सोमवार, 27 अगस्त 2012

त्रिवेदी पर हाय तौबा

दिनेश त्रिवेदी के रेल बजट पेश करते ही चारों तरफ हाय तौबा मच गई,, हर पार्टी दिनेश त्रिवेदी की आलोचना करने में अपनी शान समझने लगी,, यहां तक की उन्ही की पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पीएम को पत्र लिखकर उनके इस्तीफे तक की मांग कर डाली,, जबकि इससे पहले ममता की सिफारिश पर ही दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया था,, इन सब बातों पर चर्चा करते हुए कई सवाल जहन में उठते हैं ,,,क्या ममता की जानकारी के बगैर रेल बजट पेश किया गया या कोई राजनीतिक हथकंडा है,, क्या रेल मंत्रालय सरकार के राजनीतिक हितों को साधने के लिए है या समाज में बेहरत सेवा मुहैया कराने के लिए,, आज रेलवे में कई मूलभूत आवश्यकताएं मुंह बाये खड़ीं है,, उन्हे बिना किराया बढ़ाये कैसे पूरा किया जाये,, एक जो सबसे अहम सवाल है कि, क्या रेल का किराया बढ़ाना अनुचित है ,,पिछले कई सालों से किराये में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई,, जबकि हकीकत सभी जानते हैं,, एक और सवाल उठता है कि, बढ़ा हुआ किराया क्या इतना बोझ ड़ालेगा कि हमारा जेब खर्च चलाना मुश्किल हो जायेगा,,जबकि हम अभी भी रेल किराये की अपेक्षा कई गुना किराया उससे चौथाई से भी कम दूरी तक जाने में खपा देते हैं,, वहीं बुद्दिजीवी वर्ग का एक बड़ा खेमा किराये के बढ़ाये जाने को उचित ठहराता है,,साथ ही वो त्रिवेदी द्वारा उल्लेखित समस्याओं के हल पर भी जोर देने की बात करते हैं,, जब दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री के रूप में शपथ दिलायी गई,,बहुत से लोग आश्रचर्य चकित रह गये थे, दिनेश त्रिवेदी का नाम सुनकर,, ज्यादातर लोग त्रिवेदी पर ममता की कृपा बता रहे थे ,,अभी तक जो लोग दिनेश त्रिवेदी को नौसिखया मान रहे थे, अचानक ही वे सभी त्रिवेदी के साथ खड़े नजर आते हैं,, त्रिवेदी की प्रशंसा का सबसे बड़ा कारण है कि अगर पूर्व रेलमंत्री ने स्वेच्छा से,बिना किसी दखल के रेल बजट पेश किया है तो निसंदेह ही प्रशंसा के पात्र हैं,, क्योंकि त्रिवेदी से पहले रेल मंत्री ममता समेत कई रेल मंत्री थे जो लगभग पिछले एक दशक से रेल किराया बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा सके ,,वो काम बिना अपनी परवाह किये हुए दिनेश त्रिवेदी ने किया,,उन्होने बजट पेश करने से पहले यह भी नहीं सोचा कि आलाकमान की मनमर्जी के खिलाफ रेल बजट पेश करने से उनके राजनीतिक कैरियर पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है या फिर खत्म भी हो सकता है,, दिनेश त्रिवेदी ने जिस निर्भीकता से अपने राजनीतिक कैरियर की परवाह किये बिना ही रेल बजट पेश