी का जिक्र  मिलता है,भक्तिकाल में भी कबीरदास की रचनाओं में नौटंकी का जिक्र मिलता है |
पहले नौटंकी को स्वांग कहा जाता था ,जिसका अर्थ होता है नक़ल करना |प्रचलित प्रसिद्ध पुस्तकों एवं लोक कथाओं के नायको की नक़ल की जाती थी और उनकी कहानियों को कलाकारों के माध्यम से दिखाया जाता रहा है |\
स्याहपोश,सुल्ताना डाकू,इंदल हरण,अमर सिंह राठौर,भक्त पूरनमल एवं हरिश्चंद्र- तारामती आदि नौटंकियाँ पुराने समय से ही दिखाई जाती रही हैं |
स्वतंत्रता काल में महात्मा गाँधी ने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से प्रेरणा लेते हुए सत्य बोलने का प्राण लिया था |
नौटंकी की अपनी शैली एवं उसके अपने वाद्य यन्त्र  (जैसे तबला ,हारमोनियम ,नक्कारा आदि) हैं |   एक जानकर के अनुसार -  आज नौटंकी  केवल सरकारी विज्ञापनों पर ही जीवित है,नौटंकी के ही माध्यम से सरकार जनता तक अपना सन्देश एवं जागरूकता फैलाती है |
पूरे भारत में दो तरह की नौटंकी की शैलियाँ हैं ....
१-हाथरस शैली 
२-कानपुर शैली 
नौटंकी पर उर्दू, फारसी के अलावा क्षेत्रीय भाषा का सदैव दबदबा रहा है और एक वर्ग विशेष पर इसकी पकड़ रही है |कुलीन वर्ग नौटंकी को कमतर समझता है जबकि कुलीनों से हटकर कम शिक्षित , नारी समाज के लिए  नौटंकी सदैव कौतूहल की विषय वस्तु रही है    | निम्नवर्गीय एवं अशिक्षित समाज इसलिए इस ओर आकर्षित होता है  क्यूंकि इसकी प्रस्तुतीकरण ,भाषा एवं शैली सीधी ,सरल एवं मर्मस्पर्शी होती है |इसका मतलब यह नहीं की केवल अशिक्षित एवम वर्ग विशेष में ही नौटंकी लोकप्रिय है |आज भी कुलीन एवं शिक्षित  वर्गों में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन नौटंकी के लिए समर्पित कर दिया है | 
नौटंकी में महिला कलाकारों का भी विशेष योगदान रहा है, महिलाओं  के आने से नौटंकी की दिशा एवं दशा में परिवर्तन हुआ है |ऐसी ही प्रसिद्ध कलाकार हैं गुलाबबाई उन्हने १९३१ में १२ वर्ष की उम्र में  प्रथम महिला कलाकार के रूप में कदम रखा ,उससे पहले नौटंकी महिलाओं का रोल पुरुष ही करते थे | गुलाबबाई का सारा जीवन नौटंकी के मंच पर  बीता और अंत समय तक वो नौटंकी के विकास में ही लगी रहीं |तब से लेकर अब तक नौटंकी में महिला कलाकारों का विशेष योगदान रहा है और आज भी नौटंकी के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रहीं  हैं |
वर्तमान समय में नौटंकी अपना मूलरूप खोती जा रही है,अब नौटंकी में अपभ्रंश एवं द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग अधिक होता हैं जिससे गांवों,कस्बो में एक वर्ग विशेष ही नौटंकी में अपनी रूचि रखता है|
उत्तरप्रदेश का लोक्न्रत्य होने के बावजूद नौटंकी अंतिम सांसें गिन रही है ,इसके विकास के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं | कभी-कभी जो पैसा सरकार की तरफ से नौटंकी के विकास के लिए पास होता है वह बिचोलियों द्वारा हड़प लिया जाता है |
आज भी नौटंकी को आगे बढ़ने के लिए कई बुद्धिजीवी जी जन से जुटे हैं और नौटंकी के विकास के लिए समुचित प्रयास कर रहे हैं, जैसे उर्मिल थाप्रियाल - 'इन्होने नई तरह की नौटंकी' 'नागरी नौटंकी' लिखी और उस पर खोज कर रहे हैं  इसके अलावा आदमजीत सिंह,अशोक बैनर्जी मधु अग्रवाल,अलोक रस्तोगी,त्रिमोहन जी,एवं जुगलकिशोर आदि ऐसे प्रमुख नाम हैं जो नौटंकी के विकास के लिए प्रयासरत हैं |
कुछ बुद्धिजीवी नौटंकी की लोकप्रियता समाप्त होने का कारण बताते हैं ----
१-नौटंकी का करेंट अपडेशन  न होना
२-नए विषयों या नई कहानियो  का न दिखा पाना
३-कलाकारों को उचित पैसा एवं प्रोत्साहन न मिल पाना
४-सरकार द्वारा नौटंकी के विकास के लिए ठोस कदम न उठाना
५-साल में कम से कम नौटंकी का प्रदर्शित हो पाना ........आदि