शनिवार, 25 जुलाई 2015

किसानों के घावों पर तेजाब मत छिड़किए मंत्री जी

राज्य सभा में मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह ने जो भी बयान दिए, संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। केंद्रीय मंत्री ही नहीं पूरी मोदी सरकार जिन किसानों की हिमयाती होने का दम भरती है, उनके लिए कृषि मंत्री द्वारा ऐसा बयान देना घाव पर नमक नहीं बल्कि तेजाब छिड़कने जैसा है। राज्य सभा में मंत्री जी ने किसानों की आत्महत्या के कारणों पर जवाब देते हुए कहा कि इस साल 1400 से ज्यादा किसानों ने दहेज, प्रेम संबंधों और नामर्दी के चलते आत्महत्या की। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 में कुल 5650 किसानों ने आत्महत्याएं की। ये वे लोग हैं जो कृषि के क्षेत्र में आत्म निर्भर थे।

बयान पर बवाल होना स्वाभाविक था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी समेत कई नेताओं ने कृषि मंत्री के बयान की निंदा करते हुए संवेदनहीन तक कह डाला। वहीं, जद(यू) सांसद के.सी. त्यागी ने कहा कि वह इस बयान के लिए कृषि मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाएंगे।

सवाल ये नहीं है कि बयान पर किसने क्या कहा? विपक्ष का काम है बोलना, वो तो बोलेगा। सवाल है कि खुद को किसानों की हमदर्द कहलाने वाली सरकार के केंद्रीय मंत्री में इतनी भी समझ नहीं है कि आत्महत्या की वास्तिवक वजह प्यार में धोखा खाना नहीं बल्कि कर्ज, फसल बर्बादी और बिचौलियों के कारण सरकार से न मिलने वाली सहायता है। समझ में नहीं आता खुद को किसान पुत्र कहने वाले राधा मोहन जी किन किसानों की बात कर रहे हैं? हमारे देश में तो अधिकतर किसान दो जून की रोटी के जुगाड़ में ही जीवन खपा देते हैं।

केंद्रीय मंत्री बयान के दूसरे पहलुओं पर गौर करें तो साफ दिखता है कि किसानों के लिए अभी अच्छे दिनों की बात करना भी बेइमानी है। जब नीति नियंताओं को ही नहीं पता कि किसान की समस्या उसका वास्तविक दर्द क्या है! तो किसानों की वैसी स्थिति को ध्यान में रखकर योजनाओं पर अमल लाया जाएगा।

हालांकि, चौतरफा हमलों से घिरे राधामोहन सिंह ने अपने सफाई में कहा कि उन्होंने अपने मन से उसमें कुछ नहीं लिखा। जो भी आंकड़े दिए गए हैं वे एनसीआरबी के रिपोर्ट के आधार पर ही दिए गए हैं। सवाल ये उठता है कि कहां क्या लिखा है और किसने क्या लिखा है? मतलब नहीं है! आप क्या सोचते हैं किसान को सिर्फ इससे मतलब है। क्योंकि आप सिर्फ आप ही इस देश के कृषि मंत्री हैं। आप पर ही अन्नदाता तक सुविधाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी है, जिसके लिए जनता ने पूरी ताकत से आपको चुनकर यहां तक पहुंचाया है। उसकी भावनाओं संग यूं खिलवाड़ आने वाले दिनों में आपको काफी महंगा पड़ सकता है।

अगर आप आंकड़ों की ही बात करते हैं तो करीब पांच साल पहले कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पंजाब में कुछ केस स्टडी के आधार पर किसानों की खुदकुशी की वजह बढ़ता कर्ज, साहूकारों द्वारा वसूला जाने वाला मोटा ब्‍याज और किसानों की छोटी होती जोत को बताया था। बयान देते समय आपके जेहन में वो क्यों नहीं आया?

