सोमवार, 17 अगस्त 2020

Chetan Chauhan : क्रिकेट से लंबी रही चेतन चौहान की सियासी पारी

 चेतन चौहान


- कोरोना संक्रमण की वजह से यूपी के कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान का निधन

- चेतन से पहले 2 अगस्त को एक और कैबिनेट मंत्री कमला रानी वरुण का निधन हो चुका है

- 12 वर्ष तक देश के लिए क्रिकेट खेलने वाले चेतन चौहान 29 साल तक राजनीति में सक्रिय रहे


उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या डेढ़ लाख पार कर चुकी है। अब तक 2500 के करीब मरीजों की मौत हो चुकी है। इनमें आम आदमी से लेकर मंत्री-संतरी तक शामिल हैं। रविवार को योगी आदित्यनाथ कैबिनेट के दूसरे मंत्री चेतन चौहान का निधन हो गया। 73 वर्षीय चेतन चौहान ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में शाम 4.15 पर अंतिम सांस ली। 11 जुलाई को उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसपीजीआई में भर्ती कराया गया था। शनिवार शाम को किडनी और ब्लड प्रेशर संबंधित दिक्कत के बाद उन्हें मेदांता ले जा गया था। चेतन चौहान से पहले 2 अगस्त को यूपी की एक और मंत्री कमला रानी वरुण का भी कोरोना के कारण निधन हो चुका है। वह प्राविधिक शिक्षा मंत्री थीं। चेतन चौहान की सियासी पारी क्रिकेट से भी लंबी रही है।

यूपी में कोरोना के संक्रमण में योगी सरकार के नौ मंत्री आ चुके हैं। इनमें से दो का निधन हो गया। कोरोना पॉजिटिव पाये जाने के बाद जल शक्ति मंत्री डॉक्टर महेंद्र सिंह का अभी एसपीजीआई में इलाज चल रहा है। कानून मंत्री बृजेश पाठक की रिपोर्ट अब निगेटिव आई है। अब वे होम आइसोलेशन में हैं। इनके अलावा मंत्री उपेंद्र तिवारी, जेल मंत्री जय प्रताप सिंह, राजेंद्र प्रताप सिंह, धर्म सिंह सैनी, कैबिनेट मंत्री मोती सिंह भी एसजीपीजीआई में भर्ती थे। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद अब यह सभी स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की भी कोविड रिपोर्ट निगेटिव आई है, लेकिन वह अभी होम आइसोलेशन में हैं। जबकि कम से कम छह विधायक भी कोरोना पाजिटिव हैं। जिनका विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है।

चेतन का राजनीतिक कॅरियर

चेतन चौहान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। 1991 और 1998 के चुनाव में वह बीजेपी के टिकट पर सांसद बने थे और अब योगी सरकार में सैनिक कल्याण, होमगार्ड, पीआरडी, नागरिक सुरक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में वह अमरोहा जिले की नौगांवा विधानसभा से विधायक चुने गये थे। अमरोहा से ही वह दो बार सांसद रहे। तीन बार चुनाव हारने के बावजूद वह राजनीति के मैदान में डटे रहे।

वनडे मैचों में भारतीय टीम के कप्तान भी रहे

भारतीय क्रिकेट टीम में चेतन चौहान एक अहम बल्लेबाज रह चुके हैं। देश के लिए उन्होंने अब तक 40 टेस्ट मैच खेले हैं। टेस्ट मैचों में उनके नाम पर 2084 रन दर्ज हैं। उनका सर्वोच्च स्कोर 97 रन है। टेस्ट मैचं के अलावा चेतन चौहान ने सात वनडे मैचों में टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व भी किया है। महाराष्ट्र और दिल्ली की तरफ से वह रणजी मैच भी खेले हैं। 70 के दशक में वह सुनील गावस्कर के साथ ओपनिंग करते थे।

