रविवार, 12 मई 2013

हैप्पी मदर्स डे.. मां

मां... केवल स्मरण मात्र से मां के कोमल, ममतामयी स्पर्श की अनुभूति होती है। ई·ार ने हमें मां के रूप में एक ऐसा अनमोल तोहफा दिया, जिसकी ममतामयी छांव के लिए भगवान भी सदा लालायित रहता है। मां तमाम कष्टों को झेलती हुई भी अपनी संतान पर हमेशा अपना प्यार लुटाती रहती है। एक मां कई बच्चों को तो पाल सकती है लेकिन कई बच्चे मिलकर भी एक मां को नहीं पाल सकते। पूरी दुनिया बदल सकती है पर मां और उसका नि:स्वार्थ प्यार कभी नहीं बदलता।
जब आप अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते थे, आपको चल नहीं पाते थे, तब सबसे पहले मां ने हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाया। जब हमें बोलना नहीं आता था, हम पानी मांगना भी नहीं जानते थे, तब हमारी मां हमारे इशारों और हाव-भावों से ही हमारी जरूरतों को समझ लेती थी, लेकिन आज हम अपनी मां से कहते हैं मां तुम मेरी फीलिंग्स को नहीं समझ सकती हो।
मां अनमोल है उसको न तो पैसे से तोला जा सकता है और न ही किसी भी तरह के लालच में उसे बहकाया जा सकता है। मां की कीमत उस अभागे से पूंछो जिसके पास मां रूपी अनमोल धरोहर नहीं है।
बेटे सपूत हों या कपूत त्याग की प्रतिमूर्ति मां हमेशा अपने लख्ते जिगरों पर अपनी छत्रछाया बनाए रखती है, अपने बेटों पर प्यार, आशीर्वाद और स्नेह की बरसात करती रहती है। इसीलिए कहा भी गया है पूत कपूत सुने हैं पर नहीं माता सुनी कुमाता

रविवार, 21 अप्रैल 2013

बस अब और नहीं...


दिल्ली में मासूम बच्ची से जिस तरह की दरिंदगी हुई, घिनौने काम को अंजाम दिया गया, इंसानियत शर्मसार हुई। राजधानी समेत पूरे देश में बेटियों के समर्थन में एक साथ हजारों हाथ उठ खड़े हुए। बिल्कुल वैसे ही जैसे 16 दिसंबर को दामिनी के लिए पूरा देश एक जाज़म पर खड़ा नज़र आ रहा था,तब लग रहा था जैसे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाये जाएंगे। कदम उठे भी और सख्त कानून भी बने, लेकिन नतीजा !  फिर वही ढ़ाक के तीन पात। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कानून बनाने भर से बेटियों को बचाया जा सकेगा ? उनकी हिफाजत की जा सकेगी ?। बात केवल दामिनी या गुड़िया की नहीं है,  जिनके साथ दरिंदों ने हैवानियत की सारी सीमाएं तोड़ दीं,  बल्कि पूरे देश में जिस तरह से आए दिन बहन,बेटियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है, बेहद शर्मनाक है ।
कानून बनाना ही किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, जब तक हर नागरिक के मन में कानून और उसके मूल भावों के प्रति आदर भाव ना हो। जब तक हम सच्चे मन से महिलाओं के विभिन्न स्वरूपों का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, हम चाहे जितने भी कानून बना लें, कुछ नहीं हो सकता।
पिछले कुछ मामलों में जिस तरीके से पुलिस का गैर जिम्मेदाराना रवैया रहा है, चिंता का विषय है। बात चाहे हरियाणा की हो, अलीगढ़ की हो, या फिर कहीं और की , ऐसे मामलों में ना केवल आम नागरिकों को बल्कि पुलिस को भी संवेदना दिखानी होगी।उसे भी अपने रवैये में बदलाव करना ही पड़ेगा, तभी हम एक आदर्श और भयमुक्त समाज के निर्माण की कल्पना कर पाएंगे।

सोमवार, 26 नवंबर 2012

कौन बनेगा लक्ष्मण...