किया है,, वो काबिले तारीफ है,, इससे उनका राजनीतिक कद और बढ़ा है कम नहीं हुआ,, दिनेश त्रिवेदी ने यह जानते हुए भी कि,ममता दीदी बढ़ा हुआ बिल देखकर भड़क उठेंगी,, ममता जिनकी आदत सी हो गई है,कि गठबंधन तोड़ने की धमकी देते हुए हर मामलें में कांग्रेस की टांग खींचती रहती हैं,, ममता की एक सबसे बड़ी कमजोरी है कि वो पक्ष-विपक्ष दोनों की भूमिका में रहना चाहती हैं,, वे सरकार की हर उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि बताने में नहीं चूकतीं,, पर कोई भी ऐसा फैसला जो उनके वोट बैंक पर प्रभाव ड़ालता हो, के मसले पर यूपीए गठबंधन के मुखिया पर आंखे दिखाती नजर आती हैं,,पर इन सबकी परवाह किये बिना ही पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने जिस तरह से हिम्मत दिखाई है,,इसका खामियाजा उन्हे रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देकर भुगतना पड़ा,,
चाहे कुछ भी हो दिनेश त्रिवेदी भले ममता दीदी के दिल में जगह न बना पाये हों भले ही उन्हे अपना पद गंवाना पड़ा है ,,फिर भी दिनेश त्रिवेदी ने जो चाटुकारिता की राजनीति को पीछे छोड़ते हुए पार्टी वाद के खिलाफ अहम और रेल विभाग के लिए जरूरी फैसला लिया है ,,इससे एक वर्ग विशेष के दिल में अपनी जगह बनाने में जरूर सफल हुए हैं,,पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एक ऐसा कदम उठाया है जो रेलवे के बहुत ही जरूरी ही है,,और भारतीय राजनीति के लिए एक खास सबक भी है,,
एक बार फिर साबित हो गया है कि राजनैतिक बिसात पर जीतने के लिए हर दांव-पेंच आजमाया जाता है,,,साथ ही सियासत बचाने के लिए सबसे कमजोर प्यादे की कुर्बानी देना ही सबसे बड़ी चाल है,,,यहां एक सवाल और भी उठता है कि क्या दिनेश त्रिवेदी को राजनैतिक स्वार्थ के लिए केवल इस्तेमाल भर किया गया,,, और क्या उन्हे जानबूझकर बलि का बकरा बनाया गया,,,
आखिरकार ममता बनर्जी के दबाव के चलते दिनेश त्रिवेदी को इस्तीफा देना ही पड़ा,, हालांकि यह बात दूसरी है कि दिनेश त्रिवेदी ने शालीनता से मुस्कराते हुए अपना इस्तीफा सौंपकर, अनुशासन की शानदार मिशाल पेश की,, दिनेश त्रिवेदी जो वेल एज्यूकेटेड़ पर्सनाल्टी है,, जिन्होने एमबीए करने के बाद शिकागो में दो साल तक काम भी किया है,,उनकी जगह पर ममता बनर्जी ने अपने चहेते मकुल रॉय को नया रेल मंत्री बनाया गया है,, जो केवल बारहवीं पास हैं,, सवाल यह उठता है कि क्या रेल मंत्री बदलने से आप सारी समस्या का हल निकाल पायेंगे,,
नतीजा चाहे कुछ भी हो इस सारे प्रकरण से दिनेश त्रिवेदी के राजनैतिक कद में इजाफा ही हुआ है,,इस सारे प्रकरण में उनके समर्पण की भावना,उनकी सोच और उनकी राजनीतिक परिपक्वता सबके सामने आ गयी है,,,