क्रिकेट से लंबी रही सियासी पारी

क्रिकेटर के तौर पर चेतन चौहान ने दुनिया के विभिन्न क्रिकेट ग्राउंड पर 12 वर्ष तक क्रिकेट खेला। क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद चेतन चौहान ने राजनीतिक पारी शुरू की। बीते 29 साल से वह राजनीति में सक्रिय थे। रविवार को उन्हें दुनिया को अलविदा कह दिया। क्रिकेट की तरह उनका सियासी सफर भी बेदाग रहा।

शनिवार, 15 अगस्त 2020

15 August : झंडा ऊंचा रहे हमारा... याद है न? बचपन में कैसे मनाते थे स्वतंत्रता दिवस

 


- आज 74वां Independence Day मना रहे हैं देशवासी
- बचपन में हफ्तेभर पहले से ही शुरू हो जाती थीं स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां
- खुद ही तैयार करते थे झंडा, देशभक्ति की दर्जनों कविताएं रहती थीं जुबान पर

स्वतंत्रता दिवस का जश्न तो हम बचपन में मनाते थे। अब तो बस खानापूर्ति हो रही है। ऐतिहासिक, सरकारी व निजी दफ्तरों में तिरंगा फहराया। आजादी के महानायकों पर फूलमाला चढ़ाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। आज देशभक्ति सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गई, जबकि बचपन में हम ऐसे नहीं थे। आपका तो पता नहीं, लेकिन मुझे याद है कि 15 अगस्त हो या 26 जनवरी तैयारियां एक हफ्ते से ही शुरू हो जाया करती थीं। खूब कविताएं तैयार करते थे। रिहर्सल करते। मां और छोटी बहन को कविताएं सुना-सुनाकर बोर कर दिया करते थे। उन दिनों गांवों में आज के जैसे रेडीमेड तिरंगे नहीं मिलते थे। इसके लिए हम खुद ही आत्मनिर्भर थे। तिरंगा बनाने का हमारा अपना टैलेंट था।

गांवों से आज तालाब गायब हो रहे हैं, उन दिनों तालाब के किनारे से खूब 'सेठा' (नरगद) होता था, जिसे हम काट ले आते। सही से उसको छीलते। सादे कागज पर तिरंगा बनाते जिसेघर में ही बनाई हुई लेई से सेंठा पर लपेटते। ऐसे कम से कम चार-पांच तिरंगे बनाते। एक स्कूल के लिए। दूसरा छत पर लगाने के लिए और बाकी गांव में धमा-चौकड़ी के लिए। एक दिन पहले ही 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' गाते हुए बच्चों की टोलियां पूरे गांव में धमा-चौकड़ी करतीं। 15 अगस्त को पापा की साइकिल में, बरामदे में बने छप्पर पर पूरे दिन हमारा तिरंगा लहराया करता था। केवल मैं ही नहीं, बल्कि पूरे गांव में ऐसा ही होता था। हर घर की छत पर कम से कम एक तिरंगा तो दिख ही जाता था और हर घर में 15 अगस्त की तैयारियां।

उन दिनों मैं गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा करता था। अगस्त शुरू होते ही स्कूल में पंडित जी (अध्यापक) स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में मशगूल हो जाते थे। छात्रों को रोज वंदे मातरम्, देशभक्ति की कविताएं रटाई जाती थीं। भाषण भी तैयार कराए जाते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई सभी के चहेते नायक हुआ करते थे। सभी बच्चों को इन महान देशभक्तों के बारे में बहुत कुछ पता रहता था। पता नहीं, अब ऐसा होता है या नहीं।

आखिर वह दिन आ जाता था, जिसके लिए पिछली रात को ठीक से नींद नहीं आई थी। अम्मा भी कहतीं, जाओ स्कूल में कविताएं बढ़िया से सुनाना। संस्कृत में भी देशभक्ति की कविताएं रट लेता था। उन दिनों स्कूल-कॉलेजों में संस्कृत को अंग्रेजी से कमतर तो कतई नहीं आंका जाता था। पर अब सभी अंग्रेजी चाहिए।