ऐसा पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार के किसी मंत्री ने किसानों को लेकर विवादित बयान दिया हो। इससे पहले अप्रैल में जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रैली में गजेंद्र नाम के एक किसान ने जब पेड़ पर फांसी लगाकर आत्महत्या की थी तो बीजेपी शासित हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ ने कहा था कि ऐसे लोग कायर होते हैं।

ऐसा ही रहा तो वो समय दूर नहीं है, जब किसानों का पूर्ण बहुमत से चुनी गई सरकार पर से भी भरोसा उठने में कतई देर नहीं लगेगी। आपका काम है कि देखना कि वर्तमान में किसानों की क्या समस्याएं हैं? ऐसा क्या किया जाए कि भविष्य में उन्हें भूतकाल जैसी परिस्थतियों से दो-चार न होना पड़े? तभी आपकी और आपके सरकार की सार्थकता है। अन्यथा आप भी सबसे अलग नहीं हैं।

बुधवार, 24 जून 2015

IND vs BAN : सब खेले खूब खेले


 
तीन मैचों की वनडे सीरीज में 2-0 से गंवाने के बाद तीसरे मैच में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। सभी बल्लेबाजों ने संभलकर छूते हुए दहाई के आंकड़े को छुआ। टीम ने निर्धारित 50 ओवरों में 6 विकेट के नुकसान पर 317 रन बनाए। भारत की तरफ से शिखर धवन ने सबसे अधिक 75 रन बनाए। उनके अलावा कप्तान धोनी ने 69, अंबाती रायुडु ने 44, सुरेश रैना ने तेजतर्रार 38,  रोहित शर्मा ने 29, विराट कोहली ने 25 रन बनाए, जबकि स्टुअर्ट बिन्नी 17 रन और अक्षर पटेल 10 रन बनाकर नाबाद रहे।

बांग्लादेश की तरफ से मशर्फे मुर्तजा ने 3, पिछले दो मैचों के हीरो मुस्तफिजुर ने 2 और शाकिब-उल-हसन ने 1 भारतीय खिलाड़ी को पवेलियन की राह दिखाई।
तीसरे मैच का दबाव भारतीय बल्लेबाजों पर इतना था कि सभी ने संभलकर खेलते हुए दहाई का आंकड़ा छुआ।
 
रैना ने खेली आतिशी पारी
अंबाती रायुडु के आउट होते ही सुरेश रैना ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए 21 गेंदों पर 3 चौकों और 2 छक्कों की मदद से शानदार 38 रन बनाए। वो 49वें ओवर में रनगति बढ़ाने के प्रयास में सीरीज में तीसरी बार मुस्तफिजुर के शिकार बने।
मौके के हिसाब से खेल नहीं सके बिन्नी
भारतीय टीम में आलराउंडर के तौर पर शामिल स्टुअर्ट बिन्नी अंत तक नाबाद तो रहे लेकिन जरूरत के हिसाब से खेल नहीं सके। उन्होंने 11 गेंदों पर 2 चौकों की मदद से 17 बनाए। हालांकि ये दोनों चौके उन्होंने जानबूझकर नहीं मारे थे। आखिर ओवर में जहां अक्षर पटेल ने छक्का जड़ा, वहीं बिन्नी अंतिम गेंद पर असहाय नजर आए और कोई भी रन नहीं बना सके।
 
गलत फैसले का शिकार हुए रायुडु
44 रनों के निजी स्कोर पर लय में खेल रहे भारतीय बल्लेबाज अंबाती रायुडु उस समय अंपायर के गलत फैसले का शिकार हो गए, जब वह कीपर के ऊपर से शॉट खेलना चाह रहे थे। गेंद उनके पैड पर लगी, लेकिन अंपायर ने उन्हें तुरंत ही आउट दे दिया, जबकि साफ दिख रहा था कि गेंद ने उनके बल्ले को कहीं छुआ तक नहीं। अंपायर की उंगली उठते ही रायुडु और कप्तान धोनी को विश्वास ही नहीं हुआ कि उन्हें आउट करार दिया गया है।

खैर सीरीज में जो भी हो लेकिन तीसरे मैच में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए बांग्लादेश को 317 रनों का चुनौतीपूर्ण स्कोर दिया। अब सब कुछ भारतीय गेंदबाजों पर निर्भर है कि वो बांग्लादेश को कितने रनों पर ऑलआउट कर पाते हैं और उनके 3-0 से सीरीज जीतने के मंसूबे को कब रोक पाते हैं।