बड़े मियां बड़े मियां छोटे मियां शुभानअल्लाह...

अंडर-19 वि·ाकप में जिस तरह से भारतीय बल्लेबाजों ने मेजबान ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर मात दी है,काबिले तारीफ है। संड़े का दिन भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए बहुत ही खास रहा।एक ओर जहां जूनियर भारतीय शेरों ने तीन बार की विश्वविजयी ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में परखनी देकर विश्वविजेता बने वहीं सीनियर भारतीय क्रिकेट टीम ने न्युजीलैण्ड को पूरी तरह से पीटकर दो टेस्ट मैचों की सीरीज में 1-0 की महत्वपूर्ण बढ़त हासिल कर ली। 57 साल बाद यह पहला मौका है जब टीम इंडिया ने न्युजीलैण्ड को पारी और इतने बड़े अंतर से हराया है। जिस तरह से जूनियरों ने पिछले सत्र की वि·ाविजेता ऑस्ट्रेलिया को उसके ही घर में हराया है प्रशंसनीय है।अंडर-19 विश्वकप के फाइनल में जिस तरह से भारतीय टीम ने खेल दिखाया है निश्चय ही भारत में क्रिकेट का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। इस टूर्नामेंट ने सेलेक्टरों के सामने और विकल्प बढ़ा दिये हैं। अभी कुछ ही दिन पहले चर्चाएं जोरों पर थीं कि राहुल द्रविड़,वीवीएस लक्ष्मण और सचिन तेन्दुलकर की कमी कौन पूरा करेगा,अपने प्रदर्शन से सीनियर और जूनियर टीम के खिलाड़ियों ने बता दिया कि वे कोई भी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं।जो भारतीय क्रिकेट टीम के लिए बहुत ही शुभ संकेत हैं। जिस तरह से चर्चाएं थी टेस्ट में कौन राहुल द्रविड़ की भरपाई करेगा तो युवा चेते·ार पुजारा शानदार प्रदर्शन कर मौके को पूरी तरह से भुनाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।ये भी कहा जा रहा था कि हरभजन,अनिल कुंबले के बाद स्पिन विभाग कौन संभालेगा तो आर.अश्वनी ,प्रज्ञान ओझा और पीयूष चावला ने फिरकी विभाग में शानदार प्रदर्शन कर हरभजन की बादशाहत को ही खत्म कर दिया। आज सीनियर टीम मे विराट कोहली,सुरेश रैना,महेन्द्र सिंह धोनी,और आर.अश्वनी के अलावा कितने ही खिलाड़ी दस्तक दे रहे हैं।खैर सचिन और द्रविड़ जैसे महान खिलाडियों की कमी तो पूरी नहीं की जा सकती लेकिन जिस तरह से यंगिस्तान ने प्रदर्शन किया है और कर रहे हैं इन खिलाड़ियों ने कमी को लगभग पाट सा दिया है।
भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने के लिए जबरदस्त प्रतिस्पर्धा जारी है जो किसी भी देश की टीम के लिए जरूरी है। टीम में टिके रहने के लिए आपको हर हाल में प्रदर्शन करना ही होगा।
हालांकि ये कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा कि सचिन,सौरव,राहुल और लक्ष्मण की जगह लेने के लिए ये खिलाड़ी पूर्णतया परिपक्व हैं। लेकिन इन युवा बल्लेबाजों ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया है कि वे अब कोई भी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं।पहले कहा जाता था कि सुनीव गावस्कर के बाद उनकी जगह कौन लेगा, कोई नहीं जानता था कि ये सचिन एक दिन ना केवल गावस्कर को बल्कि दुनिया के तमाम दिग्गजों को पीछे छोड़ इतना आगे निकल जाएगा जहां तक पहुंचना किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल होगा। वहीं अभी से लोग विराट कोहली को सचिन के विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। निसंदेह सचिन सिर्फ एक है और एक ही रहेगा और उनकी कमी की भरपाई शायद नहीं हो सके। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सचिन के बाद भारतीय टीम में प्रतिभाशाली बल्लेबाजों की कमी रहेगी। आज जिस तरह से सीनियर और जूनियर  क्रिकेट टीम के खिलाड़ी प्रदर्शन कर रहे हैं लगता नहीं कि भारतीय टीम किसी एक या दो खिलाड़ियों पर निर्भर कर रही है।
अंडर-19विश्वकप में भारत को जो सितारे नज़र आये हैं उनमें बाबा अपराजित,उन्मुक्त चंद और संदीप शर्मा प्रमुख हैं। इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन अगर ऐसा ही जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये राष्ट्रीय टीम का हिस्सा होंगे।
ऑस्ट्रेलिया को हराकर तीसरी बार भारत आईसीसी अंडर-19 विश्वकप का विजेता बनकक अपनी बादशाहत कायम की है।






रविवार, 19 अगस्त 2012

अलविदा लक्ष्मण...