जिस तरह से दूसरे टेस्ट मैच में भारतीय टीम की दुर्गति हुई, जैसे हालात बने, जिस तरह से दबाव में पूरी भारतीय क्रिकेट टीम बिखर गई, टीम के शेर अपने ही घर में भीगे चूहे की तरह नजर आये,उससे एक बहस भी छिड़ी और एक "स्पेशल" खिलाड़ी की कमी भी खली।एक ऐसा खिलाड़ी जो अक्सर भारत की निश्चित दिख रही हार को ना केवल बचा लेता बल्कि उस मैच में जीत की संभावनाएं भी बढ़ा देता था। वो स्पेशल खिलाड़ी हमेशा ऐसी ही परिस्थितियों में भारत का संकटमोचक बनकर विकेट पर लंगर डाल कर खड़ा हो जाता था,दुनिया के किसी भी गेंदबाज को वह स्पेशल खिलाड़ी अपने स्पेशल प्रदर्शन के दम पर नतमस्तक कर देता। फिर चाहे वो ऑॅस्ट्रेलिया हो या दुनिया की कोई और टीम । वो "स्पेशल" पर्सन कोई और नहीं बल्कि भारतीय टीम का दिग्गज बल्लेबाज रह चुका वीवीएस लक्ष्मण है जिसे पूरी दुनिया वेरी-वेरी स्पेशल लक्ष्मण के नाम से जानती है। जब भी कोई विदेशी टीम भारत में आई लाख कोशिशों के बावजूद इस स्पेशल बल्लेबाज पर लगाम नहीं लगा सकी। लक्ष्मण की सबसे बड़ी खासियत दबाव में बल्लेबाजी करनी थी। कोलकाता के ईडन गार्डन में ऑॅस्ट्रेलिया के खिलाफ हुए उस मैच को कौन भुला सकता है जिसमें कंगारुओं के शानदार प्रदर्शन के आगे भारत की हार को तय माना जा रहा था,कहते हैं क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है इसे सार्थक किया लक्ष्मण के शानदार प्रदर्शन ने।जिससे भारत उस मैच को बचाने में ना केवल सफल हुआ बल्कि भारत ने ऐतिहासिक जीत भी दर्ज की। लक्ष्मण भारतीय टीम के पास एक ऐसा रामबाण था, जिसने मुश्किल परिस्थितियों में हमेशा आगे बढ़कर प्रदर्शन किया। भारत दौरे पर आने वाली सभी टीमें खासकर ऑॅस्ट्रेलिया, इंग्लैंड दक्षिण अफ्रीका जैसी दिग्गज टीमें लक्ष्मण के खिलाफ होमवर्क करके आती थीं लेकिन स्पेशल लक्ष्मण को किसी लक्ष्मण रेखा में बांध पाना किसी भी टीम और उसके थिंक टैंक के लिए मुश्किल होता।
लक्ष्मण ने हमेशा सुर्खियों से दूर रहते हुए खामोशी से अपने काम को अंजाम दिया है। हालांकि ये बात दूसरी है कि सचिन,गांगुली और द्रविड़ के रहते उन्हे उतनी हाईप नहीं मिल सकी जिसके वो हकदार थे। लेकिन जब कभी टीम संकट में होती हर किसी की जुबान पर सिर्फ एक ही नाम होता वीवीएस लक्ष्मण का। इस बात को पूर्व कप्तान गांगुली ने भी स्वीकारा था और कहा था कि अगर लक्ष्मण को ऊपर बल्लेबाजी में मौका मिलता तो आज उनके नाम भी कई शतक होते । उसके बाद भी जिस तरह से लक्ष्मण का विदाई हुई थी किसी से छुपा नहीं है।
आज टेस्ट क्रिकेट में जिस तरह से भारतीय टीम प्रदर्शन कर रही है एक सवाल उठना लाजिमी है कि कौन बनेगा लक्ष्मण...क्या कोई ऐसा बल्लेबाज है जो इस स्टाईलिश कलात्मक बल्लेबाज का स्थान ले सके।

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

वो सुहाने दिन..