 

 

मंगलवार, 23 जून 2015

IND v/s BAN : कुछ तो गड़बड़ है

भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के लिए इस सच्चाई को गले उतारना इतना आसान नहीं होगा कि भारतीय क्रिकेट टीम बांग्लादेश जैसी नवोदित टीम से भी वन-डे सीरीज हार गई। तीन मैचों की सीरीज में बांग्लादेश 2-0 से आगे है। टीम के घटिया प्रदर्शन को देखते हुए ये कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मेजबान टीम मेहमानों पर क्लीन स्वीप करने के लिए बेताब है। पहले मैच में भारतीय टीम स्कोर का पीछा करते हुए 79 रनों से हार गई, जबकि दूसरे मैच में तो टीम पूरे ओवर भी नहीं खेल सकी और छह विकेट से परास्त हो गई। पूरी भारतीय टीम एक ऐसे गेंदबाज से हार गई, जिसने अभी तक जुम्मा-जुम्मा दो ही मैच खेले हैं। 19 वर्षीय तेज गेंदबाज मुस्तफिजुर ने पहले मैच में पांच, जबकि दूसरे मैच में छह भारतीय शूरमाओं को अपना शिकार बनाया। किसी गेंदबाज के लिए इससे बेहतर डेब्यू और क्या हो सकता था।

क्या यह महज संयोग है? या धोनी एंड कंपनी ने पड़ोसी देश की टीम को हल्के में लिया? बांग्लादेश एक नवोदित टीम है, जो कम-से-कम वन-डे क्रिकेट में लगातार अपने खेल में सुधार कर रही है। साथ ही धोनी टीम को यह भी नहीं भूलना चाहिये था कि पिछले विश्व कप में बांग्लादेश की टीम ने क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया था। साथ ही टीम को यह भी ध्यान में रखना चाहिये था कि हाल ही में बांग्लादेश की टीम ने घरेलू मैदान पर पाकिस्तान को वन-डे सीरीज में 3-0 से धूल चटाई थी।

शायद इसी कारण इस बार भारत ने अपने मौजूदा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को बांग्लादेश भेजा। लेकिन टीम वहां खेल के हर विभाग में मेजबानों से पिटती नजर आई। अनिल कुंबले के रिटायर होने और ज़हीर खान तथा हरभजन सिंह के लय खोने के बाद अब सीमित ओवरों वाले फॉर्मेट में कसी गेंदबाजी करने में सक्षम गेंदबाज भी गिने-चुने ही हैं। ऐसे में जब कभी बैटिंग फेल हो, वर्तमान टीम मैच जीतने की सोच भी नहीं सकती, बशर्ते दूसरी टीम खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को आमादा न हो।

बांग्लादेश के हाथों इस शर्मनाक हार के बाद धोनी की कप्तानी पर सवाल उठ रहे हैं वहीं, यशपाल शर्मा और चेतन शर्मा जैसे कई पूर्व दिग्गज क्रिकेटर इस बात की आशंका जाहिर कर रहे हैं कि टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का माहौल ठीक नहीं है। टीम के कप्तान धोनी के पूर्व कोच चंचल भट्टाचार्य का कहना है कि धोनी को टीम का सपोर्ट नहीं मिल रहा है।

भारतीय क्रिकेट प्रशासन को इस सवाल पर आत्म-चिंतन अवश्य करना चाहिए कि अपनी वित्तीय शक्ति से विश्व क्रिकेट को चलाने का दंभ भरने वाले भारत में खिलाड़ियों की गुणवत्ता क्यों तेजी से घट रही है? इसके लिए आईपीएल की संस्कृति कितनी जिम्मेदार है- यह भी विचारणीय है। आज की कड़वी हक़ीकत यह है कि क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारतीय टीम अत्यंत साधारण नजर आती है। दूसरी तरफ नौजवानों के उत्साह से भरपूर बांग्लादेश टीम है। ऐसे में जो परिणाम आया, उसे बहुत आश्चर्यजनक नहीं माना जाएगा।

