सोमवार, 20 दिसंबर 2010

cricket ka bhagwan

सचिन तुस्सी ग्रेट हो तुमने  साबित कर दिया और लगातार करते आ रहे हो कि वर्ल्ड क्रिकेट में कोई भी तुम जैसा नहीं है | लगभग सारे रिकॉर्ड तुम्हारे ही नाम हैं जो बचे हैं लगता है जल्द ही वो सब तुम्हारे झोली में होंगे | अबकी वर्ल्ड कप जीतकर आप अपनी महानता  में एक और कोहिनूर जड़ दो | विश्व स्तर पर पचासा लगाना ही बहुत पर तुमने शतकों का पचासा लगाकर अपनी महानता का ऐसा झंडा गाडा है कि शायद ही कोई वहां पर पहुँच पाए |हम सब भारतवासियों की शुभकामनायें तुम्हारे  साथ हैं |

रविवार, 12 दिसंबर 2010

sachin tujhe salam

सचिन तेंदुलकर ने एक बार नहीं कई बार साबित किया है वो क्यूँ महान है | वो विश्व के महान खिलाडी होने के साथ समकालिक नायक भी है ,कोई सचिन से पूछे जब भारत  ही नहीं विश्व के सफल क्रिकेटर फिक्सिंग में मजे ले रहे थे वो क्यूँ नहीं इस नदी में कूदे ,शायद सचिन ही बता सकें ? आज जब भारत में लगातार आये दिन एक नया नाम भ्रस्टाचार में सामने आ रहा है , हर कोई पैसे के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगाने पर तुला है चाहे वो राजनेता,खिलाडी ,समाजसेवी , या जिनके कन्धों पर देश कि जिम्मेदारी क्यूँ हो | आजकल तो वही सत्य लगता है ...' भ्रस्टाचार कि लूट में लूट सके तो लूट ,अंत समय पछतायेगा जब कुर्सी जाएगी छूट,' |
सचिन जैसे लोगों के कारण ही आज भी लोग थोडा ही सही पर इमानदारी पर विश्वास करते हैं | उसने दिखा दिया वो महान इसलिए है इसीकारण  वो दिलों पर राज करता है | जो उसने शराब कंपनी का  अब तक का सबसे महंगा आफर वापस कर दिया | अरे विज्ञापन वाले भाइयों आप गलत जगह गए आपको तो किसी नेता या समाजसेवी के पास जाना चाहिए था ,काम हो जाता वो भी काम पैसों में |
सचिन तुस्सी ग्रेट हो भाई हम सबको गर्व है तुम पर भगवान तुम्हारी रक्षा करें |