दीपावली का त्यौहार आने वाला है,हर किसी के मन में रहता है कि पर्व को परिवार और अपने लोगों के साथ मनाए।जो जिस संस्थान में काम कर रहा है,चाहता है किसी प्रकार उसे छुट्टी मिल जाए और वो अपने गांव अपने शहर जाकर अपनी बचपन की यादों को ताजा कर सके।मैं भी ऐसी चाह रखने वालों में से एक हूं, लेकिन अफसोस पिछले दो साल से मुझे दीपावली घर से बाहर ही मनानी पड़ रही है।अंतिम दीपावली 2010  में मैने अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर दीपावली मनाई थी। पता नहीं क्यूं मुझे ऐसा लगता है जैसे अब धीरे-धीरे दीपावली की रौनक फीकी पड़ती जा रही है।त्यौहारों को लेकर लोगों की सोच में परिवर्तन होता जा रहा है, गांव हो या शहर किसी के पास किसी के लिए थोड़ा भी समय नहीं बचा है। मुझे याद है जब हम सब बचपन में महीनों पहले दीपावली का इंतजार किया करते थे,जेबखर्च के लिए मिले पैसों को कंजूसी करके दीपावली को पटाखे छुटाने के लिए बचा लिया करते थे।क्योंकि पापा या भाई घर में जो पटाखे लाते वो दीवाली के दिन ही लाते थे और कहते थे पटाखे कोई नहीं छुटाएगा। हम लोग को केवल सांप वाली टिक्की और छुरछुरिया ही दी जाती छुटाने के लिए। लेकिन हम भी कम ना थे,बचत के उन्ही पैसों से दो दिन पहले ही पटाखे ले आते और उन्हे खूब दगाते और दोस्तों से होड़ लगाते मेरे पटाखे में तेज आवाज है वो कहता मेरे में।मुझे याद है किस तरह से डर-डरकर हम पटाखे छुटाते, एक छोटा सा बम होता था जिसे हम सुतली बम कहते थे,जो सामान्य पटाखों की अपेक्षा थोड़ा महंगा मिलता था लेकिन आवाज बहुत करता था इसलिए हमारी पहली पसंद हुआ करता था। लेकिन उसे छुटाने में उतना ही डर लगता। कई बार तो उस पटाखे को एक पत्थर पर रखकर दियासलाई से आग लगाना चाहते पर जैसे ही जलती हुई तीली पास ले जाते लगता पलीते ने आग पकड़ लिया है और हम भाग खड़े होते लेकिन बाद में पता चलता कि मैं डरकर पहले ही भाग आया हूं।फिर उसको कागज के टुकड़े पर रखकर आग लगा देते।अगर कोई राहगीर निकल रहा हो तो धोखे से पटाखे छुटाकर उसको चौंकाने में बड़ा मजा आता। लखनऊ की अपेक्षा मुझे अपने गांव में दीपावली  मनाना बहुत ही पसंद आता है,गांव में वो धमाचौकड़ी,दोस्तों के साथ खेलना,साथ में सभी का इकट्ठे होकर खूब मस्ती करना अपने आप में सुखद अहसास था।
दीपावली से पहले से ही हम सब भाई मिलकर घर की पूरी तरह से सफाई,रंगाई और पुताई करते।दीपावली वाले दिन पूरे घर मे घी के दीये जलाए जाते,एक-एक दीवार में कई डिजाईनदार आले होते हर आले में दीपक रखे जाते।यहां तक छत के छज्जों पर भी दीपक जलाए जाते। हालांकि अब उन दीयों का स्थान मोमबत्ती ने ले लिया है। शाम को गणेश लक्ष्मी का पूजन किया जाता है और एक रश्म के तहत मक्का,अरहह और पुआल से लाठीनुमा मोटे- मोटे बंडल बनाये जाते हैं जिन्हे पूजन वाले दीपक से जलाकर घर के हर कोने से निकालकर इस मान्यता के साथ ले जाते हैं कि घर की सारी बुराईयां दूर हो जाएंगी,घर से निकालकर हम गांव वालों के साथ उन जलते बंडलों को गांव से दूर ले जाते और वहीं पर जलाते और पटाखे भी छोड़ते।और वहां पर सभी लोग इकट्ठे होकर धू-धू कर जलते आग के उस ढेर में ही पटाखे डालते और भगवान के जयकारे लगाते हुए घर वापस लौट आते।लेकिन अब तो महज खानापूर्ति ही बची है किसी के पास इतना समय ही नहीं है को वहां ज्यादा देर रुके,लोगों में एक-दूसरे के प्रति प्यार की भावना समाप्त होती जा रही है।
जब तक हम वापस आते माताजी पूजा कर चुकी होतीं, हम सब प्रसाद खाकर पटाखे लेकर बड़े से आंगन में इकट्ठे हो जाते। पापा मम्मी,भइया,भाभी हम सभी लोग इकट्ठे होकर पटाखे,राकेट,चक्कर छुटाते।रात में देर तक पटाखे छुटाते रहते हालांकि माताजी बार-बार खाने के लिए बुलातीं पर हम उन मिठाईयों को खाकर ही पटाखे छुटाने के मजे लेते रहते जो दीपावली पर विशेष तौर से बनाई जाती थी।
देर रात सोने के बावजूद भी सुबह जल्दी उठकर सिर्फ एक ही काम रहता, पूरे गावं में दौड-दौड़कर दिये इकट्ठे करना।हममें दीये इकट्ठे करने की होड़  लगी रहती कौन कितने दीये इकट्ठे करता है।साथ ही रात में छुटाए गये पटाखों को खोजते कि कौन सा पटाखा रात में नहीं चला उसे उठाते और फिर छुटाते।
अब घर जाकर त्यौहार मनाने में उतना मजा नहीं आता जितना कि पहले आता था, आजकल ना तो दोस्तों के पास समय है और ना ही पहले वाली वो बात ही रही है। आज जबभी कोई त्यौहार आता है मैं पुराने दिनों को याद करके ही उन पलों में खो जाता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं काश कोई मेरे वो दिन मुझे लौटा दे।