खैर जो भी हो बीसीसीआई को इस हार के कारणों को तलाशना ही होगा। अभी तक भारतीय टीम की ऐसी दुर्गति तो ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे दौरों पर होती थी। तब क्रिकेटप्रेमी और क्रिकेट जानकार ये कहकर संतोष कर लेते थे कि बाउंसी पिचों पर हमेशा ही भारतीय टीम की हालत पतली होती रही है।

सोमवार, 11 मई 2015

क्या हो गया दिलवालों की दिल्ली को ?

आखिर क्या हो गया है दिलवालों के शहर दिल्ली को? मामूली बात पर एक युवक ने बस ड्राइवर (42 वर्ष) को पीट-पीटकर मार डाला। इस पूरे कृत्य में उसका साथ दिया उसकी अपनी मां ने, जो बाइक पर बेटे के साथ बैठी थीं। मदर्स डे पर एक मां अपने बेटे का हौसला बढ़ा रही थी कि बेटा और मार, शायद वो भूल गईं कि जो पिट रहा है वो भी किसी का बेटा, किसी का बाप और किसी का भाई है। ड्राइवर का गुनाह सिर्फ इतना था कि युवक की बाइक में बस की हल्की सी टक्कर लग गई थी, जिसमें युवक और उसकी गाड़ी को जरा भी खरोच नहीं आई।

इन सबसे अलग एक बात और परेशान करने वाली है कि कंडक्टर समेत बस में सवारियां ठसाठस भरी हुई थीं, लेकिन किसी ने ड्राइवर को बचाने की जरूरत नहीं समझी। गुस्साए युवक ने बस पर चढ़कर हेलमट से ड्राइवर पर दनादन प्रहार किए। इतना ही संवेदनहीन और स्वार्थी भीड़ के सामने ही अकेला युवक ड्राइवर को नीचे खींच लाया और बस में आग बुझाने के लिए लगे गैस सिलेंडर से उस पर तब तक प्रहार करता रहा, जब तक कि वह अचेत नहीं हो गया और भीड़ तमाशबीन बनी देखती रही। आखिरकार उस ड्राइवर ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।

आधा-अधूरा नहीं पूरी तरह हो बंद
सुबह अखबार में पढ़ा था कि मांग पूरी न होने तक घटना से गुस्साए लोगों ने सोमवार से दिल्ली में डीटीसी की बसें बंद करने का एलान किया है। घटना से मैं भी दुखी था, साथ ही चिंता थी कि ऑफिस कैसे पहुंचूंगा। पर जैसे ही सड़क पर निकला प्राइवेट बसों और टैक्सियों की भरमार दिखी, लगा कि आज वे इस सुनहरे मौके का जमकर फायदा उठा लेना चाहते हैं।  

बंद इसलिए भी जरूरी था कि उन संवदेनहीन और स्वार्थी लोगों को इस बात का एहसास भी कराना है, जो किसी को पिटता देखकर भी चुपचाप बैठे रहते हैं, या खुद मुंह छिपा लेते हैं। घटना के विरोध में दिली तौर पर मैं बंद के समर्थन में हूं, इसीलिए मैं चाहता हूं कि बंद हो तो पूरी तरह से चक्का जाम हो। कोई भी टैक्सी वाहन सड़क पर न दिखे। इस घटना के विरोध में सभी प्राइवेट बसों और टैक्सियों को भी बंद किया जाना चाहिए था, ताकि लोगों को हकीकत में एहसास हो सके। ऐसा भी नहीं है कि आज किसी ने डीटीसी चालक की पीट-पीटकर हत्या कर दी, कल वो या दूसरे लोग प्राइवेट बसों या टैक्सी ड्राइवरों को बख्श देंगे।