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

meri pratham bus yaatra

तब मैं  मुश्किल से १२ वर्ष का था ,जब मेरी बूआजीके सुपुत्र भाभी के साथ गाँव आये थे | हम  सब उन्हें प्यार से लखनऊ वाले दादा कहकर बुलाते थे |वह लखनऊ में एक प्राइवेट फर्म में काम करते थे |मैंने उनसे कई बार पूछा,दादा लखनऊ  कितना  बड़ा है कैसा लगता है क्या क्या होता है ?आदि तमाम प्रश्न पूछकर अपनी सारी  जिज्ञासायें शांत की |
तब मेरे गाँव में लाइट नहीं आती थी  सड़क व्यवस्था  भी सही नहीं थी |जहाँ से लखनऊ के लिए बसें मिलती थीं वह बस अड्डा हमारे  गाँव से १ मील दूर था ,जिसे हम चाहकर भी कभी देख न सके |मेरे गुरूजी ने भी शहरों के बारे में खूब बताया था कि वहां खूब मोटर गाड़ियाँ चलती हैं और बहुत ऊँची ऊँची इमारतें हैं और बहुत अच्छा लगता है |
मैंने दादा से जिद की मुझे भी साथ ले चलो ,मम्मी-पापा से भी प्रार्थना की  मुझे भी  भेज दो |पापा की सहमति मिलने से मैं फूला नहीं समां रहा था और दौड़- दौड़ कर अपने सारे दोस्तों बताता कि मैं कल लखनऊ जाऊंगा वह भी उस बस से जो बहुत जोरसे दौड़ती है बहुत तेज तेज होर्न बजाती है ...
इतवार  को  जाना था शनिवार कि रात मैं ठीक से सो नहीं सका  था सुबह जल्दी तैयार होने लगा था | मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे आज मै उस बस में बैठने वाला था जिसके बारे में अभी तक केवल मैंने सुना था ,अजीब सी गुदगुदी हो रही थी |मैं दादा से बार -बार कह रहा था जल्दी चलो जल्दी ,सारे लोग मेरी गतिविधियाँ देख कर खुश हुए जा रहे थे
पापा हम लोग को बैलगाड़ी से बस अड्डे तक पहुँचाने आये थे |जाते समय मैं खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली  महसूस कर रहा था |वहां पहुंचकर देखा बस नहीं थी मैं बहुत निराश था पूँछा तो पता चला कि १० मिनट बाद आएगी व्याकुलता से मैं उसका इंतजार किये जा रहा था | आखिर वहां एक होर्न बजाती हुई बस आई जिसकी तरफ मैं अपलक देखे जा रहा था |मैं उसकी तरफ चढ़ने के लिए भागा पापा ने पकड़ लिया और कहा रुकने तो दो यार !पापा से विदा लेकर मैं बस पर चढ़ गया और सारी बस में उछलता हुआ  निरीक्षण करने लगा था  |कई यात्री बैठे थे और कुछ आ रहे थे | ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर बैठ चुका था उसने स्टार्ट करते हुए होर्न बजाया और चल दिया |मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था एक तो बस से पहली बार यात्रा करने को मिल रही थी दूसरे लखनऊ शहर देखने कि तमन्ना |बस होर्न बजाती हुई चली जा रही थी मैं विस्मय से खिड़की के शीशे से बाहर देखे जा रहा था ,मुझे लग रहा था कि मेरे आस-पास का सारा परिक्षेत्र घूम रहा है बहुत मज़ा आ रहा था |अगले बस स्टॉप पर बस रुकी मैंने पूछा दादा-दादा लखनऊ आ गया उन्होंने कहा नहीं अभी ३ घंटे लगेंगे | मुझे रस्ते में कई बसें और छोटी-छोटी गाड़ियाँ भी मिली पर हमारी बस होर्न बजाती हुई सबको पीछे छोड़ भागी  जा रही थी |अगले बस स्टॉप पर दादा ने पूछा कुछ खाओगे मैंने तुरंत हामी भर दी वो समोसे लेकर आये मैंने दो ले लिए और खाते -खाते चरों तरफ देखे जा रहा था ,भाभी मेरी तरफ देखकर मुस्कराए जा रहीं थी | बस फिर चल पड़ी  धीरे-धीरे शाम होती जा रही थी ,मैं लखनऊ पहुँच रहा था दूर से सड़क के बीच में रोड लाइट का लगना लगातार मेरी कौतूहलता को बढ़ाये जा रहा था |मैंने पूछा दादा यह ऊपर आग क्यूँ जल रही है ?उन्होंने बताया ये लाइट हैं जो सरकार ने लगवाई है |बस अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच कर रुक गयी ,सब लोग नीचे उतरने लगे हमें भी उतरना था पर मेरा मन कर रहा था कि काश हम थोड़ी देर और बैठे रहें |नीचे  उतरकर मैं हैरत से देखे जा रहा था चरों तरफ आवाज़ ही आवाज़ आ रही थी , ऊँची-ऊँची इमारतें बनी थी बहुत सी गाड़ियाँ आ जा रही थीं |हम रिक्शा  में बैठकर घर पहुंचे ,आज मैं बहुत खुश था  बस कि प्रथम यात्रा करके |
वहां के शोर शराबे ने कुछ हद तक मुझे भयभीत कर दिया था ,हर कोई भागा जा रहा था कोई किसी से बात तक नहीं कर रहा था सब-सब अपने-अपने में मस्त भागे जा रहे थे |जो ख़ुशी मुझे बस में  यात्रा करने से मिली थी वह शोर -शराबे में काफी हद तक कम हो गयी थी|
आज भी उस रोमांचित करने वाली बस कि प्रथम यात्रा का स्मरण आते ही मेरा मन प्रफुल्लित  हो जाता है हंसी आ जाती है अपने बचपन के दिनों को याद करके |