रविवार, 9 सितंबर 2012

मध्यप्रदेश में गलती जिंदगी !

मध्यप्रदेश में हरदा जिले के खरदाना गांव में 90 लोग गर्दन तक पानी में पानी में खड़े हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है,,अपने पुनर्वास की आस लिए पानी में खड़ी बुजुर्ग महिला कृष्णाबाई के हाथ,पैर,और पेट की खाल तक लगने लगी है, लेकिन किसान पुत्र कहे जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है ? जब उनको इसके बारे में जानकारी मिलती है तो वे खुद नहीं बल्कि अपने एक मंत्री को इन लोगों के पास भेजते हैं,और जब बात होती है आम जन के मुख्यमंत्री की तो भाजपा के लोग शिवराज बाबू को आम जन का भगवान साबित करने में जुट जाते हैं, वहीं अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए पहचाने जाने वाले एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ऊर्फ दिग्गी बाबू ठाकरे परिवार की बखिया उधेड़ने में तो जुट जाते हैं, जब राहुल गांधी के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन तैयार करनी होती है तो भूमिअधिग्रहण के नाम पर आंदोलन करने की बात करने लगते हैं, लेकिन उनके अपने ही प्रदेश में पिछले कई दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे लोग जिनका हाड़ मांस अब गलने लगा है,उनकी फिक्र इन्हें कब होगी, इन लोगों से मिलने के लिए इनके पास समय नहीं है, इतना ही नहीं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जो अपने आप को इस कदर पेश करता है मानो देश और समाज की सबसे ज्यादा फिक्र इन्हें ही है, इन न्यूज चैनल वालों के लिए भी ये खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका विजुअल रिच है,उन्हें इस खबर में टीआरपी तो नजर आती है लेकिन इन लोगों की समस्याएं नजर नहीं आ रही है, शायद इसी कारण इस खबर को इस कदर चला रहे हैं मानो जैसे ये कोई मनोरंजन का साधन हो,पानी में खड़े उन नब्बे लोगों की क्या मजबूरियां हैं,उनकी क्या मांगे हैं इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, मुंबई में राज ठाकरे जब हिंदी न्यूज चैनल को मुंबई में बंद कराने की धमकी देते हैं तो ये लोग हाय तौबा मचाने लगते हैं, हर हिंदी न्यूज चैनल पर ये बहस शुरू हो जाती है कि राज ठाकरे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला कर रहे हैं, काश यही बहस वे लोग एमपी के खरदाना में जल सत्याग्रह पर बैठे लोगों की समस्याओं जानने के लिए, उनकी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने के लिए बहस किए होते ।

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

कौन बनायेगा उत्तम प्रदेश...??

राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठेगा कुछ पता नहीं, अपने प्रदेश की जनता को लेकर उसकी क्या रणनीति है।उसके द्वारा किए गये वादों का क्या होगा, विकास के मापदंड़ क्या होंगें कुछ पता। हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश की जहां हमेशा से उसके राजनेता जनता के पैसे का दुरुपयोग करते रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो यूपी की जनता को हमेशा ही भेदभाव की राजनीति से दो-चार होना पड़ता है,कभी जाति के नाम पर तो कभी क्षेत्रवाद के नाम पर। चाहे कितनी बार भी सत्ता परिवर्तन हो लेकिन राजनेताओं की मानसिकता जस की तस ही रही है। ज्यादा पीछे ना जाकर माया सरकार के कार्यकाल शुरुआत करते हैं। मायावती को जनता पूरे बहुमत के सत्ता में इस उम्मीद से लेकर आई थी कि शायद अब कुछ हालात बदलें।लेकिन मायावती जी ने उन्ही के लिए कुछ नहीं किया जिन्होने उन्हे चुनकर भेजा था। माया ने अपना फोकस मूर्तियों और पार्कों पर कायम रखा। ज्यादा अच्छा होता अगर कुछ जनकारी योजनाएं लागू करके उनका क्रियान्वयन किया जाता।लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो सका,लिहाजा जनता ने भी अपना काम किया और चुनाव में बसपा की नकार कर, सत्ता में सपा को इस उम्मीद से पूर्ण बहुमत में लाई कि शायद अखिलेश जी ही कुछ भला करेंगे। लेकिन सपा ने भी अभी तक ऐसा कोई ऐसा काम नहीं किया है जिससे कि उसकी पीठ थपथपाई जा सके। हां केवल इतना जरूर किया है उसने मायावती द्वारा किये गये कामों को बिगाड़ने में ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित किया है।
रोजी,रोटी,कपड़ा,मकान,शिक्षा,चिकित्सा और सुरक्षा किसी भी राज्य के नागरिक की मूलभूत आवश्यकताएं हैं।हर नागरिक चाहता है उसके घर में हमेशा बिजली रहे,खेतों में सिंचाई की समस्या ना हो,गरमी से परेशानी ना हो, उसके बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी अंधेरे के कारण ना रुके। इसीलिए चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता को ही उच्च जीवन स्तर या विकास का मानक माना गया है। लेकिन प्रदेश के कुछ चुनिंदा शहरों में ही चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। सत्ता परिवर्तन के बाद इटावा,मैनपुरी,कन्नौज,लखनऊ और रामपुर में पहले से ही बिजली ना काटने के निर्देश दिये गये थे। वहीं अब यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाधी को यूपी में केवल अमेठी और रायबरेली ही नजर आता है, सोनिया गांधी के कहने पर ही अब रायबरेली और अमेठी में भी 24 घटे बिजली रहेगी।फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कब तक मुलायम सोनिया के साथ रहते हैं जबकि ये भी सच है कि यूपी में वोटों के लिए कांग्रेस और सपा की ही सीधी टक्कर होगी।  वहीं माया राज में बादलपुर,अंबेड़करनगर, और उनके द्वारा बनवाये पार्क चौबीस घंटे बिजली से चमचमाते रहे। यहां यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ये शहर ही पूरी तरह से विकसित हैं या विकास के मापदंड़ पर खरे उतरते हैं ऐसा नहीं है बल्कि इन राज्यों में बिजली देना इनके राजनीतिक स्वार्थ निहतार्थ हैं।जबकि प्रदेश की बहुतायत जनता ने पूरे बहुमत के साथ पार्टी को चुनाव में विजयी बनाया था,क्या यही सोचकर कि उसके साथ पक्षपात हो,चन्द चुनिंदा शहरों को छोड़कर बाकी शहरों का गुनाह क्या था।हालत यह है कि बिजली उत्पादन के मामले में उत्तरप्रदेश दूसरे राज्यों से काफी पीछे है वहीं बिजली चोरी मामले में इतिहास अव्वल रहा। अभी हाल ही में देश में आये बिजली संकट ने पूरे देश को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था। और इस मामले में भी राष्ट्रीय ग्रिड से अनुशासन तोड़कर बिजली लेने का आरोप लगा था।
अगर ताजा सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तरप्रदेश में अभी भी तिरसठ प्रतिशत लोग दीपक जलाकर ही पढ़ते हैं। वर्ष 2001 में राज्य के 31.9 फीसदी घरों में बिजली थी और दस साल बाद बिजली मात्र 36.8 फीसदी घरों मे ही पहुंच पाई।
प्रदेश के कर्ता-धर्ता कब तक जनता को ऐसे ही धोखे देते रहेंगे।कब उनकी भी दूसरे विशेष कृपापात्र शहरों की तरह किस्मत चमकेगी। और जिन गांव वालों ने अपने जीवन पर्यंन्त गांव मे लाईट नही देखी क्या कभी राज्य सरकार की नज़रे इनायत उनपर भी पड़ेगी।