मृतक ड्राइवर की बीवी का पिछले 14 साल से इलाज चल रहा है, जिसे वर्ष 2001 में लकवा मार गया था। मृतक के बेटे अजय ने बताया, पापा रोज सुबह साढ़े चार बजे काम के लिए (बस चलाने) निकल जाते थे, मुझे याद नहीं कि मेरी उनसे आखिरी मुलाकात कब हुई थी। मुझे मां के अस्पताल में रुकना पड़ता है। घर में छोटी बहन और दादी हैं। बेटे ने रोते हुए आगे बताया कि पापा ने पिछले कई महीनों से छुट्टी नहीं ली थी। घर का खर्च चलाने के लिए वह रोज काम पर जाते थे।

मृतक चालक के परिजनों से मिलने पहुंचे परिवहन मंत्री गोपाल राय को भी लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। उनका घेराव किया गया। मंत्री महोदय ने मृतक के परिजनों को पांच लाख रुपए देने का एलान किया। लेकिन घटना से आक्रोशित लोगों ने एक करोड़ के मुआवजे और परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी की मांग की।

यह कोई ऐसी पहली घटना नहीं है, जिसे दिलवाले शहर के बाशिंदों पर सवाल उठे हों। पिछले दस दिनों में इस तरह (रोडरेज) की ये तीसरी घटना है। हालांकि, इस मामले में पुलिस ने मुंडका निवासी आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया है।


शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

दिल्ली में जैविक खेती के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा

नई दिल्‍ली। यूपीए की सरकार में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की तरह एक और बड़ा घोटाला सामने आ रहा है, जिसमें दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।

सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि लगभग 1.5 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में फैली पौने 2 करोड़ की आबादी वाली राजधानी दिल्‍ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती हो तो रही है, लेकिन सिर्फ कागजों पर। जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार से 100 करोड़ की प्रोत्‍साहन राशि लेने के बावजूद दिल्‍ली में जैविक खेती का उत्‍पादन एक प्रतिशत से भी कम हुआ।  

यूपीए सरकार ने बिना जांच-पड़ताल किए दिल्ली के 70 फीसदी क्षेत्रफल पर जैविक खेती के लिए भारी-भरकम प्रोत्साहन राशि दे दी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदेश में जैविक खेती में उत्पादन तो ना के बराबर हुआ, लेकिन करोड़ों की राशि का क्या हुआ? शायद किसी को भनक तक नहीं।

इस मामले में क्रॉप केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया नामक एक स्‍वयंसेवी संस्‍था ने केंद्र सरकार से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी। सवाल था कि दिल्‍ली में जैविक खेती की पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्‍या स्‍थिति रही है और उसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली को कितना अनुदान दिया है।

अनुमान है कि कॉमनवेल्थ गेम घोटाले की तरह यह भी एक बड़ा घोटाला है, जो यूपीए सरकार के समय किया गया है। यह घोटाला यूपीए सरकार और दिल्‍ली में शीला सरकार के समय में 2012 में हुआ था, मगर इस मामले को लेकर अब ना तो कोई कांग्रेसी कुछ बोलने को तैयार है और ना ही मौजूदा दिल्‍ली सरकार।

वहीं, भाजपा ने पूरा मामला सामने आने के बाद जरूर कड़े तेवर दिखाए हैं और दिल्‍ली व केंद्र सरकार से इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की है।


आरटीआई के तहत मिली जानकारी
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी का जो जवाब मिला वो वाकई चौंकाने वाला था। केंद्र सरकार की ओर ऑन फार्मिंग (एनपीओएफ से नेशनल प्रोजेक्‍ट) विभाग ने बताया कि जैविक खेती को प्रोत्‍साहन देने के लिए केंद्र सरकार, राज्‍य सरकार को किसानों में बांटने के लिए प्रति हेक्‍टेयर पर 10 हजार रुपये की प्रोत्‍साहन राशि देती है। 2011 में दिल्‍ली में 266 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई और उससे 2 हजार 172 टन उत्‍पादन हुआ। 2012 में दिल्‍ली में कुल 100239 हेक्‍टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई थी।
 