भारत के  वेरी-वेरी स्पेशल बल्लेबाज के वेरी-वेरी स्टाइलिश शॉट अब आपको सिर्फ रिकार्डिंग में ही देखने को मिलेंगे।इस धुरंधर बल्लेबाज को अब हम स्टेडियम में ग्राउंड के चारों तरफ कलात्मक शॉट लगाते नहीं देख पायेंगे। अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से दुनिया की धुरंधर टीमों के लिए परेशानी का सबब बने वीवीएस लक्ष्मण ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। 1996में लक्ष्मण ने टेस्ट क्रिकेट में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने कैरियर की शुरुआत की थी। अपने 16 साल के लंबे क्रिकेट कैरियर में लक्ष्मण ने भारत की तरफ से खेलने वाले इस धुरंधर बल्लेबाज ने 134 टेस्ट मैच खेले इनमें 8781 रन बनाये।आस्ट्रेलिया के खिलाफ इनकी 281 रनों की पारी आज भी यादगार है।वहीं,वेरी वेरी स्पेशल ने 86 एक दिवसीय मैचों में दो हजार से ज्यादा रन बनाये। फिर भी अपने पूरे क्रिकेट कैरियर में लक्ष्मण को कई बार उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ा। लेकिन लक्ष्मण ने हर बार अपने आलोचकों को अपने बल्ले से मुंहतोड़ जवाब दिया।लक्षमण ने हमेशा शांत रहकर मैदान पर अपने बल्ले से विपक्षी गेंदबाजों को धूल चटाकर भारत की जीत सुनिश्चित की है। लेकिन लक्ष्मण ने जिस तरह से अपना सबकुछ क्रिकेट में झोका हुआ है मुझे लगता है कभी उनके साथ न्याय नहीं हो सका है।एक ऐसा बल्लेबाज जो आमतौर पर प्रेशर में पांचवे या छठे नंबर पर बैटिंग के लिए आता है आप उससे कितनी उम्मीद रखते हैं। फिर भी लक्ष्मण ने अपने को हमेशा उम्मीद से बेहतर साबित किया। एक बार गांगुली ने कहा था कि लक्ष्मण बहुत ही शानदार बल्लेबाज हैं लेकिन अगर उन्हे भी ऊपर आकर खेलने का मौका तो उनके भी खाते में सचिन या राहुल द्रविड़ से कम रन नहीं होते। गांगुली और द्रविड के संयास लेने के बाद अभी तक उनके उत्तराधिकारी की खोज नहीं की जा सकी है वैसे में लक्ष्मण का उत्तराधिकारी कौन होगा कह पाना मुश्किल है।
न्युजीलैण्ड टीम के खिलाफ लक्ष्मण का टेस्ट टीम में सेलेक्शन हुआ था। उम्मीद जताई जा रही थी कि इस सीरीज के बाद लक्ष्मण सन्यास लेंगे। लेकिन जिस स्टाइल में इस स्टाइलिस बल्लेबाज ने सन्यास लिया है उससे उसकी भावनाओं का साफ पता चलता है, टीम में सेलेक्शन के बाद भी लक्ष्मण का सन्यास लेना अपने आप में पूरी कहानी बयां करता है।
चाहे भारत के सफलतम कप्तान गांगुली हों,टीम इंडिया की भरोसेमंद दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ हों या फिर कलाई के जादूगर वीवीएस लक्ष्मण हों इन सबकी जिस तरह से टीम की विदाई हुई निश्चित ही पीडादायक और दिल को ठेंस पहुंचाने वाली है।
जिन्होने पूरी दुनिया में अपनी बल्लेबाजी से भारतीय टीम का डंका बजाया उनकी इस तरह से विदाई किसी भी तरह से सही नहीं मानी जा सकती ।