बुधवार, 26 जून 2013

देवभूमि के देवदूत

उत्तराखंड में क़ुदरत के रौद्र ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। देवभूमि में प्राकृतिक आपदा ने हर तरफ लाशों का अंबार लगा दिया। उत्तरकाशी,केदारनाथ,रुद्रप्रयाग,चमोली,पिथौरागढ़,अल्मोड़ा और बागे·ार में बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन से जो तबाही का मंजर दुनिया के सामने आया,उसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। प्रकृति के आगे लोग बेबस और असहाय दिख रहे हैं,उत्तराखंड पूरी तरह बर्बाद,तबाह हो गया है।
किसी के मां-बाप तो किसी की बेटी - बेटा, रिश्तेदार या फिर किसी का पूरा परिवार चार धाम की यात्रा में गया हुआ था, मंजर ये है कि उनमें से  किसी की लाश मिली है तो कईयों पता ही नहीं चल पाया है। ऐसे समय में सेना ने मोर्चा संभाला है और सेना की मदद से कई लोग अपने परिवार से मिलने में सफल हो सके हैं। उत्तराखंड की त्रासदी से पूरे भारत में हाहाकार मचा हुआ है, चाहे राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश या बिहार हो या फिर भारत के दूसरे राज्य , हर सूबा अपने निवासियों की कुशलता को लेकर, भगवान से प्रार्थना कर रहा है, कि वो सुरक्षित एवं सकुशल हों।
आज चारों तरफ चीख-पुकार मची हुई है, हर कोई उम्मीद लगाए बैठा है कि उसके परिजन घर कब आएंगे, उसकी उम्मीद भगवान और सेना पर टिकी है। लेकिन उसे उम्मीद देवभूमि में बचाव कार्य में लगे सेना के देवदूतों से है, जो अपनी जान की परवाह किए बिना पीड़ितों की हरसंभव मदद कर रहे हैं। हमारी आर्मी, हमारी अपनी शान है। जब-जब देशवासी मुश्किल में रहे हैंं, तब तब हमारे जवानों ने बिना किसी स्वार्थ के हर समय सहायता के लिए खड़े नजर आए हैं।
बात चाहे पड़ोसी मुल्कों के नापाक मंसूबों को नाकामयाब करने की हो या फिर देश के अंदर के अनियंत्रित हालातों को नियंत्रित करने की, भारतीय जवान अपनी मातृभूमि और देशवासियों की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहे हैं।
उत्तराखंड की त्रासदी से प्रभावित इलाकों में सड़क मार्ग पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं, सब कुछ तहस-नहस हो चुका है। हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए, जो बचे हैं, वे भूख और प्यास से बेहाल दम तोड़ने पर विवश हैं। ऐसे में प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है उनकी हिफाजत करना ,राहत सामग्री पुहंचाना, और उन्हे सकुशल घर पहुंचाना,, लेकिन प्रशासन ने टूटे हुए रास्ते,खराब मौसम का बहाना बनाकर इन लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया, तो इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया हमारी जाबाज सेना के साहसी और निर्भीक जवानों ने।
उत्तराखंड में आई आपदा में अगर बड़ी संख्या में लोगों को बचाया जा सका है, तो इसका सबसे ज्यादा श्रेय हमारी सेना को जाता है। सेना ने हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। चाहे केदारनाथ हो, बदरीनाथ हो, गंगोत्री-यमुनोत्री हो या फिर हेमकुंड साहिब, सभी जगह सेना के जवान तत्परता से पहुंचे और लोगों को राहत पहुंचाई।मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद सेना के जवान पूरी भावुकता के साथ अपना सबकुछ झोंककर तेजी से प्रभावित लोगों को बचाने में लगे रहे। खराब मौसम के चलते वायुसेना का एमआई-17 हेलीकॉप्टर क्रैश हो जाने से दर्जन भर से ज्यादा जवान शहीद हो गये। लेकिन फिर भी सेना का जज्बे को देखिये। जवानों ने कहा चाहे कुछ भी हो जाए,चाहे जितना भी मौसम खराब हो जाए, राहत कार्यों में कोई भी बाधा नहीं पहुंचेगी,लोगों को सेवा में जी जान से लगे रहेंगे। 
आज अगर हम देशवासी सुरक्षित अपने घरों में सो रहे हैं तो इसका श्रेय सीमा पर डटे हमारे जवानों को जाता है जो रात दिन जागकर पहरेदारी कर रहे हैं। हमें जीवित रहने के लिए जो खाद्य सामग्री मिल पा रही है उसके लिए लिए दो वक्त की रोटी के लिए हाड तोड़ मेहनत करता किसान है।इनके दोनों के महत्व को समझते हुए ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जय जवान,जय किसान का नारा दिया था।लेकिन विडम्बना देखिए आज हमारे देश में दोनों की स्थिति विचारणीय है। हजारों की संख्या में देश के गरीब किसान आत्महत्या करने को विवश हैंं। हमारे देश के कर्ता-धर्ताओं को जवानों की सुध तब आती है जब देश को उनकी जरूरत पड़ती है। ऐसी भी दिल दहला देने वाली खबरें आती हैं कि देश हित में शहीद हुए जवानों के परिजन दर-दर की ठोकरें खा रहे हैंं, कोई भी उनकी खैरख्वाह लेने वाला कोई नहीं। धन्य है वो मां जिसकी कोख से ऐसे वीर, साहसी सपूत जन्म लेते हैं जो हंसते हुए देशहित में कभी भी जान लुटाने को तैयार रहते हैं। सेना के जवान उत्तराखंड में अपनी जान पर खेलकर त्रासदी में फंसे लोगों को राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं, लोगों को उनके परिजनों से मिलवा रहे हैं। तभी तो ऐसे वीर साहसी और देशभक्त जवानों के लिए माखनलाल चतुर्वेदी  ने लिखा है...मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,जिस पथ जाएं वीर अनेक....देश के ऐसे वीर सिपाहियों को कोटि-कोटि प्रणाम और सत-सत नमन।

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