दिल्‍ली के कुल क्षेत्रफल 1.48 लाख हेक्‍टेयर का 70 फीसदी है, जो संभव ही नहीं इतनी अधिक मात्रा में खेती के बावजूद उत्‍पादन केवल एक फीसदी से भी कम 0.01 टन हुआ। इसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्‍ली सरकार को 100 करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान भी दिया। वहीं, 2013 में जैविक खेती 1 लाख हेक्‍टेयर से घटकर 58 हेक्‍टेयर तक सीमित हो गई, जिससे उत्‍पादन न के बराबर हुआ।

आंकड़े साफ दिखाते हैं कि कहीं न कहीं एक बड़ा घपला जैविक खेती के नाम पर हुआ है। एक साल जहां एक लाख हेक्‍टेयर पर खेती हो, उसका उत्‍पादन इतना कम नहीं हो सकता और अगले साल एक लाख से घटकर मात्र 58 हेक्‍टेयर तक खेती सिमट जाना भी संभव नहीं है। जाहिर है कि यह सब केंद्र सरकार से 100 करोड़ की राशि लेने के लिए किया गया था।

आंकड़ों के अनुसार राजधानी के कुल क्षेत्रफल में से 30 हजार 922 हेक्‍टेयर भूमि पर कृषि होती है। यहां जैविक खेती न के बराबर है। मामले में अधिकारी या तो कन्‍नी काट रहे हैं या एक दूसरे विभागों की गलती निकाल रहे हैं।

आरटीआई के तहत मिला डाटा

वर्ष     भूमि(हेक्‍टेयर)      उत्‍पादन(टन)

2010      12735           4766

2011        266            2172

2012       100239           0.01

2013         58             ----

सिर्फ होर्डिंग में ही दिख रहा क्लीन इंडिया मिशन


उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हत्याहरण गांव का लोहिया समग्र योजना के तहत विकास हुआ है। (बाद की तस्वीर)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को शुरू हुए आज छह माह स अधिक हो गया है। लेकिन अभी भी गांवों और शहरों से स्वच्छता गधे के सींग की तरह से गायब है। या फिर हम कह सकते हैं कि स्वच्छता अभियान अब सिर्फ पोस्टरों, बैनर्स और होर्डिंग्स में ही रह गया है। 


नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को जब इस महत्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की थी तो उन्होंने ना सिर्फ लोगों को स्वच्छता की शपथ दिलाई, बल्कि खुद भी झाड़ू थामे दिखे। फिर चाहे वह दिल्ली का मंदिर मार्ग हो या फिर उनका संसदीय क्षेत्र बनारस।

प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करके पूरे देश के लोगों को एक नई सोच देने की कोशिश की है, परन्तु इसका असर ना तो नौकरशाही और ना ही राजनेताओं पर दिखता  है। साथ ही लोग भी सफाई अभियान को सिर्फ एक प्रोपेगंडा की ही तरह ले रहे हैं। हम बात कर रहे हैं नवाबों की नगरी लखनऊ और उससे सटे इलाकों की।

उत्तर प्रदेश की सरकार सफाई व्यवस्था का अगर जायजा लेना है तो आप लखनऊ में तसरीफ लाइए। हाल ही में मुझे नई दिल्ली से घर (चौक, लखनऊ) जाना था। हरदोई पर पर कोनेश्वर चौराहे काली जी मंदिर जाने वाले मार्ग पर ही मेरा घर है। हम जैसे ही ऑटो से मेन रोड पर उतरे सड़क के किनारे ही काफी मात्रा में कूड़े का ढेर लगा हुआ था,  जो सड़ने की वजह से अनायास ही लोगों को नाक बंद करने पर विवश कर देता था। शुरुआत में तो मेरा ध्यान कूड़े की तरफ नहीं गया पर सड़न की तेज दुर्गंध ने मुझे विचलित कर दिया, लगा उल्टी हो जाएगी। मैं जैसे-तैसे सांस रोककर सीधे घर भागा।