खैर छोड़िए, इन बातों में क्या रखा है। हम तो बात कर रहे थे 'तब की आजादी' की। 15 अगस्त को हम सुबह ही स्कूल में पहुंच जाते। पंडित जी सभी को झाड़ू पकड़ा देते। सभी बड़े मन से स्कूल साफ करते। खुशी-खुशी टाट-पट्टियां बिछाते और कुर्सियां लगाते। भूल जाते कि अम्मा ने कितना समझाकर भेजा था कि भइया कविता सुनाने से पहले कपड़े गंदे मत करना। 

सबसे पहले प्राइमरी स्कूल में ही ध्वजारोहण का कार्य संपन्न हो जाया करता था। पास में ही 100 मीटर की दूरी इण्टर कॉलेज था। जहां ऐसे अवसरों पर लाउडस्पीकर लगता था, जिसकी कानफोड़ू आवाज हमें हमारे स्कूल में सुनाई देती थी। 

15 अगस्त के दिन सबसे पहले हमारे नाखून चेक किए जाते। कपड़े साफ पहने हैं या नहीं, यह भी चेक किया जाता। इसके बाद ईश्वर प्रार्थना, ध्वजारोहण, राष्ट्रगान होता फिर कविताओं का दौर चलता। लेकिन इन सबसे पहले स्कूल के पंडित जी या मुंशी जी एक लंबा सा भाषण देने से नहीं चूकते कि कितनी मुश्किल परिस्थितियों में हमें आजादी मिली। राष्ट्रीय पर्वों पर बच्चों में बांटने के लिए हेडमास्टर जी बताशे मंगाते थे, जो हम सबके बीच बांट दिए जाते थे। हर छात्र को एक-एक मुट्ठी बताशा मिलता था। लेकिन हमें तो जलेबी खानी होती थी। वह मिलती थी पड़ोस वाले इंटर कॉलेज में।

कोई चपरासी तो होता नहीं था, इसलिए जल्दी से हम लोग कुर्सी-मेज वगैरह समेटकर रखते और इंटर कॉलेज की तरफ सरपट भाग जाते थे। वहां कोई बाउंड्री वॉल तो थी नहीं, इसिलए मैदान में ही कार्यक्रम का आयोजन होता था। वहीं, सभी छात्र अपनी कविताएं सुनाते थे। प्राइमरी वालों की भीड़ देखते ही तुरंत इंटर कॉलेज के एक मास्टर साहेब डंडी लेकर आ जाते और हम सबको लाइन से बिठाते। हम भी चुपचाप बैठकर कविताएं सुनते, जैसे ही शोरगुल होता मास्टर जी का डंडा सटक जाता था।

कॉलेज में छात्रों के लिए कागज के एक लिफाफे में जलेबियां आती थीं, जिन्हें उनके बीच बांट दिया जाता था। साथ ही प्राइमरी के छात्रों को भी जलेबी के दो-दो छत्ते दिए जाते। जिन्हें लेकर हम तुरंत घर की तरफ भाग जाते। रास्ते में देखते जाते कि किसके पास ज्यादा जलेबी और ज्यादा बताशे हैं।

राष्ट्रीय पर्व के मौके पर एकमात्र गांव में उपलब्ध दूरदर्शन चैनल 2 बजे से किसी देशभक्ति की फिल्म का प्रसारण करता था, जिसे हम देखे बिना हिलते तक नहीं थे। लाइट तो गांव में थी नहीं, इसलिए पहले से ही बैटरी भरवा ली जाती थी। पूरा दिन देशभक्ति के गीत गुनगुनाने में, शहीदों को याद करने में ही निकल जाता था। पर अब ऐसा नहीं होता।

अब तो बस लकीर का फकीर बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि अब कोई आजाद नहीं है, न ही किसी प्रकार की आजादी है। हर कोई किसी न किसी तरह की गुलामी में जकड़ा हुआ है। अब तो बस फेसबुक और व्हाट्सएप पर happy Independence day, जय हिंद, जय भारत जैसे स्लोगन लिखकर या तिरंगे की तस्वीर भेज कर इतिश्री कर लेते हैं।

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

Ranchod Shri Krishna : रणछोड़ क्यों कहलाए कर्मयोगी श्रीकृष्ण?

