रविवार, 9 सितंबर 2012

मध्यप्रदेश में गलती जिंदगी !

मध्यप्रदेश में हरदा जिले के खरदाना गांव में 90 लोग गर्दन तक पानी में पानी में खड़े हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है,,अपने पुनर्वास की आस लिए पानी में खड़ी बुजुर्ग महिला कृष्णाबाई के हाथ,पैर,और पेट की खाल तक लगने लगी है, लेकिन किसान पुत्र कहे जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है ? जब उनको इसके बारे में जानकारी मिलती है तो वे खुद नहीं बल्कि अपने एक मंत्री को इन लोगों के पास भेजते हैं,और जब बात होती है आम जन के मुख्यमंत्री की तो भाजपा के लोग शिवराज बाबू को आम जन का भगवान साबित करने में जुट जाते हैं, वहीं अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए पहचाने जाने वाले एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ऊर्फ दिग्गी बाबू ठाकरे परिवार की बखिया उधेड़ने में तो जुट जाते हैं, जब राहुल गांधी के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन तैयार करनी होती है तो भूमिअधिग्रहण के नाम पर आंदोलन करने की बात करने लगते हैं, लेकिन उनके अपने ही प्रदेश में पिछले कई दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे लोग जिनका हाड़ मांस अब गलने लगा है,उनकी फिक्र इन्हें कब होगी, इन लोगों से मिलने के लिए इनके पास समय नहीं है, इतना ही नहीं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जो अपने आप को इस कदर पेश करता है मानो देश और समाज की सबसे ज्यादा फिक्र इन्हें ही है, इन न्यूज चैनल वालों के लिए भी ये खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका विजुअल रिच है,उन्हें इस खबर में टीआरपी तो नजर आती है लेकिन इन लोगों की समस्याएं नजर नहीं आ रही है, शायद इसी कारण इस खबर को इस कदर चला रहे हैं मानो जैसे ये कोई मनोरंजन का साधन हो,पानी में खड़े उन नब्बे लोगों की क्या मजबूरियां हैं,उनकी क्या मांगे हैं इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, मुंबई में राज ठाकरे जब हिंदी न्यूज चैनल को मुंबई में बंद कराने की धमकी देते हैं तो ये लोग हाय तौबा मचाने लगते हैं, हर हिंदी न्यूज चैनल पर ये बहस शुरू हो जाती है कि राज ठाकरे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला कर रहे हैं, काश यही बहस वे लोग एमपी के खरदाना में जल सत्याग्रह पर बैठे लोगों की समस्याओं जानने के लिए, उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने के लिए बहस किए होते ।

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

कौन बनायेगा उत्तम प्रदेश...??

राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठेगा कुछ पता नहीं, अपने प्रदेश की जनता को लेकर उसकी क्या रणनीति है।उसके द्वारा किए गये वादों का क्या होगा, विकास के मापदंड़ क्या होंगें कुछ पता। हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश की जहां हमेशा से उसके राजनेता जनता के पैसे का दुरुपयोग करते रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो यूपी की जनता को हमेशा ही भेदभाव की राजनीति से दो-चार होना पड़ता है,कभी जाति के नाम पर तो कभी क्षेत्रवाद के नाम पर। चाहे कितनी बार भी सत्ता परिवर्तन हो लेकिन राजनेताओं की मानसिकता जस की तस ही रही है। ज्यादा पीछे ना जाकर माया सरकार के कार्यकाल शुरुआत करते हैं। मायावती को जनता पूरे बहुमत के सत्ता में इस उम्मीद से लेकर आई थी कि शायद अब कुछ हालात बदलें।लेकिन मायावती जी ने उन्ही के लिए कुछ नहीं किया जिन्होने उन्हे चुनकर भेजा था। माया ने अपना फोकस मूर्तियों और पार्कों पर कायम रखा। ज्यादा अच्छा होता अगर कुछ जनकारी योजनाएं लागू करके उनका क्रियान्वयन किया जाता।लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो सका,लिहाजा जनता ने भी अपना काम किया और चुनाव में बसपा की नकार कर, सत्ता में सपा को इस उम्मीद से पूर्ण बहुमत में लाई कि शायद अखिलेश जी ही कुछ भला करेंगे। लेकिन सपा ने भी अभी तक ऐसा कोई ऐसा काम नहीं किया है जिससे कि उसकी पीठ थपथपाई जा सके। हां केवल इतना जरूर किया है उसने मायावती द्वारा किये गये कामों को बिगाड़ने में ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित किया है।
रोजी,रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा,चिकित्सा और सुरक्षा किसी भी राज्य के नागरिक की मूलभूत आवश्यकताएं हैं।हर नागरिक चाहता है उसके घर में हमेशा बिजली रहे,खेतों में सिंचाई की समस्या ना हो,गरमी से परेशानी ना हो, उसके बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी अंधेरे के कारण ना रुके। इसीलिए चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता को ही उच्च जीवन स्तर या विकास का मानक माना गया है। लेकिन प्रदेश के कुछ चुनिंदा शहरों में ही चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। सत्ता परिवर्तन के बाद इटावा,मैनपुरी,कन्नौज,लखनऊ और रामपुर में पहले से ही बिजली ना काटने के निर्देश दिये गये थे। वहीं अब यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाधी को यूपी में केवल अमेठी और रायबरेली ही नजर आता है, सोनिया गांधी के कहने पर ही अब रायबरेली और अमेठी में भी 24 घटे बिजली रहेगी।फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कब तक मुलायम सोनिया के साथ रहते हैं जबकि ये भी सच है कि यूपी में वोटों के लिए कांग्रेस और सपा की ही सीधी टक्कर होगी।  वहीं माया राज में बादलपुर,अंबेड़करनगर, और उनके द्वारा बनवाये पार्क चौबीस घंटे बिजली से चमचमाते रहे। यहां यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ये शहर ही पूरी तरह से विकसित हैं या विकास के मापदंड़ पर खरे उतरते हैं ऐसा नहीं है बल्कि इन राज्यों में बिजली देना इनके राजनीतिक स्वार्थ निहतार्थ हैं।जबकि प्रदेश की बहुतायत जनता ने पूरे बहुमत के साथ पार्टी को चुनाव में विजयी बनाया था,क्या यही सोचकर कि उसके साथ पक्षपात हो,चन्द चुनिंदा शहरों को छोड़कर बाकी शहरों का गुनाह क्या था।हालत यह है कि बिजली उत्पादन के मामले में उत्तरप्रदेश दूसरे राज्यों से काफी पीछे है वहीं बिजली चोरी मामले में इतिहास अव्वल रहा। अभी हाल ही में देश में आये बिजली संकट ने पूरे देश को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था। और इस मामले में भी राष्ट्रीय ग्रिड से अनुशासन तोड़कर बिजली लेने का आरोप लगा था।
अगर ताजा सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तरप्रदेश में अभी भी तिरसठ प्रतिशत लोग दीपक जलाकर ही पढ़ते हैं। वर्ष 2001 में राज्य के 31.9 फीसदी घरों में बिजली थी और दस साल बाद बिजली मात्र 36.8 फीसदी घरों मे ही पहुंच पाई।
प्रदेश के कर्ता-धर्ता कब तक जनता को ऐसे ही धोखे देते रहेंगे।कब उनकी भी दूसरे विशेष कृपापात्र शहरों की तरह किस्मत चमकेगी। और जिन गांव वालों ने अपने जीवन पर्यंन्त गांव मे लाईट नही देखी क्या कभी राज्य सरकार की नज़रे इनायत उनपर भी पड़ेगी।