बालागंज के पास नारायण गार्डेन मोहल्ले में तो इससे भी बुरा हाल है। वहां आप जैसे ही मेन रोड से आप उतरेंगे नाला बन चुकी सड़क से आपको दो-चार होना पड़ेगा। सड़क का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां गंदा पानी न भरा हो और 500 मीटर एरिया में सड़क का नामोनिशान न हो। हालत तो तब खराब होती है, जब सुबह बच्चे स्कूल जाते हैं या महिलाओं को बाहर जाना होता है। कभी-कभी बच्चे और महिलाएं नालेनुमा सड़क पर गिर भी जाते हैं, जिससे उन्हें चोट भी लगती है और स्कूल जाना भी रुक जाता है। मोहल्ले के निवासियों ने बताया कि हमने कई बार नगर निगम में जाकर शिकायत की, उनके ऑनलाइन एप्लीकेशन पर शिकायत भी दर्ज कराई पर मिला सिर्फ कोरा आश्वासन।

जब शहरों खासकर राजधानी का यह आलम है तो गांवों के बारे में आप सोच ही सकते हैं। अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के लोहिया गांव की।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में लोहिया गांवों का चयन किया था। उनका मिशन था कि चयनित गांवों में बिजली, सड़क और आवास जैसी सुविधाएं सभी को उपलब्ध कराई जाएंगी और गांवों को साफ-सुथरा बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

हरदोई जिले के हत्याहरण गांव में घुसने के लिए आपको नाले को पार करना पड़ेगा। भैनगांव ग्राम पंचाया के इस गांव को लोहिया समग्र ग्राम के लिए चयनित किया गया था। अगर इस गांव में आप को जाना हे तो आपके पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है कि आपको नाला पार करना पड़ेगा। फिर चाहे आप गिर जाएं या फिर आपके हाथ-पैर टूट जाएं।

गांव के निवासी राजू गोस्वामी (45 वर्ष) ने बताया, जब इस मौसम में तो यह आलम है और बारिश में आप कल्पना भी नहीं  कर सकते कि अपने घर जाना कितना मुश्किल होता है।


गांव के ही बुजुर्ग बरातीलाल सक्सेसना (58 वर्ष) बताते हैं, एक दिन शाम को मैं शौच के लिए बाहर जा रहा था, टॉर्च थी नहीं पैर फिसल गया गिर पड़ा। कड़ाके की ठंड में सारे कपड़े तो गंदे पानी से भीग ही गए पैर में फ्रैक्चर भी आ गया। 

बात करें बुंदेलखंड की तो यहां के गांवों की हालत काफी खस्ता है। ग्रामीण टूटी सड़क को बनवाने के लिए सड़क का अंतिम संस्कार कर तेरहवीं कर रहे हैं और मुख्यमंत्री सहित जिले के आलाधिकारियों को त्रयोदशी भोज के लिए आमंत्रित कर रहे हैं पर अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। शर्म तक नहीं आती।
उत्तर प्रदेश में जालौन जिले के गड़ेरना निवासियों ने टूटी सड़का अंतिम संस्कार कर उसका त्रयोदशी भोज किया।

मतलब साफ है कि किसी को भी सफाई अभियान और अन्य दूसरी योजनाओं की कतई चिंता नहीं हैं, उन्हें चिंता है तो बस इस बात की कैसे पब्लिक को बेवकूफ बनाकर अपना वोट बैंक बनाया जाए। चाहे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या फिर दिल्ली के अरविंद केजरीवाल।


गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

फसल नुकसान पर मुआवज़े का ‘झुनझुना’

उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान हो या फिर अन्य कोई राज्य फसल नुकसान के सदमे ने सैकड़ों किसानों को मौत के मुंह में धकेल दिया। हर साल सैकड़ों किसान आत्महत्या की मूक गवाही देने वाले देश में किसान आत्महत्या का मीटर तेजी से बढ़ने के लिए इतनी तबाही काफी थी