 माखन चोर श्रीकृष्ण एक समुद्री ...

- ललितपुर के जाखलान थाना क्षेत्र में है 5 हजार वर्ष पुराना रणछोड़ धाम मंदिर

- राक्षस कालयवन के वध से जुड़ा है यह स्थान, मुचकुंद की गुफाओं में निवास करते थे देवता

- बेतवा नदी (वेत्रवती नदी) किनारे हर बरस लगता है मेला, दूर-दूर से लीलाधर श्रीकृष्ण के दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु

ललितपुर. कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण रणछोड़ क्यों कहलाए? ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश की सीमा का अहसास कराने वाली बेतवा नदी के किनारे स्थित जंगलों में इसका रहस्य छुपा है। थाना जाखलौन के धोर्रा क्षेत्र के जंगलों के बीचो-बीच रणछोड़ धाम मंदिर और मुचकुंद गुफाएं हैं। देवराज इन्द्र और देवता कभी-कभी यहां निवास किया करते थे। श्रीमदभागवत महापुराण के दशम स्कन्द के 50, 51, 52 अध्याय में इनका उल्लेख है। बेतवा नदी (वेत्रवती नदी) के तट पर लगभग 5 हजार वर्ष पुराना भगवान रणछोड़ का मंदिर है। इसे राजा मुचकुंद बनवाया था। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य मूर्ति है। भगवान रणछोड़ के दर्शन के लिए बेतवा नदी के तट पर प्रतिवर्ष मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यहां भगवान के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। तो चलिए जानते हैं विंध्य की पहाड़ियों में ऐसा क्या हुआ कि कर्मयोगी कृष्ण रणछोड़ बन गए।


श्रीमदभागवत महापुराण में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने अपने शत्रु से मुकाबला न करके मैदान छोड़ना ही उचित समझा। ये प्रसंग तब का है, जब महाबली मगधराज जरासंध ने कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा था। जरासंध ने कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए अपने साथ कालयवन नाम के राजा को भी मना लिया था। कालयवन को भगवान शंकर से वरदान मिला था कि न तो चंद्रवंशी और न ही सूर्यवंशी उसका कभी कुछ बिगाड़ पाएंगे। उसे न तो कोई हथियार खरोंच सकता है और न ही कोई उसे अपने बल से हरा सकता है। ऐसे में उसे मारना बेहद मुश्किल था। जरासंध के कहने पर कालयवन ने बिना किसी शत्रुता के मथुरा पर आक्रमण कर दिया। लीलाधर श्री कृष्ण को उसके वरदान के बारे में पता था। उन्हें पता था कि कालयवन को युद्ध में नहीं हराया जा सकता। इसलिए वह उस राक्षस की ललकार सुनकर रणभूमि छोड़कर भाग निकले। कालयवन भी पीछे-पीछे दौड़ा। भागते भागते वह जनपद ललितपुर क्षेत्र में स्थित बेतवा नदी के किनारे आ गए थे। यहां वह एक गुफा में छिप गये, जहां राक्षसों से युद्ध करके राजा मुचकुंद त्रेतायुग से ऋषि के रूप में सोए हुए थे।


राजा मुचुकंद को इंद्र ने वरदान दिया था कि जो भी इंसान तुम्हें नींद से जगाएगा वो जलकर खाक हो जाएगा। ऐसे में भगवान कृष्ण कालयवन को अपने पीछे भगाते-भगाते उस गुफा तक ले आए। गुफा में भगवान कृष्ण ने राजा मुचुकंद पर अपना पीतांबर डाल दिया और छिप कर बैठ गए। कालयवन ने उन्हें कृष्ण समझकर जब लात मारकर जगाया तब ऋषि के रूप में सोए राजा मुचुकंद के जागते ही कालयवन जलकर खाक हो गया।