हालांकि मोदी सरकार के मंत्री दावा कर रहे हैं कि वह बर्बाद हुए किसान के साथ खड़े हैं। इतना ही नहीं, खुद केन्द्र और राज्य ने नियमों से परे जाकर किसानों को मदद की बात कही थी, पर सच यह है कि अब तक किसानों को कोई मदद नहीं मिली है। बारिश-ओलावृष्टि से से आहत हुए किसानों का अब सरकारी लीपापोती से भरोसा उठने लगा है। सब्र जवाब दे रहा है। क्योंकि राहत का झुनझुना अभी भी किसानों से कोसों दूर है। यह हाल तो तब है जब सरकार खुद किसानों का दर्द जानने खेतों तक पहुंची थी। सैकडों विधायकों को विधानसभा से छुट्टी देकर उनके क्षेत्रों में भेजा गया। लेकिन रिजल्ट वही ढाक के तीन पात


मुआवज़ा कितना और कब मिलेगा? और क्या फसल बीमा की तमाम योजनाएं वाकई किसान के काम आएंगी?  सवाल का जवाब देते हुए लगातार विरोध प्रदर्शन में जुटे भारतीय किसान यूनियन के बुंदेलखंड अध्यक्ष बताते हैं, ''अभी तो किसानों को पिछले साल रबी सीजन में हुए नुकसान के चेक ही आ रहे हैं.'' ऐसे में अब हफ्ते-दस दिन में राहत राशि मिलने की उम्मीद जताना बेइमानी होगा। यही हाल देश के तमाम राज्यों का है।

मुआवज़ा देने की एक तय प्रक्रिया है। थोड़े बहुत अंतर के साथ सभी राज्यों में यही दास्तान है। बीमा या फसलों की बर्बादी का मुआवजा तभी मिलता है जब एक ब्लॉक के 70 प्रतिशत भूमि पर नुकसान हुआ हो। झांसी के ही किसान रामनरेश बताते हैं कि हर खेत में पचास प्रतिशत नुकसान का होना ज़रूरी है तभी मुआवज़े की राशि तय होगी। पटवारी मानता ही नहीं है कि सत्तर प्रतिशत खेतों में नुकसान हुआ है। अगर वो मान भी लिया तो हर खेत के नुकसान को 50 प्रतिशत से कम बता देता है जिससे मुआवज़े पर दावेदारी कम हो जाती है। मुआवज़ा मिल भी गया तो 20 या पचास रुपये से ज्यादा नहीं मिलता है।

सरकारों ने एकड़ के हिसाब से जो मुआवज़ा तय कर रखा है वो साढ़े तीन हज़ार के आस पास ही है। जबकि एक एकड़ ज़मीन में गेहूं बोने पर आठ से दस हज़ार की लागत आती है। आलू का खर्चा पंद्रह हज़ार के करीब बैठता है। फसल अच्छी हो कमाई तीस से पचास हज़ार के बीच होने की उम्मीद रहती है। यानी राहत या बीमा की राशि इनती कम हो कि लागत भी न निकले।

देश में मुआवजा बांटने की प्रक्रिया ही इतनी पुरानी और सुस्त है कि किसान कितना भी धरना-प्रदर्शन कर लें, मुआवजा मिलने में महीनों और पूरा मुआवजा मिलने में सालों लग जाएंगे। क्योंकि मुआवजे का सर्वे लेखपाल ही करते हैं और उनकी कार्यप्रक्रिया किसी से भी छिपी नहीं है। चलिए माना कि वो जांच में थोड़ी पारदर्शिता दिखाते भी हैं तो कितने दिनों में वे ऐसा कर पाएंगे।

मिसाल के तौर पर झांसी जिले को ही ले लें। यहां कोई 600 राजस्व गांव हैं, जिनमें करीब 2.5 लाख किसान हैं और उनका सर्वे करने के लिए मात्र लगभग 200 लेखपाल तैनात हैं। यानी एक लेखपाल के पास औसतन 3 राजस्व गांव और डेढ़ से दो हजार खाते हैं। नियम के मुताबिक लेखपाल को एक-एक खेत में जाकर वहां हुए नुकसान का सर्वे करना होता है। ऐसे में हफ्ते भर के अंदर अगर कोई लेखपाल हर खेत में हुए नुकसान का पूरा ब्योरा दर्ज कर लेता है तो दुनिया का आठवां अजूबा ही माना जाएगा।